भगवान के घर में ही हादसा

केरल के पुतिंगल मंदिर में जो हादसा हुआ, वह कोई नई बात नहीं है। यदि अपनी याददाश्त पर थोड़ा जोर दें तो पता चलेगा कि पिछले 10 वर्षों में ऐसे दर्दनाक हादसे कई हो चुके हैं। केरल में तो सवा सौ लोग मरे हैं लेकिन अन्य मंदिरों, तीर्थों और धार्मिक मेलों में कहीं ज्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोने पड़े हैं।

यह थोड़े संतोष का विषय है कि प्रधानमंत्री तुरंत केरल दौड़े चले गए और मुख्यमंत्री भी हताहतों को राहत पहुंचाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं लेकिन इसके बाद सारा मामला रफा-दफा हो जाएगा। लोग भूल जाएंगे कि कभी केरल में ऐसी भी दुर्घटना हुई थी। कोलकाता में पुल ढह गया तो उसे भगवान की मर्जी कह दिया गया तो केरल में तो यह हादसा भगवान के घर में ही हुआ है। इसे भी भगवान की मर्जी कहकर टाल दिया जा सकता है।

ये घटनाएं- भवन धंसने, आग लगने, भगदड़ मचने आदि- मानवीय लापरवाही के नमूने हैं। इनका भगवान से कुछ लेना-देना नहीं हैं। पुतिंगल मंदिर केरल के कोल्लम जिले में हैं। जिला-अधिकारियों ने पटाखों के दंगल की अनुमति नहीं दी थी लेकिन स्थानीय नेताओं ने जोर डालकर लाखों रु. के पटाखे छुड़वाए। पटाखों के भंडार में एक जलता हुआ पटाखा जा गिरा और वह सवा सौ लोगों की मौत का कारण बन गया।

केरल के 36000 मंदिरों में हर साल 2000 करोड़ रु. के पटाखे छोड़े जाते हैं। भक्तिभाव और पूजा से इसका क्या संबंध है? यदि कोई दुर्घटना न हो तो भी इस फिजूलखर्ची पर मंदिरों को ही रोक लगा देनी चाहिए। धर्म के नाम पर चलने वाले पाखंड और अय्याशी के खिलाफ सरकार को कठोर रवैया अपनाना चाहिए लेकिन कोल्लम में एक बुजुर्ग महिला की बार बार चेतावनी के बावजूद प्रशासन निष्क्रिय रहा। केरल जैसे प्रांत में, जहां मार्क्सवादी सरकारें कई बार बनी हैं, यदि वहां भी ऐसा धार्मिक अंधविश्वास जारी है तो यह चिंता का विषय है।

अब उज्जैन में सिंहस्थ का मेला भरने वाला है। मप्र और केंद्र सरकार को विशेष प्रबंध करने होंगे, वरना वहां भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। सरकार तो जो हो सकता है, वह करेगी ही लेकिन आम लोगों को भी अपनी अंध-श्रद्धा और अंध-उन्माद पर लगाम लगानी होगी, वरना भगवान के ये घर यमराज की काल-कोठरियां बनते रहेंगे।