राजनीति

बिहार चुनाव की खामोशी

जहां राजनीति का ककहरा अक्षर ज्ञान से पहले बच्चे सीख लेते हों, वहां चुनाव का मतलब सिर्फ लोकतंत्र को ढोना ...

संघ के भीतर का अंधेरा

बीजेपी और संघ के वरिष्ठ चाहे समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव, हैदराबाद और अजमेर ब्लास्ट पर खामोशी ओढ़े रहें लेकिन स्वयंसेवकों में ...

कॉरपोरेट के आगे प्रधानमंत्री भी बेबस

ठीक एक साल पहले प्रधानमंत्री अपने नये मंत्रिमंडल में जिन दो सांसदों को शामिल नहीं करना चाहते थे, संयोग से ...

नक्सलबाड़ी के वसंत (कानू सान्याल) की खुदकुशी

1970 में जब कानू सन्याल को गिरफ्तार किया गया तो वह फौजी पोशाक पहने हुये थे। और चालीस साल बाद ...

देश को संसद नहीं पूंजी चलायेगी

2004 में चंदौली में माओवादियो ने विस्फोट से एक ट्रक को उड़ा दिया था । उस वक्त उत्तर प्रदेश में ...

एक अदद लोहिया की तलाश…….

यह सोचना वाकई मुश्किल होगा कि राम मनोहर लोहिया की कोई लीक अब के दौर की राजनीति में बची है। ...

हिन्दुत्व की बिसात पर पहली चाल है भागवत का मराठी मानुस

भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। यही वह पहला वाक्य है, जिसे मोहन राव ...

आडवाणी युग के बाद की भाजपा

नागपुर में पहली बार सीमेंट की सड़क 1995 में बनी तो रिक्शे वालों ने आंदोलन छेड़ दिया । रिक्शे वालों ...

84 का दर्द, गुजरात की त्रासदी और बेजुबान आदिवासी

जिस पत्रकार ने गृह मंत्री पी चिदबंरम पर जूता उछाल कर 84 के दंगों के घाव को उभारा, उसी पत्रकार ...

“20 साल पहले राजीव गांधी का अपहरण करना चाहते थे नक्सली और 20 साल बाद मनमोहन सिंह के अपहरण की जरुरत नहीं समझते माओवादी”

ठीक बीस साल पहले 1989 नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप के महासचिव सीतारमैय्या से जब यह सवाल किया गया था ...