जात न पात, हो बेदाग

(राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में)

संविधान अपने आप में अद्वितीय है, लेकिन निहितार्थ की राजनीति के चलते सभी राजनीतिक दल संविधान पर लगातार प्रहार कर अपने मनमाफिक इसमें संशोधन करने में जुटे हुए है। आज संवैधानिक पद भी राजनीति की कुलूषिता से अछूती नहीं है। आज राजनीति में बढती घटिया सोच, घटिया व्यवहार, ऊंचा रहन-सहन, घटता जनाधार, बढ़ती मक्कारी, नीति रही नहीं रीति भ्रष्ट हो गई। तेजी से बढ़ती स्वार्थपन ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया है। बेमानी के इस दौर में खुद्दार का हाथ भी अब पसारा सा लगता है।

हकीकत में संवैधानिक पदों को अब राजनीति से दूर रखने का वक्त आ गया है फिर बात चाहे राष्ट्रपति पद की हो या राज्यपाल की। चूंकि आज सभी राजनीतिक पार्टियों को हर चीज केवल राजनीति के चश्में से ही देखने की आदत सी जो पड़ गई है और यह हो भी क्यों न राजनीति में कई बार ऐसी भी घड़ी आती है तब ये तारणहारा बन सकते हैं। राजनीतिक पार्टिया इन्हें सिर्फ एक रबर की मोहर के ही रूप में देखती है।

राष्ट्रपति का पद कोई शोभा का नहीं है बल्कि सर्वोच्च जिम्मेदारी निभाने का है। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए राजनीतिक गलियारों में बार-बार आम राय की बयार उठ रही है लेकिन ऐसा होगा नहीं, यह भी उतना ही सच हैं।

हमारी घटिया सोच को तो देखिए इन पदों को भी हम जाति, धर्म, लिंग के आंकडों का गणितीय आंकलन कर मनमाफिक रंग देने में लगे रहते हैं। मसलन अब दलित, अब महिला, अब पिछड़ा, अब अल्पसंख्यक, अब आदिवासी आदि-आदि।

राष्ट्रपति उम्मीदवार को ले राजनीतिक पार्टियों में अन्दरूनी खलबली मची हैं। जब तक कांग्रेस द्वारा अपने पत्ते नहीं खोले जाते तब तक सभी पार्टियों मंे बैचेनी का माहौल हैं। नाम उजागर होने पर ही लोग श्रृद्धा और विश्वास का गान गायेंगे। सी. पी. एम. पोलित ने तो कांग्रेस उम्मीदवार के ही बाद अपनी राय बनाने की बात कहीं है, जबकि सी. पी. एम. चाहता है कि कोई राजनीतिक व्यक्ति ही राष्ट्रपति बने। भाजपा की प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज की राय के बाद एन. डी. ए. में अब ऐका नहीं है, वही ममता के लिए यह सुनहरा अवसर है अपनी और अनचाही मांगों को मनमाने का? लालू को चारा घोटाला में जेल जाने का डर सता रहा है इसलिए कांगे्रस का साथ देना अब उनकी मजबूरी है। उछलकूद भले ही वे कितनी ही कर लें? पासवान संकीर्ण राजनीति के चलते खोते से ही है। बसपा हार के बाद सपा से बदला लेने के मूड में है।

यहां वोटों का गणित देखे वर्तमान में कुल 10,98,882 मत है जिसका 50 प्रतिशत अर्थात् 5, 49, 442 होता है। भाजपा के 223885 मत है एन. डी. ए. सहयोगी सहित 304785 मत है। एन. डी. ए. को अन्य दलों के समर्थन लेने आयडियालाॅजी आडे आएगी जो एन. डी. ए. में अब वर्तमान में संभव नहीं है। यदि संप्रगा के 460191 मत हैं। एवं सहयोगी किसी एक नाम पर सहमत होते है तो इन्हें सिर्फ सपा 68812 या वामदल 51682 को अपने उम्मीदवार पर सहमति बनाना होगी। यदि ऐसा होता है तो इनके कुल मत क्रमशः- 529003 और 511873 होंगे जो हो जायेंगे जो कुल मत के 50 प्रतिशत से अधिक है अन्यथा उन्हें वामदल की जगह बसपा या तेलगूदेशम को राजी करना पडेगा।

14वें राष्ट्रपति के लिए धमासान मचा हुआ है। खबरों के माध्यम से बार-बार सर्व सम्मति के उम्मीदवार की बात उठ रही है। राष्ट्रपति के चुनाव के इतिहास में निर्विरोध की स्थिति केवल नीलम संजीवा रेड्डी के साथ संयोगवश बनी थी। दूसरा पहलू राष्ट्रपति राजनीतिक या गैर राजनीतिक हो इसके भी कई तर्क या वितर्क हो सकते हैं। इन सभी  विवादों से ऊपर उठकर यहां यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति बेदाग, प्रज्ञावान, नियमोें के जानकार के साथ पार्टी, धर्म, जाति से ऊपर उठ केवल राष्ट्र हितैषी हो न कि पार्टी हितैषीं

यदि सर्व सम्मति नहीं बनती है तो खरीद फरोख्त की डगर पर न चल सभी राजनीतिक घड़े अपने-अपने उम्मीदवारों को उतारे ताकि उन्हें भी उनकी हैसियत का पता लग सकें। राजनीति के अलावा भी कोई भी भारतीय नागरिक अपनी किस्मत आजमा सकता है।

यूं तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार भारत का नागरिक, पैतीस वर्ष की आयु, लाभ का पद न धारित करें, यदि संसद या विधान मण्डल का कोई सदस्य निर्वाचित होता है तो यह समझा जायेगा कि उसने सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया। अब जो भी अपने को इन कसौटी पर खरा पाता है तो अवश्य लडे़। विशेषतः ऐसे लोग जिनकी सार्वजनिक जीवन में स्वच्छ छबि है, को अवश्य राष्ट्रपति के चुनाव में उतरना ही चाहिए, फिर चाहे वो अन्ना हजारे हो या मीरा कुमार या प्रणव दा हो।

इसी के साथ बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों पर उन्हें उनकी अन्र्तआत्मा पर मत डालने का बड़ा कलेजा राजनीतिक पार्टियों को देना ही होगा ताकि भारत की जनता के प्रति एक अच्छा संदेश जाऐं। इससे चुना व्यक्ति न केवल अपने आपको हल्का महसूस करेगा बल्कि निष्पक्ष भाव से भी राष्ट्रहित में अच्छे ही निर्णय लेगा।