आतंकः कोरा जबानी जमा-खर्च?

उरी में हुए हमले को तीन दिन बीत गए और हमारी सरकार सिर्फ जबानी जमा-खर्च कर रही है, इसका मतलब क्या है? इसका पहला अर्थ तो है कि उसका दिमाग खाली है। उसके दिमाग में कोई नक्शा ही नहीं है। किसी जवाबी कार्रवाई की कल्पना ही नहीं है। उसने सोचा ही नहीं है कि पठानकोट या उरी-जैसी घटनाएं हो जाएं तो वह तत्काल क्या कार्रवाई करेगी? उसका दिमाग ठस है, इसका प्रमाण यह है कि वह किसी भी आतंकी घटना से निपटने का कोई फार्मूला पहले से तैयार करके नहीं रखती है।

एक के बाद एक घटनाएं हो रही हैं और वह हर घटना के बाद घिसे-पिटे बयान जारी करती रहती है। अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे, उचित समय पर उचित कार्रवाई की जाएगी, पाकिस्तान आतंकी राष्ट्र है, संयुक्तराष्ट्र में यही घोषणा करवाएंगे, सेना को पूरी छूट दी जाएगी। इस तरह के बयान ही सिद्ध करते हैं कि आपका तरकस खाली है। उसमें तीर नहीं हैं। आप सिर्फ खाली डिब्बा बजाने लगते हैं।

यदि सरकार के दिमाग में कुछ नक्शा होता तो वह बराबरी की कार्रवाई तत्काल करती! इधर पठानकोट और उरी में मुठभेड़ चलती और उधर सीमा-पार के कई आतंकवादी शिविर तत्काल उड़ा दिए जाते। आपने आज तक एक भी शिविर क्यों नहीं उड़ाया? शायद आपको उनके बारे में कोई ठोस जानकारी ही नहीं है। यदि जानकारी है, फिर भी आप उन्हें नहीं उड़ाते, इसका मतलब है- आप दब्बू हैं। आपको डर है कि युद्ध छिड़ जाएगा।

सवाल है पाकिस्तान को यह डर क्यों नहीं है? आपको डर है कि उसके पास परमाणु बम है लेकिन क्या उसको डर नहीं होगा कि भारत के पास उससे भी ज्यादा परमाणु बम हैं? मान लें कि ये आतंकवादी खुद-मुख्तार हैं। इन्हें पाक-सरकार ने नहीं भेजा है तो भारत सरकार पाक-नेताओं और फौज से सीधे बात क्यों नहीं करती? दोनों देश मिल कर इनका सफाया क्यों नहीं करते? यदि आपको पूरा विश्वास है कि पाक सरकार और फौज इन आतंकवादियों के पीछे हैं तो आप को किसने रोका है?

आपके यहां तो सिर्फ एक कश्मीर है, आप पाकिस्तान में दस कश्मीर खड़े कर सकते हैं। कांटों से कांटा निकालिए। सभी मित्र-देशों से कहिए कि पाकिस्तान की आर्थिक और सैनिक मदद तब तक वे बंद रखें, जब तक वह आतंकियों को खत्म न कर दे। आपकी कूटनीति में दम हो तो पाकिस्तान को आप ‘अंतरराष्ट्रीय अछूत’ घोषित करवाइए। उसे सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों से बाहर निकलवाइए। यदि चीन उसकी मदद पर दौड़ता है तो सिंक्यांग में उसका तवा इतना गर्म करवा दीजिए कि पेइचिंग और शांघाई के पसीने छुटने लगे।