ख़ास लोगों की बनती जा रही आम जन की ट्रेन ?     

      वरात्रि के अवसर पर पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की पहली रैपिड रेल सेवा का उद्घाटन किया। नमो भारत के नाम से चलने वाली यह रैपिड रेल सेवा अपने पहले व शुरुआती चरण में गाज़ियाबाद के साहिबाबाद व दुहाई डिपो के बीच संचालित होगी। रैपिड रेल सेवा के इस पहले फेज़ में 5 स्टेशन होंगे। इसकी गति 100 किलोमीटर प्रति घंटे से 160 किलोमीटर प्रति घंटे तक होगी। यह हर 15 मिनट में उपलब्ध होगी । और प्रत्येक स्टेशन पर केवल 30 सेकंड के लिए रुकेगी। इसमें मेट्रो की तरह महिलाओं के लिए अलग कोच होगा। इस हाई स्पीड ट्रेन में फ़िलहाल कुल 6 कोच होंगे। इस ट्रेन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री ने एक जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि  "मुझे छोटे सपने देखने की आदत नहीं है। न ही मुझे मरते-मरते चलने की आदत है। दिल्ली-मेरठ का रैपिड ट्रेन की यह शुरुआत है। पहले फेज़ में दिल्ली, UP, हरियाणा, राजस्थान के इलाक़े नमो भारत से कनेक्ट होंगे। देश के बाक़ी हिस्सों में ऐसा ही सिस्टम बनेगा।" उन्होंने यह भी कहा कि मैंने तो बचपन रेलवे ट्रैक पर बिताया है। आज रेलवे का ये नया रूप मुझे सबसे ज़्यादा आनंदित करता है। ये अनुभव प्रफुल्लित करने वाला है।'  प्रधानमंत्री ने कहा कि -'नमो भारत ट्रेन में आधुनिकता भी है, अद्भुत स्पीड भी है। ये ट्रेन नए भारत के नए सफ़र और नए संकल्पों को परिभाषित कर रही है। दिल्ली-मेरठ RRTS कॉरिडोर 82 किलोमीटर लंबा है। इस प्रोजेक्ट पर क़रीब 30 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च हो रहे हैं '।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि-' इस दशक के अंत तक आपको भारत की ट्रेनों और रेलवे की सूरत बदलती नज़रआएगी।' देश को तीव्र गामी अति आधुनिक रेल मिलना निश्चित रूप से गर्व की बात है। मेट्रो की सुविधाओं की ही तरह मेरठ-दिल्ली रुट पर चलने वाले दैनिक यात्री ख़ास तौर से इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।

     परन्तु जब प्रधानमंत्री इस दशक के अंत तक भारत की ट्रेनों और रेलवे की सूरत बदलने की बात करते हैं तो देश के उन करोड़ों दैनिक रेल यात्रियों पर नज़र जाना स्वभाविक है  जो कोविड काल से अब तक रेल दुर्व्यवस्था का शिकार हैं। देश के कई इलाक़ों में स्थानीय स्तर पर चलने वाली कई दैनिक सवारी रेल गाड़ियां बंद पड़ी हुई हैं। अनेक क्षेत्रों में रेल विभाग मनमानी तरीक़े से जब चाहे ट्रेन कैंसिल होने की घोषणा कर देता है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ के बस्तर, रायपुर ,भुवनेश्वर लाइन की कई सवारी रेल गाड़ियां अक्सर कैंसिल हो जाती हैं। जिससे ज़रूरतमंद यात्रियों को बसों से जाना पड़ता है। उधर बस सेवा प्रदान करने वाले इसे 'आपदा में अवसर ' मानकर परेशान यात्रियों से मनमाने पैसे वसूलने लगते हैं। कोविड काल के बाद सैकड़ों यात्री गाड़ियों को स्पेशल ट्रेन का नाम दे दिया गया है। जबकि उनका रुट,स्टॉपेज,छूटने पहुँचने का समय ,गति आदि सब कुछ पूर्ववत है। परन्तु केवल 'स्पेशल' का टैग लगने मात्र से इसका किराया दस रूपये की जगह तीस रूपये कर दिया गया है।  उदाहरण के तौर पर इस श्रेणी में अम्बाला -कुरुक्षेत्र,सहारनपुर,नांगल डैम,लुधियाना आदि रुट पर चलने वाली डेमू व ईमू जैसी अनेक सवारी गाड़ियों को देखा जा सकता है। क्या देश के आम यात्रियों को परेशानी में डालने की शर्त पर ही भारत की ट्रेनों और रेलवे की सूरत बदलने की योजना है ? 

     आम रेलयात्रियों को परेशान करने वाले कई फ़ैसले सरकार ख़ामोशी से भी ले लेती है। जबकि सरकार किसी नयी योजना का जमकर ढिंढोरा पीटने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखती। उदाहरण के तौर पर श्रीगंगानगर-ऋषिकेश -गंगानगर रुट पर दशकों से 14712 /14711 नंबर वाली इंटरसिटी ट्रेन परिचालित होती थी। इसमें एक डिब्बा ए सी चेयर कार का होता था जबकि शेष ट्रेन का पूरा रैक सामान्य क्लास का होता था। विगत कुछ समय से इसी ट्रेन पर बाड़मेर -ऋषिकेश -बाड़मेर के बोर्ड लगे नज़र आने लगे जबकि ट्रेन का नंबर वही 14712 /14711 ही रहा। हाँ ट्रेन के रैक में एक बड़ा परिवर्तन ज़रूर हुआ। अब इसमें तीन कोच ए सी के लग गए, और अधिकांश कोच आरक्षित स्लीपर क्लास के कर दिए गये। जबकि ट्रेन के आगे और पीछे केवल दो दो कोच सामान्य यात्रियों (अनारक्षित ) के लिये छोड़े गये। और अब इसी 1 अक्टूबर से इस ट्रेन का नंबर भी अचानक बदल कर 14816 /14815 कर दिया गया। ज़रा सोचिये कि जो ट्रेन गंगानगर हरिद्वार रुट पर गंगा स्नान करने वाले आम यात्रियों को लती ले जाती हो ,जिस ट्रेन से इस पूरे मार्ग के लोग अपने मृत जनों की अस्थियां लेकर आते आते हों,कांवड़ यात्रा के दिनों में जिसपर लाखों कांवड़ यात्री  आते जाते हों ,यदि  उसी गाड़ी के अधिकांश कोच स्लीपर क्लास के लिये आरक्षित कर दिए जाएँ , इससे बड़ा अन्याय आम रेल यात्रियों के साथ और क्या हो सकता है। ख़बर है कि 14712 /11 व एक अन्य ट्रेन को 14816 /14815 में समाहित कर दिया गया है। यानी दो ट्रेन समाप्त कर एक कर दी गयी है।  

     कहाँ तो सरकार देश के ग़रीबों पर तरस खाकर उन्हें पांच किलो राशन फ़्री या सस्ते में देकर उनके प्रति हमदर्दी जताती है। और इस मुफ़्त राशन के बदले में वोट पाने की भी उम्मीद रखती है। और कहाँ तो उनके गंतव्य तक आने जाने वाले एकमात्र सुलभ साधन को उनकी पहुँच से दूर कर देती है? आख़िर आम रेल यात्रियों के साथ यह कैसा न्याय है ?  रैपिड रेल में यात्रियों को कई विशेष सुविधाएं दिये जाने की भी ख़बर है। मिसाल के तौर पर इसमें ओवरहेड लगेज रैक, वाई-फ़ाई और हर सीट पर एक मोबाइल और लैपटॉप चार्जिंग सॉकेट जैसी यात्री सुविधायें तो होंगी ही साथ ही यह कई सुरक्षा सुविधाओं से भी युक्त होगी। इसमें आम यात्रियों की सुविधा के लिए शताब्दी ट्रेन या हवाई जहाज़ की इकोनॉमी क्लास जैसी रिक्लाइनिंग सीटें लगाई गई हैं। हर तरफ़ डिजिटल स्क्रीन लगाई गई हैं, जिससे स्टेशन से जुड़ी जानकारी के साथ ही ट्रेन की टाइम स्पीड का भी पता चलेगा। इस ट्रेन में प्रवेश के लिए हाई-टेक स्वचालित गेट्स लगे हैं और यात्रियों की सुरक्षा हेतु प्लेटफ़ार्म और ट्रेन के ट्रैक के बीच कांच की दीवार भी लगाई गई है।

      अब ज़रा यात्री गाड़ी और साधारण स्टेशन की इससे तुलना कीजिये। स्टेशन पर गाय ,कुत्तों, भिखारियों व अवांछित तत्वों का साम्राज्य ,ट्रेन में भिखारी या साधूवेषधारी को बिना टिकट चलने की पूरी आज़ादी , तमाम स्टेशन पर पीने के पानी तक की मोहताजगी, सुरक्षा नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं,रेलवे स्टेशन पर घटिया खाद्य सामग्री का धड़ल्ले से बिकना,बेटिकट भिखारियों का सीट पर क़ब्ज़ा और बाटिकट मेहनतकश यात्री खड़े होकर यात्रा करे,ज़हर खुरानी जैसे अपराध का धड़ल्ले से होते रहना,ट्रेन में महिलाओं से छेड़ छाड़ यहाँ तक कि बलात्कार तक की ख़बरें सुनाई देना जैसी और भी अनेक समस्यायें हैं जिनसे देश का आम रेल यात्री जूझ रहा है। ऐसे में क्या यह सवाल जायज़ नहीं कि कल तक आम जन की समझी जाने वाली भारतीय रेल क्या अब ख़ास लोगों की बनती जा रही है ?