आवारा पशुओं का बढ़ता आतंक : जनता त्रस्त-सरकारें मौन

     हमारे देश का सत्ता नेतृत्व देश के आमजन की सुरक्षा की चाहे जितनी बातें करे ,अपनी तुलना स्वयंभू रूप से पश्चिमी देशों से करने लगे और इसी मुग़ालते में स्वयं को विश्व गुरु भी बताने लग जाये परन्तु हक़ीक़त तो यह है कि हमारे देश में किसी भी साधारण व्यक्ति चाहे वह बच्चा बूढ़ा या जवान ,पुरुष महिला कोई भी हो वह कभी भी और कहीं भी सुरक्षित नहीं है। उसकी जान को हर समय ख़तरा बना रहता है। कब किसे सामने या पीछे से कोई छुट्टा सांड या गाय आकर उस पर हमला कर दे और उस हमले में उसकी जान तक चली जाये,कुछ पता नहीं। इसी तरह सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों का आतंक भी गोया एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर चुका है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ऐसे आवारा पशुओं के हमलों में भले ही किसी की जान क्यों न चली जाये परन्तु हमारे देश में इस से सम्बंधित कोई भी ऐसा क़ानून नहीं जिससे इस तरह के पशुओं के हमलों में घायल होने या इससे मौत हो जाने की दशा में किसी को ज़िम्मेदार ठहराया जा सके। बजाये इसके हर गली मोहल्लों में आपको गोवंश की रक्षा का दंभ भरने वाले और अपने पुण्यार्थ उसकी पूजा करने वाले कुछ लोग ज़रूर मिल जायेंगे। ऐसे लोग यदि गोवंश को रोटी अथवा ग्रास डालकर उन्हें अपने दरवाज़े या गली में आने की आदत डालते हैं तो उन्हें गोवंश को रिहाइशी बस्तियों में न्योता दे कर इनसे होने वाले हादसों का ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि लोग इन्हें धार्मिक,गौसेवक और पशु प्रेमी के रूप में देखते हैं। इनके विरुद्ध किसी क़ानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान नहीं है। जबकि दिन प्रतिदिन इन छुट्टा गोवंशों व आवारा कुत्तों की संख्या पहले की तुलना में काफ़ी बढ़ती जा रही है।

       इसी तरह पशु प्रेमियों में एक वर्ग है जो स्वयं को 'डॉग अथवा पेट् लवर्स ' कहलाता है। इनमें तमाम लोग तो अपने घरों में कुत्ते पालते हैं और सुबह सवेरे उन पालतू कुत्तों को लेकर अपने घर के आसपास के किसी प्लाट पर या किसी पड़ोसी के मकान के सामने उसे शौच कराते हैं। वहीँ कुछ ऐसे 'पेट् लवर्स ' भी हैं जो गलियों के आवारा कुत्तों को रोटी बिस्कुट आदि खिलाकर पुण्य के भागीदार बनने की कोशिश करते हैं। कई जगह तो सार्वजनिक पार्कों में कुछ लोग इन्हीं आज़ाद कुत्तों को रोटी बिस्कुट देकर उन्हें पार्कों में नेवता देते हैं। जिसकी वजह से ऐसे सार्वजनिक पार्कों में जगह जगह कुत्ते का शौच पड़ा रहता है। ऐसे ही आवारा कुत्ते रोज़ाना पूरे देश में अनेक लोगों की जान के दुश्मन बने भी दिखाई देते हैं। पूरे देश में प्रतिदिन ऐसे अनेक हादसे होते रहते हैं। पिछले दिनों ऐसा ही एक है प्रोफ़ाइल मामला सुर्ख़ियों में रहा जबकि  प्रसिद्ध ब्रांड 'वाघ बकरी चाय' के मालिक तथा गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक 50 वर्षीय पराग देसाई को उनके आवास के पास कुत्तों ने हमला कर दिया। देसाई सुबह की सैर पर निकले थे उसी समय उन पर कुत्तों के एक झुंड ने हमला बोल दिया। उन्होंन बचने के लिये भागने की कोशिश भी की। परन्तु कुत्तों ने उन्हें काट लिया और वे सड़क पर गिर पड़े जिससे उनके सर में चोट लग गयी। इस हादसे में घायल होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परन्तु वे अपनी जान बचा नहीं सके और अस्पताल में ही उनका निधन हो गया। उनका कारोबार 2,000 करोड़ रुपये से अधिक है और उनकी कंपनी 5 करोड़ किलोग्राम से भी अधिक चाय बाज़ार में बेच रही है।

   इसी तरह पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निकट मलिहाबाद क़स्बे के रहीमाबाद और आसपास के गांवों में एक गली के एक काले कुत्ते ने केवल दो दिनों के भीतर 11 लोगों को काट लिया। इसकी वजह से आसपास के गांवों में काले कुत्ते की दहशत फैल गई थी। आख़िरकार उस कुत्ते पर सवार पागलपन को देखते हुये ग्रामीणों ने एकजुट होकर उस काले कुत्ते को लाठियों से पीट पीटकर मार डाला। देश के लगभग सभी राज्य इस समय ऐसे जानलेवा आवारा पशुओं की ज़द में हैं। जो लोग या जिनके परिजन अभी तक सांड-गाय या कुत्तों के हमलों का शिकार नहीं हुये हैं वे तो 'पशु प्रेमी ' बनकर अपने को 'पुण्यार्थी ' के रूप में स्थापित किये हुये हैं। यही वर्ग उनके दुःख दर्द को नहीं समझता जो इनके हमलों का शिकार हो चुके हैं या जिनके किसी परिजन की इन के हमले से जान जा चुकी है। कई ख़बरें तो ऐसी भी सुनने को मिलती हैं कि किसी गाय पर भी कुत्ते ने हमला कर दिया और गाय को काट कर ज़ख़्मी कर दिया। स्कूटर बाइक सवारों के पीछे भी प्रायः कुत्ते भौंकेने लगते हैं और भय वश वाहन चालक अपने बाइक /स्कूटर और भी तेज़ कर देता है। इस स्थिति में भी आये दिन दुर्घटनायें होती रहती हैं।

      जहाँ तक इस विषय पर क़ानूनी स्थिति की बात है तो आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाना या उन्हें भगाना ही ग़ैर क़ानूनी है। दरअसल सड़कों गलियों के कुत्तों को किसी भी व्यक्ति द्वारा गोद लिए जाने तक उसे उसी इलाक़े में रहने का क़ानूनी अधिकार प्राप्त है। 2001 से तो भारत में आवारा कुत्तों की हत्या भी प्रतिबंधित है। हालांकि मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा पहले नगरपालिका को "उपद्रवी व हिंसक स्वभाव के आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति दी गयी थी। परन्तु बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई उच्च न्यायालय के इस निर्णय को भी निलंबित कर दिया था। गोया वर्तमान समय में इन जानवरों की हिंसा से मानवीय संरक्षण का तो कोई क़ानून नहीं परन्तु यदि कोई व्यक्ति इन्हीं आवारा कुत्तों या अन्य पशुओं को खाना खिलाता है और गली मुहल्लों या पार्कों में उन्हें आने का चस्का लगाता है तो इसे कानूनी रूप से ग़लत नहीं माना गया है। जबकि किसी आवारा कुत्ते के काटने पर या किसी अन्य पशु के हमले से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, तो क़ानूनन इसकी ज़िम्मेदारी स्पष्ट नहीं है। सवाल यह है कि जब समाज में पशु कल्याण संगठनों की भरमार है,सरकारें भी स्वयं को पशु प्रेमी सिद्ध करना चाहती हैं,फिर आख़िर इन बेलगाम पशुओं से होने वाली मानवीय क्षति का कौन ज़िम्मेदार है ? क्या पशु प्रेम या इसका प्रदर्शन करना मानव प्रेम से अधिक ज़रूरी बन गया है? आख़िर क्या वजह है कि दिन प्रतिदिन आवारा पशुओं के बढ़ते आतंक से जनता त्रस्त है परन्तु सरकारें व प्रशासन मौन धारण किये हुये हैं?