समान नागरिक संहिता के पक्ष में खड़ा है देश

देश में लंबे समय से तुष्टीकरण की राजनीति के चलते समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कुछ राजनीतिक दल विवाद खड़ा करते आ रहे हैं। इस विवाद के पीछे मुस्लिमों में भय फैलाकर चुनावों में केवल वोट बटोरना ही असली मकसद होता है। मुस्लिमों के रहनुमा बनकर वोट बटोरने वालों ने मजहब को मुद्दा बनाकर सत्ता तो हासिल की पर मुस्लिमों को खुशहाल बनाने के लिए कोई नीति तैयार नहीं की। डा.भीमराव आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों ने भी उनकी विचारधारा, सपने और नीतियों पर ध्यान नहीं दिया। समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासियों में भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है। भारतीय जनता पार्टी देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिलाने के लिए समान नागरिक संहिता लागू कराने की प्रबल पक्षधर रही है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों में हाई कोर्ट बार-बार समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल पूछती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तो बार-बार समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने की राय दी थी। 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसले में शाह बानो के शौहर को उन्हें हर महीने 179.20 रुपये भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था। यह अलग बात है कि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था। अगस्त 2017 में तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज बताते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है।

तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद वहां की महिलाओं को संपति में अधिकार मिला। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले यह भ्रम फैला रहे हैं कि संपति में पुरुषों का अधिकार समाप्त हो जाएगा। इसी तरह का भ्रम नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्ट्रर को लेकर फैलाया गया था। दरअसल तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं में भाजपा के बढ़ते जनाधार के कारण मुस्लिमों को वोट बैंक समझने वाले राजनीतिक दलों में चिंता बढ़ रही है। केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में जनहितैषी योजनाओं के कारण भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी का विपक्षी दल मिलकर भी मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। मुस्लिमों में भ्रम फैलाकर विपक्षी दल उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे ही राजनीतिक दलों से सावधान रहने की जरूरत प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल की सभा में बताई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा के बूथ कार्यकर्ताओं की सभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि कुछ लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम भाई-बहन को काफी भ्रम हो रहा है। उन्होंने मुस्लिम भाई-बहनों को स्पष्ट तौर पर समझाया कि भारत के मुसलमानों को समझना होगा कि कौन से दल उन्हें भड़काकर उनका फायदा लेने के लिए बर्बाद कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता के नाम पर भड़काने का काम हो रहा है। समान नागरिक संहिता की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो तो क्या वह घर चल पाएगा क्या?'  प्रधानमंत्री का कहना था कि फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। लोग हम पर आरोप लगाते हैं लेकिन सच ये है कि यही लोग मुसलमान-मुसलमान करते हैं, अगर ये उनके सही मायने में हितैषी होते तो अधिकांश मुस्लिम परिवार शिक्षा, रोजगार में पीछे नहीं रहते।

प्रधानमंत्री मोदी के विपक्षी दलों को आइना दिखाने के बाद उनके बीच हायतौबा मचनी ही थी। सुन रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ एक सीट पर एक साझा उम्मीदवार तय करने के लिए बैठने वाले विपक्षी दलों के नेता अब समान नागरिक संहिता पर बातचीत करेंगे। मोदीजी ने तो उनका एजेंडा ही बदल दिया। भाजपा ने तो पिछले दो लोकसभा चुनावों में जारी घोषणापत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वायदा किया था। भाजपा की 2019 में लोकसभा में सीटें भी बढ़ी। 2019 में तो शिवसेना भी समान नागरिक संहिता पर बढ़चढ़ कर दावा कर रही थी। तो क्या अब शिवसेना कांग्रेस की हां में हां मिलाते हुए इसे विभाजनकारी बताएगी। अगर ऐसा हुआ तो उद्धव ठाकरे की राजनीति समझो खत्म हुई। समान नागरिक संहिता का विरोध करना तो कांग्रेस समेत सभी दलों पर भारी पड़ेगा।

अब देश की जनता विपक्षी दलों की सभी चालों को समझ चुकी है। संविधान का अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू का करने का अधिकार देता है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है तो  समान नागरिक कानून लागू में क्या आपत्ति हो सकती है। धर्म, मजहब, पंथ और वर्गों के आधार पर आप ईश्वर की आराधना अपने-अपने तरीके से करने की संविधान पूरी तरह स्वतंत्रता देता है पर विवाह और बच्चे पैदा करने के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए। अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने अनुसार धर्म को मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है। महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार देने वाला कानून होना चाहिए। भारतीय संविधान की ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है। उन्‍होंने संविधान सभा में कहा था समान नागरिक संहिता के लिए कई कानूनों का हवाला दिया जा सकता है। डा.आंबेडकर की राय को उस समय दरकिनार कर दिया गया। भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं। तुष्टीकरण के लिए धार्मिक आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया है। विधि आयोग ने नागरिक संहिता को लेकर फिर से राय मांगी थी। पिछले 14 दिन में साढ़े आठ लाख सुझाव दिए जा चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की जनता समान नागरिक संहिता लागू कराने की दिशा में आगे बढ़ा रही है।