सेना को दलों के ‘दलदल  से दूर रखना ही उचित

                देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों चुनावी हलचल क्या चल रही है गोया सत्ता के दावेदार सभी राजनैतिक दल अपने तुरूप के पत्ते इस्तेमाल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। राजनैतिक दलों की इस घिनौने घमासान का प्रभाव हमारे देश की सेना पर क्या पड़ रहा होगा हमारा समाज राजनेताओं के इस प्रकार के गैरजि़म्मेदाराना वक्तव्यों से कितना प्रभावित हो रहा होगा इस बात की किसी को कोई िफक्र नहीं है। सब की निगाहें सिर्फ इस बात पर टिकी हैं कि ऐसे कौन से हथकंडे अपनाए जाएं अथवा जनता के बीच जाकर ऐसे कौन से शोशे छोड़े जाएं जिनसे इनकी लोकप्रियता बढ़ सके और जनता इनपर भरोसा करते हुए किसी प्रकार इन्हें सत्ता की चाबी सौंप दे। अपने इन्हीं प्रयासों के तहत कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार लखनऊ में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में शरीक हो रहे हैं तथा अपने संबोधन में जय श्री राम और जय जय श्री राम के उद्घोष कर कुछ विशेष संकेत दे रहे हैं। कोई भारतीय सेना द्वारा गत् 29 सितंबर को नियंत्रण रेखा पर की गई सर्जिकल स्ट्राईक को इस प्रकार पेश कर रहा है गोया प्रधानमंत्री या उनके दल के नेताओं ने यह आप्रेशन अंजाम दिया हो। इस आशय की प्रचार सामग्री भी उत्तर प्रदेश में देखी जा रही है। कोई नेता इस चुनावी अवसर को दलित उत्पीडऩ के मुद्दों को उछालने का सुनहरा अवसर समझे हुए है तो कोई अल्पसं यक मतों को अपनी ओर आकर्षित करने की जी तोड़ कोशिश में लगा हुआ है। ज़ाहिर है इस प्रकार के भावनात्मक मुद्दों में देश व समाज से जुड़ी मु य समस्या अर्थात् विकास,शिक्षा,स्वास्थय, रोज़गार व मंहगाई जैसी बातें कहीं पीछे छूट जाती हैं। यहां तक कि जनता नेताओं से उनके द्वारा किए गए वादे न पूरे करने जैसे महत्वपूर्ण सवालों को भी पीछे छोड़ देती है और ऐसे ही भावनात्मक मुद्दों में उलझकर रह जाती है।

                29 सितंबर को हमारे देश के बहादुर जवानों ने नियंत्रण रेखा के समीप पाकिस्तान की सीमा के भीतर जाकर कई आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। इस आप्रेशन में दर्जनों आतंकियों के मारे जाने की भी खबर है। इस सर्जिकल स्ट्राईक के $फौरन बाद पाकिस्तान ने ऐसी किसी कार्रवाई का खंडन किया तथा पाक अधिकृत कश्मीर के जिन सीमावर्ती क्षेत्रों में यह कार्रवाई हुई बताई जा रही थी उन क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का दौरा कराया। और यह जताने की कोशिश की कि भारत द्वारा किए जा रहे सर्जिकल स्ट्राईक के दावे $गलत हैं और भारतीय सेना ने सीमा पार नहीं की है। भारत में भी इस विषय पर राजनीति होनी शुरु हो गई। जैसे ही सर्जिकल स्ट्राईक की सैन्य कार्रवाई की खबर सैन्य ऑप्रेशन के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह द्वारा देश और दुनिया को मीडिया के माध्यम से दी गई उसी समय सत्तारूढ़ दल की ओर से मोदी समर्थकों द्वारा नरेंद्र मोदी का छप्पन ईंच का सीना याद किया जाने लगा। गोया यह आप्रेशन सेना ने नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा या भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा किय गया हो। पिछले दिनों देश के रक्षामंत्री ने भी सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने तथा रक्षामंत्री के नाते स्वयं लेने की कोशिश की। जबकि वास्तव में इस ऑपे्रशन का पूरा श्रेय केवल हमारे देश की सेना को ही जाता है और जाना चाहिए। रक्षामंत्री मनोहर पारिकर ने यह भी कहा कि इस प्रकार की सर्जिकल स्ट्राईक पहली बार की गई है।

                उधर देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने सरकार के इन दावों को झृठा व $गैर जि़ मेदाराना $करार देेते हुए यह याद दिलाया कि ऐसी सर्जिकल स्ट्राईक कांग्रेस के शासनकाल में पहले भी होती रही हैं परंतु सैन्य कार्रवाई होने के नाते पार्टी ने कभी इसका श्रेय लेने का प्रयास नहीं किया। न ही इन कार्रवाईयों का ढिंढोरा पीटकर इनका चुनावी लाभ उठाने कीे कोशिश की गई। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने एक सितंबर 2011, 28 जुलाई 2013 और 14 जनवरी 2014 जैसी कुछ महत्वपूर्ण तिथियां भी याद दिलाईं जब सेना द्वारा पाकिस्तानी सीमा में सर्जिकल स्ट्राईक्स अंजाम दी गई थी। परंतु रक्षामंत्री बार-बार यही कह रहे हैं कि 29 सिंतबर से पहले कभी कोई सर्जिकल स्ट्राईक नहीं हुई और कांग्रेस जिसे सर्जिकल स्ट्राईक बता रही है वह बार्डर एक्शन टीम की कार्रवाई है। गोया पारिकर के कहने का भी यही आशय है कि इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है। हालांकि वे इसके श्रेय के लिए देश की 127 करोड़ जनता व भारतीय सेना का नाम भी ले रहे हैं।

                अब ज़रा दो मई 2011 के दिन को भी याद कीजिए जब विश्व का सबसे दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लाडेन पाकिस्तान के एबटाबाद स्थित बिलाल टाऊन में अमेरिकन नेवी के सील कमांडोज़ नामक विशेष दस्ते के हाथों एक बड़े सर्जिकल ऑप्रेशन में मारा गया था। उस समय से लेकर आज तक किसी ने भी उस ऑप्रेशन का श्रेय न तो ओबामा को देने की कोशिश की न ही ओबामा ने स्वयं इसका श्रेय लेने का प्रयास किया न ही ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी ने कभी इस ऑप्रेशन का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए अमेरिका में पोस्टर छापे गए। बजाए इसके आज दुनिया की ज़ुबान पर केवल एक ही नाम हैऔर वह है अमेरिकन सील कमांडोज़ का नाम जिसे दुनिया जानती भी है और इस ऑप्रेशन का श्रेय भी उसी विशेष सैन्य दस्ते को देती है। इसके अलावा जहां तक इस प्रकार के प्रचार का प्रश्र है कि 29 सितंबर की सर्जिकल स्ट्राईक पहली बार हुई है तो ऐसा प्रचारित करने वालों को देश की आज़ादी से लेकर अब तक के इतिहास की ऐसी अनेक घटनाओं को याद करना चाहिए जो देश में पहली बार घटी हों। उदाहरण के तौर पर भारत ने 1971 में पहली बार पाकिस्तानी सेना को इतने बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया था। पहली बार भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर डाले थे तथा अमेरिका की गीदड़ भभकी की परवाह भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नहीं की थी। परंतु बावजूद इसके कि 1971 के बाद के चुनावों में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता देश और दुनिया में का$फी बढ़ी परंतु इंदिरा गांधी या कांग्रेस पार्टी ने पाकिस्तान को विभाजित किए जाने या लगभग एक लाख पाक सैनिकों के समर्पण का श्रेय लेने की कोशिश कभी नहीं की। बजाए इसके देश उस समय के सेना के हीरो $फील्ड मार्शल जनरल मानेक शाह तथा जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के नामों की ही जय-जयकार करता रहा और आज भी करता रहता है। जबकि अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी समय इंदिरा गांधी के साहसिक $फैसले की तारीफ करते हुए उनकी तुलना देवी दुर्गा से की थी। यह किसी कांग्रेसी नेता द्वारा दी गई उपमा नहीं थी।

                आज जिस पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय लेने की कोशिश की जा रही है उस पाकिस्तान का प्रधानमंत्री कभी भारतीय प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण के समारोह में शरीक नहीं हुआ। परंतु नरेंद्र मोदी ने पहली बार नवाज़ शरी$फ को भारत बुलाकर एक नई परंपरा शुरु की। शाल और साड़ी का आदान-प्रदान किया गया। हद तो यह है कि उनकी नातिन की शादी तक में मोदी जी बिना किसी घोषणा के जा पहुंचे। भाजपा नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि इस प्रकार का प्रेम प्रदर्शन व घनिष्टता का व्यवहार भी पाकिस्तान के साथ किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने पहली बार दिखाया है। इसकी वजह क्या है और किन मजबूरियों के तहत यह सब किया गया यह भाजपा नेताओं अथवा नरेंद्र मोदी जी को स्वयं मालूम होगा। परंतु कुछ लोगों का यह मत है कि यह सारी कवायद व्यवसायिक घरानों के कहने पर की गई तथा इन रिश्तों का मकसद चंद व्यवसायिक घरानों को लाभ पहुंचाना था। सोचने की बात है कि जिस पाकिस्तान द्वारा पाले-पोसे गए आतंकी आए दिन हमारे देश की सेना, हमारे देश के हितों को यहां के बेगुनाह नागरिकों को निशाना बनाते रहते हों उस पाकिस्तान के हुक्मरानों के साथ कूटनैतिक व राजनैतिक रिश्ते तो किसी हद तक ठीक परंतु व्यक्तिगत रिश्तों की पींगें बढ़ाने का रहस्य आखिर क्या है?

                सभी राजनैतिक दलों को राष्ट्रहित में इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि वे धार्मिक व जातीय विषयों को,मंदिर-मस्जिद,चर्च व गुरुद्वारों को,भारतीय सेना अथवा पुलिस या अर्धसैनिक बलों की कार्रवाईयों को राजनैतिक जामा पहनाने की कोशिश न किया करें। इन सब बातों के बजाए इनका ध्यान अपने चुनावी वादों को पूरा करने पर ही केंद्रित रखना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय लेने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीने की चौड़ाई छप्पन ईंच प्रमाणित करने के बजाए यह बताना चाहिए कि दो वर्ष सत्ता में बीत जाने के बावजूद आम लोगों के बैंक खातों में पंद्रह लाख रुपये क्यों नहीं पहुंचे,मंहगाई की मार पहले से अधिक क्यों पडऩे लगी, देश का सांप्रदायिक सद्भाव इस हद तक क्यों बिगड़ गया है? बेरोज़गारी क्यों कम नहीं हो रही है? आदि।

(ये लेखक का अपना विचार हैै, आवश्‍यक नहीं है भारत वार्ता इससे सहमत हो)