सूखे पर सबकी आंखें गीली

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को जैसी मार लगाई है, वैसी कम ही लगाई जाती है। दस राज्यों में सूखे से पैदा हुई दुर्दशा पर जजों ने कहा है कि सरकार का रवैया शतुर्मुर्ग की तरह है। केंद्र ने संघीय-व्यवस्था की रेत में अपना सिर छिपा लिया है और सूखाग्रस्त राज्यों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। उसने कहा है कि 33 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं। लेकिन सरकार उन क्षेत्रों को सूखाग्रस्त घोषित नहीं कर रही है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक माह में राष्ट्रीय आपदा निवारण कोष का गठन करे, छह माह में आपदा निवारण सेना और तीन माह में आपदा सहायता कोष स्थापित करे। अदालत ने वर्तमान सरकार की खिंचाई करते हुए उस पर कई कानूनी प्रावधानों की उपेक्षा का आरोप भी लगाया।

अदालत द्वारा केंद्र सरकार की यह कटु आलोचना अतिरंजित दिखाई पड़ती है, क्योंकि सरकार सारे मामले को न तो छिपा रही है और न ही उसने शतुर्मुर्ग की तरह अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। प्रधानमंत्री सूखे के मामले में मुख्यमंत्रियों से आये दिन बात कर रहे हैं। अभी तक केंद्र सरकार ने लगभग 13 हजार करोड़ रु. की मदद राज्यों को भिजवा दी है। सभी राज्य सूखे से निपटने के लिए कई-कई हजार करोड़ रु. की मांग कर रहे हैं। अब अदालत के फैसले के बाद आशा की जा सकती है कि केंद्र इस राशि में कई गुना वृद्धि कर देगा! केंद्र से यह भी अपेक्षा की जाती है कि भाजपा और गैर-भाजपा राज्यों में कोई भेद-भाव नहीं करेगा। यह भी जरुरी है कि किसी स्थान में सूखा पड़ा है या नहीं, यह तय करने के 60 साल पुराने मानदंडों को भी सरकार बदलेगी।

इस वर्ष जो सूखा पड़ा है, वह 1966-67 में पड़े सूखे से भी अधिक गंभीर है। लगभग 10 करोड़ भूखे-प्यासे ग्रामीण लोग शहरों में घुस आने के लिए मजबूर होंगे। यदि सूखाग्रस्त लोगों की शीघ्र मदद नहीं की गई तो हजारों लोग मौत के मुंह में चले जाएंगे। देश के 265 जिलों और डेढ़ लाख गांवों में सूखा पड़ा है। साल भर में 2000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उद्योगों से संबंधित संगठन ‘एसोचेम’ के मुताबिक इस सूखे से देश को लगभग 6 लाख 50 हजार करोड़ रु. की हानि होगी। कम से कम एक लाख करोड़ रु. प्रति माह खर्च करना होगा, लोगों को राहत पहुंचाने के लिए। यह थोड़ा दुखद है कि हमारे सर्वोच्च न्यायालय को उस केंद्र सरकार को मार लगानी पड़ रही है, जिसे भूकंप के समय नेपाल की चटपट मदद करने के लिए सारी दुनिया की तारीफ मिली थी। यदि मोदी सरकार नेपाल के लिए इतना कर सकती है तो भारत के लिए क्यों नहीं करेगी? योगेंद्र यादव और डा. आनंद कुमार के संगठन ‘स्वराज अभियान’ को बधाई कि उन्होंने सूखे की याचिका लगाई और देश की आंखें गीली कर दीं। सरकार तो जो करेगी सो करेगी, भारत के शेष 100 करोड़ लोग आगे क्यों नहीं आते?