सिर्फ मायावती क्यों, सभी क्यों नहीं?

       दिल्ली की एक बैंक में मायावती की बसपा का एक खाता पकड़ा गया है, जिसमें नोटबंदी की घोषणा के दो दिन बाद ही 104 करोड़ रु. जमा हुए। अब इस खाते की जांच होगी। क्या खाक जांच होगी? बसपा ही क्यों, सभी पार्टियां बिल्कुल स्वच्छंद हैं, अरबों-खरबों रु. अपने पास नकद या बैंकों में रखने के लिए! हमारी राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार की अम्मा हैं। आप अकेली मायावती को कैसे पकड़ेंगे? वह दिखा देंगी, कई हजार दानदाताओं के नकली नाम, जिन्होंने 20 हजार रु. से कम का चंदा दिया है।

       चुनाव आयोग ने 20 हजार से कम चंदे को बेनामी होने की छूट दी है। इस बेनामी छूट का फायदा उठाकर भाजपा और कांग्रेस ने अपने हजारों करोड़ रू के काले धन को सफेद कर लिया है। इस चोर दरवाजे में कौनसी पार्टी है,जो अपनी दुम दबाकर नहीं निकली है? यहां तक कि भारत की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां, यह दावा नहीं कर सकतीं कि उनके हाथ मैले नहीं हैं। मायावती के पास सिर्फ 104 करोड़ निकले, यह अपने आप में बड़ी उलट-खबर है।

उत्तरप्रदेश में चार सौ विधायक सिर्फ 100 करोड़ याने क्या सिर्फ 25-25 लाख रु. में चुनाव लड़ लेंगे? यदि एक-एक विधायक बहुत कंजूसी करे तो भी उसे 3 से 5 करोड़ रु. चाहिए। याने मायावती के पास 2000 करोड़ तो होने ही चाहिए तो अब कल्पना कीजिए कि भाजपा, सपा और कांग्रेस के पास कितने-कितने हजार करोड़ रु. होंगे?

       यदि सरकार में दम हो तो इन सभी पार्टियों के बैंक खाते वह क्यों नहीं चेक करवाती है? सिर्फ मायावती का ही क्यों? अभी तो दिल्ली का (वह भी एक ही खाता) चेक हुआ है। जरा लखनऊ के खाते चेक करवा कर देखे जाएं। पार्टियों के ही नहीं, सभी नेताओं और उनके पिछलग्गुओं व नौकर-चाकरों के भी खाते चेक करवाकर देखे जाएं। इस देश के गरीब और भोले लोगों की आंखे फटी की फटी रह जाएंगी।

        आज खबर है कि अरुणाचल के दो बैंक मेनेजरों ने आत्महत्या कर ली है, क्योंकि नेताओं और सेठों ने उन पर दबाव डाल कर उनके बैकों में करोड़ों का काला धन बेनामी ढंग से जमा करवा दिया था। अभी तक तो भ्रष्टाचार के पूज्य पिताजी याने हमारे किसी नेता की आत्महत्या की खबर तो हमने नहीं पढ़ी है। यदि नरेंद्र मोदी और भाजपा अपने सारे चंदे को उजागर करने का सत्साहस कर सकें तो वे भारत के इतिहास में सार्वजनिक नैतिकता का नया अध्याय लिखेंगे।