राजनीति के आइने में रामदेव

बाबा रामदेव क्या नैतिकता के आधार पर इस योग्य हैं कि देश की जनता उनकी बातों को ध्यान से सुने और उसपर अमल करे? तमाम संदिग्ध परिस्थितियों व अनैतिक कार्यों में संलग्र होने के बावजूद क्या उनपर यह शोभा देता है कि वे जनता को काला धन, भ्रष्टाचार, सत्ता परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन तथा व्यवस्था में पारदर्शिता लाने जैसे गंभीर विषयों पर भाषण देते फिरें? कम से कम एक तपस्वी,त्यागी व सन्यासी के रूप में स्वयं को जनता के सामने पेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को यह शोभा नहीं देता कि वह स्वयं तो भोग-विलास व व्यवसायिक तथा धन संग्रह करने वाले कार्यकलापों में हर व$क्त संलिप्त रहे तथा अपने गेरूए वस्त्र के प्रभाव मात्र से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर आम लोगों में तथाकथित ज्ञान की वर्षा करता रहे तथा अपनी ओर देखे बिना दूसरों पर उंगलियां उठाता फिरे?

योग विद्या के प्रचार-प्रसार व प्रशिक्षण के बहाने देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने वाले बाबा रामदेव अपनी योग क्रिया से अर्जित की गई लोकप्रियता की नाव पर सवार होकर अब उसे राजनीति के क्षेत्र में भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। पहले तो उन्हें यह गलतफहमी हो चुकी थी कि पूरा देश ही चूंकि उनसे योग सीखने लगा है इसलिए देश के 125 करोड़ लोग उनके अनुयायी बन चुके हैं। वे अक्सर यह बात दोहराते भी रहते थे। और उनकी इसी गलतफहमी ने उन्हें राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी नामक एक राजनैतिक संगठन खड़ा किए जाने की भी प्रेरणा दी थी। 2009 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के बैनर तले चुनावों के दौरान अपनी ज़मीन तलाशने का काम भी शुरु किया था। इसके लिए सदस्यता अभियान भी चलाया गया था। इनके समर्थक 2009 में यह कहते भी सुने जा रहे थे कि 2014 में राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी पूरे देश में लोकसभा चुनाव लड़ेगी। परंतु लगता है समय रहते बाबा रामदेव की व उनके समर्थकों की आंखें खुल गईं और उन्होंने किसी घोर अपमानजनक  स्थिति पैदा होने से पूर्व ही राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के नाम को ही लगभग समाप्त कर दिया। मगर इसके बावजूद रामदेव ने अपनी राजनैतिक सक्रियता कम  नहीं की। बजाए इसके वे सजे-सजाए भाजपा के मज़बूत विपक्षी मंच पर चढ़ बैठे। यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यदि यूपीए 2014 में सत्ता से बाहर का रास्ता देखती है और उसे मंहगाई व भ्रष्टाचार जैसे आरोपों का सामना करते हुए सत्ता छोडऩी भी पड़ती है तो निश्चित जानिए कि बाबा रामदेव कांग्रेस की उस संभावित हार का सेहरा अपने सिर पर बांधने से कतई बाज़ नहीं आने वाले।

बहरहाल,बाबा रामदेव ने जिस समय अपने योग समर्थकों,योग प्रशिक्षुओं व अपने बीमार मरीज़ों के समक्ष राजनीति की बानगी पेश करनी शुरु की थी उस समय इनके मंच की शोभा बढ़ाने के लिए कांग्रेस पार्टी के नेतागण भी शामिल हुआ करते थे। वास्तव में आज रामदेव के सैकड़ों करोड़ के साम्राज्य के विस्तार में भी कांग्रेस पार्टी व इसके कई प्रमुख नेताओं का बड़ा हाथ है। धीरे-धीरे इन्होंने अपना साम्राज्य इतना अधिक बढ़ा लिया कि यह  कई नेताओं व राजनैतिक दलों की नज़रों में खटकने लगे। स्वयं अथाह धन-संपत्ति योग व अपने योग आधारित अन्य व्यवसायों के माध्यम से जुटाने वाले  रामदेव ने अपनी धन-संपदा की ओर से जनता का ध्यान बंटाने के लिए उल्टे विदेशों से काला धन वापस लाए जाने जैसा मुद्दा उछालना शुरु कर दिया। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी ने उनका खुलकर साथ देना शुरु कर दिया। और यह साथ केवल ज़ुबानी जंग या जनसमर्थन जुटाने तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि भाजपा शासित राज्यों से बाबा को सत्ता का पूर्ण सहयोग भी प्राप्त होने लगा। और इसी सिलसिले में उन्होंने हिमाचल प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार से अपने ट्रस्ट के नाम एक बड़ी ज़मीन भी आबंटित करवा ली।

रामदेव की राजनैतिक दखलअंदाज़ी व भारतीय जनता पार्टी की उनपर होने वाली नज़र-ए-इनायत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों एकड़ ज़मीन पलक झपकते ही $काबू करने में सफल रहे जबकि तमाम बेघर हिमाचली अपने गुज़र-बसर के लिए भी शीघ्र ज़मीन मुहैया नहीं कर पाते। भाजपा का यही कर्ज उतारने के लिए इन दिनों भी रामदेव भाजपा शासित राज्यों में ही ज़्यादातर घूम-घूम कर कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध ज़हर उगल रहे हैं। और वे ऐसा करें भी क्यों न? एक ओर तो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह उन्हें ठग कहकर संबोधित करते हैं तो दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा इन्हें आबंटित की गई ज़मीन वर्तमान कांग्रेस सरकार इनसे वापस छीन लेती है। उधर रामलीला मैदान से एक महिला के वस्त्र पहनकर पुलिस को पीठ दिखाकर भागना उन्हें आज तक नहीं भूलता। ऐसे में रामदेव के कांग्रेस विरोध को कम से कम नाजायज़ तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता?

 

इन दिनों रामदेव ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने का बीड़ा उठाया हुआ है। वे अपने कनखल स्थित आश्रम से यह कहकर निकल चुके हैं  कि अब वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाकर ही वापस आश्रम में कदम रखेंगे। मोदी के समर्थन के प्रति उनकी दीवानगी का अंदाज़ा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ समय पूर्व जब नरेंद्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने या न बनाने को लेकर पार्टी के भीतर कशमकश चल रही थी उसी दौरान बाबा रामदेव का यह बयान आया था कि यदि भाजपा मोदी को पार्टी की ओर से भावी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करती तो वे भाजपा के समर्थन में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। किसी मोदी समर्थक भाजपाई नेता ने भी ऐसे शब्द अपने मुंह से नहीं निकाले थे। रामदेव के इस बयान को सुनने के बाद कांग्रेस के दिग्विजय सिंह सहित उन सभी नेताओं के बयान सही प्रतीत होने लगे जिनमें कांग्रेस नेताओं द्वारा रामदेव को संघ व बीजेपी का एजेंट बताया जाता था। उस समय भी रामदेव अपने विशेष अंदाज़ में यह कहा करते थे कि मेरे पास तो सभी पार्टियों के लोग आते हैं। परंतु अब वे दूसरी पार्टियों के लोगों के आने का दावा छोड़ चुके हैं। और केवल एक ही मिशन यानी मोदी को पीएम बनाओ की मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं। और साम-दाम,दंड-भेद किसी भी रूप से कांग्रेस पार्टी से अपने अपमान का बदला लेने, अपनी संपत्ति के छीने जाने की भड़ास निकालने के लिए कांग्रेस को  सत्ता से बेद$खल करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। परंतु बाबा रामदेव के कांग्रेस हटाओ अभियान तथा उनके अपने व्यक्तित्व के मध्य तुलना करना बहुत ज़रूरी है।

 

बाबा रामदेव विदेशों से भारतीयों का जमा काला धन देश में वापस लाकर देश को गरीबी से मुक्त कराने का दम भरते हैं। उनके इस मकसद के परिपेक्ष में कुछ बातें बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि उनके योग दरबार में शरीक होने वाले अधिकांश लोग अमीर,धनाढय व व्यापारी वर्ग के ही होते हैं। जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर योग शिक्षा दी जाती है,उन्हें दवाईयां आदि वितरित (बेची)की जाती हैं, उन्हें बाबा रामदेव से मिलवाया जाता  है तथा उनके राजनैतिक मिशन से उन्हें जोडऩे का प्रयास किया जाता है। दूसरी  बात यह कि कई बार इनकी योग फार्मेसी द्वारा निर्मित दवाईयां बिना उपयुक्त टैक्स अदा किए ट्रकों पर इधर-उधर आती-जाती पकड़ी जा चुकी हैं। इनकी $फार्मेसी इसका जुर्माना भी भर चुकी है। नेपाली मूल के इनके परम सहयोगी बालकिशन गलत सूचना देकर पासपोर्ट प्राप्त करने के आरोप में पकड़े व जेल जा चुके हैं। बाबा रामदेव के गुरु शंकरदेव गत् कई वर्षों से अत्यंत संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हैं। जांच एजेंसियां इस मामले की गहन जांच-पड़ताल कर रही हैं। इस मामले में रामदेव स्वयं संदिग्ध हैं। इसके अतिरिक्त अभी कुछ दिन पूर्व ही इन्हीं के आश्रम के एक कर्मचारी ने रामदेव के भाई पर उसे अपहृत करने व उसके साथ बुरी तरह मारपीट करने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं बल्कि मीडिया के समक्ष उसने अपने शरीर पर रामदेव के भाई व उसके समर्थकों द्वारा यातना पहुंचाए जाने के निशान भी दिखाए हैं। उधर भ्रष्टाचार  के विरुद्ध संगठित होकर लडऩे का बाबा रामदेव व अन्ना हज़ारे का संयुक्त संकल्प भी बाबा रामदेव का भाजपा के प्रति झुकाव के चलते तथा कांग्रेस की संभावित पराजय का सेहरा रामदेव द्वारा अपने अकेले के सिर पर बांधने की उनकी आकांक्षा की बदौलत टूट चुका है।