मोदीः देर आयद, दुरुस्त आयद!

      8-9 अक्तूबर को जब नोटबंदी की घोषणा हुई, उसी दिन मैंने कहा था कि यह सरकार 30 दिसंबर के एक सप्ताह पहले यह कर सकती है कि सभी काले धन वालों को बड़ी छूट दे दे। सरकार ने दिसंबर तो क्या, नवंबर में ही यह छूट देने के संकेत उजागर कर दिए है। पता चला है कि जो भी अपना काला धन बैकों में जमा कराएगा, यदि उसका स्त्रोत उसने बता दिया तो उसे 50 प्रतिशत आयकर दे कर छुटकारा मिल जाएगा। यदि वह स्त्रोत छिपाना चाहेगा या ठीक से नहीं बताएगा तो उसे 60 प्रतिशत कर भरना पड़ेगा और जुर्माना भी। यदि आयकर अधिकारियों ने किसी गुप्त धन को पकड़ लिया तो उस पर 90 प्रतिशत कर लग जाएगा।

      सरकार ने इतनी ढील एक माह पहले ही क्यों दे दी? इसीलिए दे दी कि यदि वह ढील नहीं देती तो 30 दिसंबर तक उसके हाथ करोड़ों-अरबों तो क्या, कौडि़यां भी नहीं लगतीं। लोग इतनी तेज रफ्तार से काले को सफेद कर रहे हैं कि सरकार हाथ मलते ही रह जाती। सरकार ने जून में जब 45 प्रतिशत कर की छूट देकर लोगों से कहा था कि अपना काला धन उजागर कर लो तो चार माह में सिर्फ 65 हजार करोड़ रु. सामने आए लेकिन अभी दो हफ्तों में ही जन-धन बैंकों में 65 हजार करोड़ रु. आ गए। कोई आश्चर्य नहीं कि 30 दिसंबर तक यह राशि दो-तीन लाख करोड़ हो जाए।

     सरकार इस पर एक कौड़ी भी टैक्स नहीं कमा पाएगी। इसके अलावा भी करोड़ों लोगों ने किराए की कतारें लगवा कर अरबों रु. के नए नोट हड़प लिए हैं। मोदी की ‘महान’ और ‘क्रांतिकारी’ पहल को उन्होंने शीर्षासन करा दिया है।

     यदि पहले ही दिन मोदी नोटबंदी के साथ-साथ छिपे धन को उजागर करने पर 50 प्रतिशत छूट की घोषणा कर देते तो अभी तक पता नहीं कितने अरब-खरब का काला धन उजागर हो जाता। सरकार का खजाना टैक्स से भर जाता। अरबों-खरबों का काला धन, जो विदेशों में भी छिपा हुआ है, उसका भी कुछ हिस्सा जरुर प्रकट हो जाता। वह सारा अतिरिक्त खजाना भारत के लोगों की शिक्षा और चिकित्सा पर खर्च हो जाता और नए उद्योग-धंधों में लग जाता तो भारत की गरीबी अगले पांच साल में ही काबू में आने लगती। लेकिन नरेंद्र मोदी की नींद अब भी जल्दी ही खुल रही है, यह अच्छी बात है।

     उन्हें अपना अडि़यल रवैया छोड़कर लचीलापन और व्यावहारिक रुख अपनाना चाहिए। पिछले ढाई हफ्तों में अर्थ-व्यवस्था को जो ठेस लगी है, उसकी भरपाई वे अगले ढाई साल तक शायद नहीं कर पाएंगे फिर भी अभी तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद पर जनवरी के बाद भी टिके रहने का रास्ता निकाल लिया है। उन्होंने 8 अक्तूबर को ऐसी छलांग मार दी थी कि वे अपने प्रधानमंत्री पद और अर्थव्यवस्था दोनों को ही ले बैठते। अब शायद दोनों ही बच जाएं।