भारतीय रेल:अहितकारी साबित होती हितकारी योजनाएं

                भारतीय रेल भारत सरकार का एक ऐसा विशाल प्रतिष्ठान है जहां विकास व रख-रखाव के मद्देनज़र 12 महीने व 24 घंटे कोई न कोई नए निर्माण अथवा मरम्‍मत के कार्य होते ही रहते हैं। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए तथा बढ़ती हुई जनसं या के चलते आए दिन जहां रेलगाडिय़ों की सं या में इज़ाफा होता जा रहा है वहीं प्लेटफार्म की सं या या उनकी लंबाई कहीं न कहीं बढ़ाई जा रही है। इसी प्रकार रेलगाडिय़ों की निरंतर तेज़ होती जा रही रफ्तार के चलते तथा रेल लाईनों के मार्ग में आने वाले रेल फाटकों को समाप्त करने हेतु जगह-जगह अंडरपास अथवा भूमिगत मार्ग भी बनाए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यह सब कवायद भारत सरकार द्वारा जनता की सुविधाओं के लिए तथा जनता की सुरक्षा व उसके हितों को ध्यान में रखते हुए की जा रही हैं। परंतु कभी-कभी इन्हीं निर्माण कार्यों से संबंधित कई योजनाएं  ऐसी भी दिखाई देती हैं जो भले ही जनता के फायदे,उनकी सुरक्षा तथा हितों के लिए क्यों न होती हों परंतु तकनीकी दूरअंदेशी का अभाव होने के चलते यह हितकारी साबित होने के बजाए अहितकारी साबित होने लगती हैं।

                मिसाल के तौर पर पिछले दिनों रेल विभाग द्वारा अंबाला-सहारनपुर रेल मार्ग पर कई अंडरपास अथवा भूमिगत मार्ग निर्मित किए गए। ज़ाहिर है इन भूमिगत रास्तों का मतलब यही है कि रेल गुज़रने के समय रेल फाटक पर रेल गुज़रने का इंतज़ार करने वाली जनता को अपना समय $खराब न करना पड़े और वह रेलवे लाईन के भूमिगत मार्ग से गुज़र कर बिना समय गंवाए अपने गंतव्य तक पहुंचे। इस प्रकार के रेलवे निर्माण का कारण  भी यही होता है कि रेलवे फाटकों की सं या को कम किया जाए तथा इन फाटकों पर आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं को होने से रोका जा सके। नि:संदेह यह भारतीय रेल विभाग द्वारा किए जाने वाले जनहितकारी प्रयास हैं। परंतु यदि इसी प्रकार की योजनाएं तकनीकी दूरदर्शिता के अभाव में अमल में लाई जाती हैं तो इसका लाभ मिलने के बाजए जनता को और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। जैसाकि इन दिनों अंबला-सहारनपुर रेल मार्ग पर बने कई भूमिगत मार्ग के निर्माण में देखा भी जा सकता है।

                अंबाला-सहारनपुर रेल सेक्शन पर बने कई नए अंडरपास अथवा भूमिगत मार्ग ऐसे हैं जो तैयार तो कर दिए गए हैं परंतु इनका उपयोग नहीं किया जा सकता। इनमें कुछ अंडरपास तो ऐसे हैं जो रेलवे लाईन के नीचे तैयार कर दिए गए हैं जबकि उनको दोनों ओर के मु य मार्गों से अभी तक जोड़ा नहीं जा सका। जिसकी वजह से जनता उस मार्ग का प्रयोग नहीं कर सकती। इसी प्रकार इन्हीं में से कई भूमिगत मार्ग ऐसे भी हैं जिनमें तकनीकी दूरदर्शिता के अभाव के चलते बरसात का पानी कुछ इस प्रकार भर गया है गोया वे अंडरपास न होकर कोई तालाब हों। आसपास के गांव के बच्चे उस रुके हुए बरसाती पानी में तैरते व उछल-कूद करते देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं बल्कि बरसात का यह रुका हुआ पानी मच्छर पैदा करने तथा दूसरी कई बीमारियां फैलाने का कारक भी बना हुआ है। इसके अलावा सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद आम लोग इस मार्ग का सद् उपयोग भी नहीं कर पा रहे हैं। सवाल यह है कि रेलवे लाईन के नीचे से होकर गुज़रने वाले इस प्रकार के भूमिगत मार्गों के निर्माण से पूर्व क्या तकनीशियंस को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि इन रास्तों में बरसात का पानी भी ज़रूर इकट्ठा होगा और इस निर्माण कार्यों में लगे अभियंताओं को बरसाती पानी की निकासी के कुछ उपाय भी इस निर्माण कार्य से पहले सुनिश्चित कर लेने चाहिए? इस योजना से जुड़े तकनीशियनों की इसी लापरवाही के परिणामस्वरूप करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यह रास्ते न केवल बंद पड़े हुए हैं बल्कि इनके कृत्रिम तालाब बन जाने के कारण इनमें कभी कोई हादसा भी हो सकता हैं। कहां तो सरकार द्वारा मच्छरों की रोकथाम के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर यह विज्ञापन किए जाते हैं कि जनता अपने घरों में व आसपास अनावश्यक जल को इकट्ठान होने दे। परंतु यहां तो सरकारी तकनीशियनों की लापरवाही के चलते तथा उनमें दूरदर्शिता के अभाव के कारण अनावश्यक रूप से कृत्रिम तालाब बने दिखाई दे रहे हैं। आखिर इस प्रकार की लापरवाही,गैरजि़म्मेदारी तथा अदूरदर्शिता का जि़ मेदार कौन है?

                इसी प्रकार की एक दूसरी गैरजि़म्मेदारी व लापरवाही का नतीजा इसी अंबाला-सहारनपुर रेल सेक्शन पर पडऩे वाले बराड़ा रेलवे स्टेशन पर देखा जा सकता है। इस रेलवे स्टेशन पर कुछ समय पूर्व केवल दो प्लेट$फार्म ही हुआ करते थे। रेलगाडिय़ों की बढ़ती सं या को देखते हुए तथा तेज़ गति की रेलगाडिय़ों या त्वरित ढुलाई में लगी मालगाडिय़ों को पास देने की गरज़ से एक तीसरी रेलवे लाईन भी प्लेटफार्म नंबर 2 के दूसरी ओर बिछाई गई जिसे प्लेटफार्म सं या तीन का नाम दिया गया है। आज इस प्लेटफार्म का बखूबी सद्पयोग हो रहा है तथा जनता को इसके लाभ मिल रहे हैं व रेल विभाग भी इस नए प्लेटफार्म के निर्माण से सुविधा उठा रहा है। परंतु रेल विभाग के तकनीशियनों में दूरदर्शिता की कमी के चलते यही तीसरी रेल लाईन आम लोगों के लिए जानलेवा भी बनी हुई है। इसका कारण यह है कि बराड़ा नगर जोकि रेलवे स्टेशन के दोनों ओर बसा हुआ है, यहां स्टेशन पर आने-जाने वाले यात्री स्टेशन की दोनों ही दिशाओं से आते हैं। ऐसे में यदि कोई यात्री गाड़ी अथवा माल गाड़ी नवनिर्मित प्लेटफार्म सं या तीन पर खड़ी हो जाती है तो प्लेटफार्म नंबर एक अथवा दो की ओर से नगर के प्लेटफार्म सं या तीन की ओर जाने वाले लोगों के लिए लाईन नंबर तीन पार करने का कोई उपयुक्त साधन नहीं है। परिणामस्वरूप जनता को दो डिब्बों के बीच से होकर एक बड़ा जोखिम मोल लेते हुए रेल लाईन को पार करना पड़ता है। ऐसा करते समय यदि खुदा न  वास्ता रेलगाड़ी चल पड़े और लाईन पार कर रहा कोई व्यक्ति ध्यान न दे तो उसे अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। या फिर दो डिब्बों के बीच से कूद-फांद कर लाईन पार करते समय किसी का पैर फिसल सकता है तथा उसे गंभीर चोटें भी आ सकती हैं। कई लोग ऐसा करते घायल भी हो चुके हैं। कई स्थानीय समाचार पत्रों में इस समस्या से संबंधित समाचार भी प्रकाशित हो चुके हैं। परंतु रेल विभाग द्वारा इस विषय पर कोई ध्यान अभी तक नहीं दिया गया।

                बराड़ा वह स्थान है जहां दशहरे के अवसर पर विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इस अवसर पर यह विशाल पुतला लगभग एक सप्ताह तक बराड़ा रेलवे स्टेशन के समीप स्थित एक विशाल मैदान में जनता के दर्शनार्थ खड़ा रहता है। इस दौरान दूर-दराज़ से लाखों लोग सडक़ तथा रेल मार्ग से ही बराड़ा आते-जाते हैं। ज़ाहिर है इन लोगों को भी इस असुविधा का सामना करना पड़ता है। इस असुविधा के लिए भी बराड़ा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन पर रेल लाईन बिछाने में लगे अभियंताओं की टीम की अदूरदर्शिता भी मु य कारण है। दरअसल रेलवे स्टेशन पर ब्रिटिशकाल का बनाया हुआ एक ओवर ब्रिज है जो प्लेट$फार्म नंबर एक व दो को जोड़ता है। जब कभी प्लेटफार्म सं या एक अथवा दो पर कोई ट्रेन खड़ी होती है तो प्लेटफार्म नंबर तीन को पार करने के लिए तथा नगर के दूसरी ओर जाने के लिए किसी प्रकार के पुल अथवा भूमिगत मार्ग की कोई व्यवस्था नहीं है। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को केवल लाईन नंबर तीन अवैध रूप से पार करके ही नगर के दूसरी ओर जाना पड़ेगा। यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं कि इस प्रकार के असुविधाजनक तरी$कों से महिलाओं,बुज़ुर्गां, बीमार तथा विकलांग लोगों को कितनी परेशानियों को सामना करना पड़ता है।

                यदि प्लेटफार्म सं या तीन पर रेल लाईन बिछाने से पहले प्लेटफार्म पर बने प्राचीन ओवरब्रिज को ही और लंबा कर प्लेटफार्म सं या तीन के उस पार तक बढ़ा दिया जाता तो आज लोगों को इस कद्र परेशानी का सामना न करना पड़ता और उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर रेलवे लाईन पार करने की तकलीफ न उठानी पड़ती। ठीक उसी तरह जैसे कि यदि रेलवे लाईन के नवनिर्मित अंडरपास में इकट्ठा हुए बरसाती पानी की निकासी की योजना यदि पहले से बनाई गई होती तो यह मार्ग आज प्रयोग में लाए जा रहे होते और जनता को इससे पूरी सुविधा मिल रही होती। परंतु आज  ऐसा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यह तय करना ज़रूरी है कि इस प्रकार की अदूरदर्शिता व लापरवाही के जि़ मेदार लोग आखिर हैं कौन? इसमें केंद्र सरकार की या रेल मंत्रालय की नीयत में तो कोई खोट नज़र नहीं आता। परंतु इन योजनाओं से जुड़े तकनशियन व अभियंता इस प्रकार की लापरवाही के लिए अपनी जि़ मेदारी से बच भी नहीं सकते और ऐसे ही $गैरजि़ मेदार व अदूरदर्शी अभियंतताओं की वजह से भारतीय रेल की इस प्रकार की अनेक हितकारी योजनाएं अहितकारी साबित हो रही हैं।