भारतमाता की जय और जयहिंद

इत्तेहादे-मुसलमीन पार्टी के विधायक वारिस पठान को महाराष्ट्र विधानसभा ने मुअत्तिल कर दिया है, क्योंकि उन्होंने कह दिया कि मैं ‘भारत मां की जय’ नहीं बोलूंगा। सारे विधायक पठान के दुराग्रह से इतने विचलित हो गए कि उन्होंने नियम-वियम की कोई परवाह नहीं की और उन्हें निकाल दिया गया। इस मुद्दे पर भाजपा, कांग्रेस और पवार-पार्टी सब एक हो गए। इस एकता पर मैं सभी पार्टियों को बधाई देता हूं। ऐसी एकता का प्रदर्शन वे सभी राष्ट्रहित के मुद्दों पर करें तो देश का नक्शा ही बदल जाए।

लेकिन मैं इन सभी विधायकों से पूछता हूं कि उन्होंने पठान से यह आग्रह क्यों किया कि वह भारतमाता की जय बोले ही। यदि वह नहीं बोलना चाहता है तो न बोले। उसने या उसके नेता असद ओवैसी ने यह नहीं बताया कि जय नहीं बोलने का कारण क्या है? यही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने इस नारे को लोकप्रिय बनाने की बात कही थी। इसका अर्थ यह हुआ कि इस नारे का नहीं, उन्हें भागवत का विरोध करना है। जरुर करें। भारत में इसकी पूर्ण स्वतंत्रता है लेकिन क्या वे भागवत की हर बात का विरोध करेंगे?

ओवैसी कहते हैं कि यह संविधान में नहीं लिखा है कि ‘भारतमाता की जय’ बोलना चाहिए तो उनसे कोई पूछे कि क्या संविधान में कहीं लिखा है कि वे जब संसद या विधानसभा में जाएं तो वे कपड़े पहनकर ही जाएं? ओवैसी और पठान, दोनों ने अपनी देशभक्ति पर खम ठोका है। यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें क्या यह पता है कि अपने देश या पृथ्वी या राष्ट्र को माता या पिता कहना इस्लाम के विरुद्ध नहीं है। यह मूर्ति-पूजा नहीं है। इस्लामी देशों में अपनी जन्मभूमि को अपना मादर-ए-वतन या अपने पिदर-ए-वतन (पितृभूमि) कहा जाता है। हजरत मुहम्मद के पौत्र इमाम सज्जाद ने वही कहा है, जो वेद में कहा गया है। सज्जाद ने कहा है कि धरती तुम्हारी मां है। उसकी रक्षा करो। वेद कहता है, ‘माता पृथिव्या पुत्रोह! याने पृथ्वी मां है। मैं उसका पुत्र हूं।’

इस तर्क के बावजूद यदि कोई व्यक्ति ‘भारत माता की जय’ बोलने पर एतराज़ करता है तो उस पर गुस्सा करने की बजाय उस पर तरस खाया जाना चाहिए, क्योंकि वह अपना नुकसान खुद कर रहा है। वह अपने आपको एक अहसान फरामोश बेटा सिद्ध कर रहा है। यदि कोई मुसलमान नेता इस नारे का विरोध करता है तो वह अपने आपको और अपनी पार्टी को तो बदनाम कर ही रहा है, वह आम मुसलमान का जीना भी दूभर कर रहा है। ‘भारतमाता की जय’ में कहीं कोई सांप्रदायिकता की छाया भी नहीं है जबकि ‘जयहिंद’ में से ‘हिंद’ निकालिए और उसमें से ‘हिंदू’ अपने आप निकल आएगा। आप ‘जयहिंद’ बोलकर क्या भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं कर रहे हैं? अगर संघ खतरनाक है तो आप उससे भी ज्यादा खतरनाक हैं। मेरे लिए तो जैसी ‘भारतमाता की जय’, वैसा ही ‘जयहिंद’। देशभक्ति पर भी हम संप्रदाय और भाषा की छुरियां क्यों चला रहे हैं?