नैतिकता बची नहीं, भलमनसाहत जाती रही

कहने को तो स्वतंत्र हुए हम 64 बसंत देख चुके हैं लेकिन जब भी जालिम अंग्रेजों का ख्याल आता है तब-तब अनायास ही हमें अपने भारतीय जल्लाद तथाकथित नेता अनायास ही याद आ जाते हैं जब भी मैं दोनों के मध्य तुलना करती हूं तो भारतीय नेताओं को सबसे निचले पायदान पर ही पाती हूं। ऐसा भी नहीं है कि इन दोनों समूहों से मेरी कोई व्यक्तिगत् रंजिश हो, पर न जाने क्यों भारतीय नेताओं में ईमानदारी की कमी ही पाती हूं। रहा सवाल देशभक्ति का तो वो इन्हें दूर-दूर तक नहीं छूपाती हैं। कभी-कभी इसकी एक्टिंग जरूर अच्छी कर लेते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सभी बेकार है, निकृष्ट हेैं, जनता के धन के लुटेरे हैं, बलात्कारी या अपराधी है लेकिन हां ऐसे नेताओं की जमात निःसंदेह अधिक है। इन 64 वर्षों में नेताओं के चाल-चरित्र में गजब की रिकार्ड गिरावट देखी जा रही हैं। हालांकि पंडित जवाहरलाल नेहरू जिन्होंने स्वयं जनप्रतिनिधि कैसा होना चाहिए को लेकर राजनीति एवं जनता के बीच एक स्पष्ट संदेश दिया लेकिन 1984 से 15 लोकसभा तक अधिकांश जनप्रतिनिधियों ने न केवल जमकर भ्रष्टाचार किया बल्कि अपने दुष्कर्र्माें को भोगते हुए आज एक के बाद एक जेल जाने की तैयारी में ही बैठे है, फिर क्या पुरूष क्या महिला कोई भी पीछे रहना नहीं चाहता। आज अधिकांश राजनेता जनमुद्दों से गिर एक-दूसरे पर केवल कीचड़ उछालने के ही कार्य में मशगूल हैं।

आज जन प्रतिनिधियों का आचरण सामंतशाही जैसा हो गया है जो जनता को केवल चुनाव के समय ही भगवान समझती हैं बाद में तो केवल दो कोड़ी का आदमी, चुनाव जीतने के बाद और मंत्री बनने पर तो अपने को खुदा से कम नहीं समझते।

संसद के अंदर उनका आचरण ऐसा कि अच्छे भले मनुष्य को शर्म आ जाये, हंगामा इतना कि मछली बाजार भी फीका लगे, संसद में यदा-कदा ही जाते है, गए भी तो पैसा लेकर प्रश्न पूछते है आदि-आदि। मैं चौदवी लोकसभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की तारीफ करना चाहूंगी कि जिन्होंने बढ़ी बेबाकी से सांसदों को श्राप दिया – ‘‘भगवान करे आप सब चुनाव हार जाए आपका आचरण निंदनीय है, आप जनता के धन में से एक पैसे के भी हकदार नहीं है, जनता सब देख रही है वह चुनावों में सबको सबक सिखाएगी।’’ मुझे अध्यक्ष के रूप में इस कुर्सी पर बैठकर शर्म आ रही है आदि-आदि चटर्जी में नैतिकता भी थी और भलामनसाहत भी थी लेकिन बेशर्मों का क्या? फिर मशगूल है बेशर्मी में।

यदि हम अपने दिमाग पर जोर डाले तो देखते है कि लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राजा ने 250 करोड़ रूपये की रिश्वत ली थी जिससे देश को 1.75 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया कि राजा के साथ कनिमोझी ने भी 300 करोड़ की रिश्वत ली थी और कहा कि राजा जितने दोषी है उतने ही दोषी पी.चिदंबरम भी है, जब यह रिपोर्ट मीडिया में आई तब शुरू में केन्द्र सरकार ने अपनी आदत के अनुसार राजा एवं कनिमोसी दोनों को ही प्रथम दृष्टया बेकसूर ही बताया था लेकिन अंत हम सभी के सामने है वहीं पी. चिदंबरम देश में बढ़ते आतंकवाद और इसको दिये गये वक्तव्य से पुनः सुखियों में आ गए है, पी. चिदंबरम कह रहे है कि अब आतंकी देश के भीतर ही बन रहे हैं।

उन्हें ढूंढना न केवल मुश्किल है बल्कि नामुमकिन भी है। उनका यह वक्तव्य अपने आप में बहुत ही खतरनाक है विशेषतः आतंकियों के हौंसले बुलंद करने एवं बढावा देने के लिए। यह सत्य है कि आतंकवादियों की न तो कोई जात होती है न कोई धर्म। आगे चिदंबरम यह भी कहते नही थकते कि हमारी खुफिया एजेंसी अमेरिका और चीन के जैसी नहीं है। ऐसा वक्तव्य दे, देशवासियों के सामने केवल अपने नाकारा प्रणाली का ही सबूत दिया है। इस बेचारगी मात्र से वे अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। भारत की जनता से जब जी भर कर टैक्स लिया जाता है तो सुरक्षा दिलाने का जिम्मा भी देश के गृहमंत्री का ही बनता है लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों से छिटक एक कदम आगे बढ़ अब जनता से ही अपील कर रहे है कि आतंकियों का अब जनता ही पता लगाए उन्हें चिन्हित भी करें। इसी के साथ राजनीतिक दलों को भी जिम्मेदारी  से पेश आने की नसीहत देते हुए कहा है कि वोट की राजनीति के खातिर सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने से भी बचना चाहिए। आतंकवाद की विषंबैल को यदि आज नहीं रोका गया तो हमारा कल विपदाओं भरा होगा।

लेखा समिति के बाद आज जब कैग की रिपोर्ट पेश हो चुकी है अब दूध पानी का पानी साफ हो गया है, राष्ट्र मंडल खेल के मुख्य सूत्रधार कलमाड़ी ने जेल जाने के पहले से कहते आ रहे थे कि मैं अकेला इस भ्रष्टाचार के खेल में नही हूूॅ और भी है? रिपोर्ट के बाद भ्रष्टाचार की लूट में सी.ए.जी. ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर स्ट्रीट लाईट लगाने के ठेकों से गमलों में लगे हुए पौधों के साथ लगभग एक दर्जन अरोपों का दोषी माना है। जिसमें भारत की गरीब जनता का 900 करोड़ रूपया बर्बाद कर गोलमाल किया है। कलमाड़ी की तरह ही प्रथम दृष्टया सरकार शीला दीक्षित को भी अभी से बचाने में जुट गई है भविष्य में उनका क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्त में ही छिपा है। बरहाल राजनीतिक दलों ने शीला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कलमाड़ी की नियुक्ति को ले पी.एम.ओ. कार्यालय भी पहले से ही संदेह के घेरे में है।

यहां कुछ यक्ष प्रश्न उठ रहे हैं मसलन हमारे राजनेता नैतिक तौर पर इतने गिर चुके हैं कि जनता मोर्चा निकाले? क्या हम वाकई बेशर्म हो गए हैं? हममे कोई लोकलाज नहीं बची? जब हमने किसी भी सरकारी रिपोर्ट को न मानने की कसम खा रखी है तो फिर लेखा समिति नियंत्रक और महालेखा परीक्षक सी.ए.जी. जैसी संस्थाओं का औचित्य ही क्या रह जाता है? दूसरा पहले ये आम धारणा थी कि महिलाएं भ्रष्टाचार नहीं करती लेकिन अब ये धारणा भी टूट रही है तीसरा कोर्ट ने कलमाड़ी पर कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिये एक लाख रूपये का जुर्माना लगाया हैं। ये उन सांसदों एवं जन प्रतिनिधियों के लिये सबक है जो नियमित रूप से संसद में नहीं जाते या बहुत कम जाते हैं लेकिन जब किसी घपले या मर्डर में फंसते हैं तो संसद जाने की बात करते हैं चौथा सभी राजनीति पार्टियों का नैतिकता को ले अपने अपने गले में झांकने की आवश्यकता है।