दोनों शरीफों की शराफत कैसे बचे?

पाकिस्तान के आंतकी अड्डों को उड़ाने की बात को वहां की सरकार कोरी गप्पबाजी कहकर हवा में उड़ा रही है। यदि भारत सरकार ने अपनी फौजी कार्रवाई की फिल्में जल्दी ही जारी नहीं कीं तो उसका मजाक बनना शुरु हो जाएगा। लोग पूछेंगे कि वे 38 लोग या उनके शव कहां हैं, जिन्हें आपने मारा है? पाकिस्तानी फौज अपनी आतंकी चौकियों को ठीक-ठाक करके उनके फोटो जारी कर देगी और कहेगी, वे सब सही-सलामत हैं। भारत के दावे झूठे हैं। पाकिस्तान में उड़ी को लेकर भी कई किस्से फैले हुए हैं। वहां यही कहा जा रहा है कि उड़ी-हमले से पाकिस्तान का कुछ लेना-देना नहीं है।

यदि सचमुच भारत ने आतंकी ठिकानों पर फौजी कार्रवाई नहीं की है और वह नियंत्रण-रेखा पर अक्सर होने वाली सामान्य गोलीबारी है तो फिर प्र.मं. नवाज शरीफ को सेनापति राहील शरीफ से मंत्रणा करने और मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने की जरुरत क्यों पड़ी है? विरोधी नेता इमरान खान को विशाल रैली क्यों करनी पड़ी है? जाहिर है कि पाकिस्तान की सरकार और फौज सारे मामले को छिपाने और दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन इंटरनेट और टीवी के जमाने में सच्चाई का पता लगने में देर नहीं लगेगी।

यह असंभव नहीं कि मियां नवाज का तख्ता-पलट हो जाए और सत्ता सेनापति राहील शरीफ संभाल लें। राहील शरीफ अगले माह सेवा-निवृत्त होने वाले हैं। इस सेवा-निवृत्ति का भी वे इलाज कर देंगे। यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान अगले 8-15 दिन यही कहता रहे कि ‘कुछ नहीं हुआ’, ‘कुछ नहीं हुआ’ और फिर उसकी फौज् और नेता अपनी नाक बचाने की खातिर अमृतसर या किसी सीमांत के शहर पर अचानक जहाज या बम गिरवा दें। वे भारत में छिपे हुए आतंकियों से भी कोई बड़ा हमला करवा सकते हैं।

भारत और पाकिस्तान, दोनों ही इस वक्त युद्ध लड़ने की मुद्रा में नहीं हैं लेकिन दोनों ही अपनी-अपनी जनता को 56 इंच का सीना दिखाना चाहते हैं। समझ में नहीं आता कि दोनों देशों के नेता पिछले ढाई साल में इतनी नौटंकियां करते रहे, अब उन्हें बात करने में क्या जोर पड़ रहा है? महाशक्तियों को भी क्या हो गया है? वे दोनों पक्षों में बात क्यों नहीं करवातीं? इधर भारत में तो मोदी की चांदी हो गई है लेकिन उधर पाकिस्तान में दोनों शरीफों की शराफत बनी रहे, यह भी जरुरी है।