जाति से पिंड कैसे छूटे?

जन्मना जाति-व्यवस्था भारत का अभिशाप है। उसे भंग करने का नारा महर्षि दयानंद और डॉ राममनोहर लोहिया जैसे समाज सुधारकों ने दिया था लेकिन आजादी के बाद उसका असर घटने की बजाय बढ़ता गया। एक तो  थोकबंद वोटों की राजनीति और दूसरे जातीय आधार पर आरक्षण ने भारत में जाति व्यवस्था को पहले से भी अधिक मजबूत बनाया। जिस जातिय जनगणना को अंग्रेज सरकार ने लगभग 80 साल पहले समाज विरोधी और अवैज्ञानिक जानकर परित्याग कर दिया था, उसे कांग्रेस-सरकार ने 2010 में पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया था। यदि हमारी जन गणना जातीय आधार पर हो जाती तो भारतीय समाज के ताने-बाने को टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता लेकिन मैंने और कुछ प्रबुद्ध साथियों ने ‘सबल भारत’ नामक संगठन खड़ा किया और ‘मेरी जाति हिन्दुस्तानी’ आदोलन चलाया जो कि लोकपाल वगैरह की तरह विफल नहीं हुआ। सरकार को भुगतना पड़ा और जन-गणना में से जात को हटा दिया गया। लेकिन जातिय चेतना तो हमारी नस-नस में इतनी गहरी समाई हुई है कि उसके मूलोच्छेद के लिए अत्यंत गहन और सतत आंदोलन की जरूरत है। ऐसे में आज आई एक ताजा खबर स्वागत योग्य है। इस खबर के अनुसार इस वर्ष  देश के हजारों दलितों ने अपनी जाति के बाहर शादियां की है। याने सवर्णों और दलितों के बीच इस वर्ष शादियों का रिकार्ड बना है।  यह अन्तर्जातीय विवाहों से भी एक कदम आगे है। सवर्ण जातियों में होने वाले विवाह भी अंतर्जातीय हो सकते है लेकिन दलितों और गैर -दलितों के बीच होने वाले शादियाँ सचमुच क्रांतिकारी है। इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर 9623 दलितों ने और गैर दलितों से शादियां की जबकि 2011 में 7617 और 2010 में 7148 ने की थी। प्रांतीय  दृष्टि से देखें तो आध्रं, महाराष्ट्र और केरल सबसे आगे रहे हैं। तमिलनाडु में भी हजारों दलितों की गैर -दलितों से शादियाँ हुई हैं। कुल मिलाकर दक्षिण भारत में अधिक जागृति दिखाई पड़ रही हैं।

लेकिन दुख का विषय है कि उत्तर भारत इस मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। उत्तर भारत के प्रांतों मे दलितों और गैर दलितों की बीच बड़े पैमाने पर शादियां होना तो दूर की बात है बल्कि उल्टा हो रहा है। दलितों की  नृशंस हत्या, उन पर अत्याचार और इनके अपमान की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। अगर कोई दलित लड़का किसी सवर्ण लड़की से शादी करना चाहें तो उसे पहले या तो मौत के घाट उतरना होता है या गांव छोड़ कर भागना होता है। तमिलनाडु में भी एक दलित लड़के ने वन्नियार लड़की से विवाह करने की यही सजा पाई थी।

भारत से जन्मना जाति का खात्मा करना हो तो कई कठोर कदम उठाने होगें। जैसे पहला जातीय उपनाम लगाने पर प्रतिबंध होना चाहिए। जो भी जाति- सूचक नाम या उपनाम रखे, उसे सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाना चाहिए। दूसरा अन्तर्जातीय विवाह करने वालों को सरकार अभी 50,000 रु. देती है। यह राशि कम से कम एक लाख होनी चाहिए। तीसरा, अंतर्जातीय विवाह करने वालों को सरकारी नौकरियों और पदोन्ततियों में प्राथमिकता देनी चाहिए। चौथा, उनके बच्चों की शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए। पांचवां, देश में से दो तरह की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए, ताकि सभी जातियों के लोग समान रूप से आगे बढ़ सकें। छठा, आरक्षण का नकली भुगतान समाप्त किया जाना चाहिए, जो जाति व्यवस्था को बनाएं रखने का ब्रह्मास्त्र बन गया है। टन भर लोगों को आरक्षण देकर मन भर लोगों के प्रति अन्याय और अपेक्षा का दौर समाप्त होना चाहिए।