क्यों हो रहा रेल परिचालन फ़ेल ?

      गत 30 जुलाई को सुबह सुबह क़रीब पौने चार बजे एक और रेल हादसा दक्षिण पूर्व रेलवे के चक्रधरपुर डिवीज़न के तहत पेश आया। झारखंड के जमशेदपुर से 80 किलोमीटर दूर सरायकेला-खरसावां ज़िले में बंबू  नामक स्थान पर मुंबई-हावड़ा मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतर गए। इस हादसे में दो रेल यात्रियों की मौत हो गयी  व 20 से अधिक लोगों के घायल होने का समाचार है। पूर्व में हो रहे अन्य रेल हादसों की ही तरह इस रेल दुर्घटना की भी जांच के आदेश दे दिए गये हैं। यह भी ख़बर है कि इसी दुर्घटनास्थल के पास में ही एक मालगाड़ी भी पटरी से उतर गई थी। लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि क्या इन दोनों ट्रेंस की दुर्घटनाएं एक साथ हुई थीं या आगे पीछे। बुलेट ट्रेन की दुनिया में प्रवेश करने व विश्व की आधुनिकतम रेल सेवाओं का दावा करने वाली भारतीय रेल को गत 13 दिनों के भीतर ही 7 रेल दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा है। निश्चित रूप से इस तरह से आए दिन हो रही रेल दुर्घटनाएँ बेहद चिंता का विषय हैं। ज़ाहिर है इस तरह की लगातार होने वाली दुर्घटनाओं के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सरकार रेल संचालन में सुरक्षा व्यवस्था के लिये किये जाने वाले ज़रूरी क़दम उठा भी रही है अथवा नहीं ? लगातार हो रहे इतने हादसों के बाद रेल यात्रियों में भारतीय रेल व्यवस्था के प्रति असुरक्षा व अनिश्चितता का भाव पैदा होना भी स्वाभाविक है।

     झारखण्ड में गत मंगलवार की अलस सुबह हुये मुंबई-हावड़ा मेल के हादसे से एक ही दिन पहले 29 जुलाई को समस्तीपुर-मुज़फ़्फ़रपुर रेलखंड पर दरभंगा से दिल्ली जा रही 12565 बिहार संपर्क क्रांति सुपरफ़ास्ट ट्रेन, कपलिंग टूटने के कारण दो हिस्सों में बंट गई थी। इस रूट पर आ रही अन्य ट्रेन्स को तत्काल रोकने का आदेश दिया गया ताकि किसी बड़े हादसे को टाला जा सके। उससे पहले 21 जुलाई को दो ट्रेन हादसे हुये। पहला ट्रेन हादसा राजस्थान के अलवर में  हुआ जहां यार्ड से निकली मालगाड़ी के तीन डिब्बे पलट गये। इसके कारण अलवर मथुरा ट्रैक बाधित हुआ। दूसरा हादसा 21 जुलाई को ही पश्चिम बंगाल के रानाघाट में हुआ। यहाँ भी एक मालगाड़ी पटरी से उतर गई है। इस हादसे के कारण  भी इस रेल मार्ग पर ट्रेनों का आवागमन प्रभावित हुआ है। और इसके एक दिन पूर्व यानी 20 जुलाई को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद -मुरादाबाद सेक्शन के बीच अमरोहा में कंटेनर से भरी ट्रेन के 6 डिब्बे पटरी से उतर गए। इसके कारण दिल्‍ली-लखनऊ रेलवे लाइन की दोनों लाइनें बंद करनी पड़ींऔर दोनों और का  रेल यातायात प्रभावित हुआ। इसी तरह 19 जुलाई को गुजरात के वलसाड-सूरत स्टेशन के बीच  एक मालगाड़ी का डिब्बा पटरी से उतर गया। डुंगरी स्टेशन के पास हुई इस घटना के कारण इस रेल मार्ग पर भी यातायात प्रभावित हुआ। इत्तेफ़ाक़ से मुंबई-अहमदाबाद ट्रंक रूट पर यह दुर्घटना उस समय हुई थी जबकि केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पश्चिमी रेलवे मुख्यालय में रेलवे सुरक्षा सहित रेल संबंधी अन्य विषयों का निरीक्षण कर रहे थे। इस दुर्घटना से भी एक दिन पूर्व अर्थात 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक बड़ा रेल हादसा हुआ जबकि गोरखपुर जा रही चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस की 17 बोगियां बेपटरी हो गयीं। परिणामस्वरूप 5 बोगियां पलट गईं। इस दुर्घटना में 4 यात्री की मौत हो गई थी और दर्जनों घायल हो गए थे। मात्र जून और जुलाई 2024 में हुई केवल तीन दुर्घटना में कुल मिलाकर 17 यात्रियों की जान चली गई और 100 लोग घायल हो गए।

     इसके अलावा भी गत एक वर्ष के ही दौरान कई भीषण रेल दुर्घटनाएं केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के ही कार्यकाल में होती रही हैं। परन्तु इस बार राजग 3 के कार्यकाल में भी अश्विनी वैष्णव को ही रेल मंत्रालय का ज़िम्मा सौंपने का सीधा अर्थ है कि प्रधानमंत्री, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के पिछले कार्यकाल की उनकी कारगुज़ारियों से संतुष्ट थे। जबकि हक़ीक़त यह है कि अश्विनी वैष्णव के कार्यकाल में रेल यात्रियों को सुख सुविधा मिलने के बजाये उन की परेशानियों में इज़ाफ़ा ही हुआ है। आये दिन होने वाली छोटी बड़ी  दुर्घटनाओं को केवल जान व माल की क्षति के आधार पर ही आंकना काफ़ी नहीं है। बल्कि दुर्घटनास्थल पर होने वाले व्यवधान के चलते जो मार्ग परिवर्तन किये जाते हैं और उसके कारण जिन लाखों यात्रियों को परशानियों व नुक़सान का सामना करना पड़ता है,भारी राजस्व की क्षति होती है, उसका तो कोई आंकड़ा ही नहीं होता। जिन देशों में भारत का 'डंका' बजना प्रचारित किया जाता है वहाँ जब इन आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं की ख़बर प्रसारित होती होगी तो भारतीय रेल व्यवस्था का कैसा डंका बजता होगा,सरकार ने कभी इस बारे में भी सोचा है ?

     इन हादसों से रेल यात्रियों को होने वाली परेशानी के अलावा भी रेल मंत्रालय की अनेक नीतियों के चलते भी इन दिनों रेल यात्रा करना बेहद मुश्किल हो गया है। देश की अनेक ट्रेन्स में ए सी कोच की संख्या बढ़ाकर सामान्य कोच की संख्या घटा दी गयी है। कई इंटरसिटी गाड़ियों में बिना ज़रुरत के स्लीपर कोच लगाये गए हैं और उनमें भी सामान्य कोच की संख्या घटा दी गयी है। उदाहरणार्थ 14712 /11 नंबर की गंगानगर -ऋषिकेश -गंगानगर एक्सप्रेस ट्रेन को समाप्त कर उसकी जगह 14815 /16 बाड़मेर -ऋषिकेष  एक्सप्रेस के नाम से उसी समय सारिणी के अनुसार एक ट्रेन चलाई गयी है जिसमें आधे कोच ए सी के हैं और आधे स्लीपर श्रेणी के।और केवल 2 -2 डिब्बे आगे पीछे सामान्य श्रेणी के हैं। आजकल चल रही कांवड़ यात्रा के दौरान राजस्थान -पंजाब -हरियाणा व उत्तर प्रदेश के तमाम कांवड़ भक्त इसी  14712 /11से हरिद्वार -ऋषिकेश जाते थे पूरी ट्रेन सामान्य होने के बाद भी इसमें पैर रखने की जगह नहीं होती थी। ज़रा सोचिये अब जबकि लगभग पूरी 14815 /16 बाड़मेर -ऋषिकेष  एक्सप्रेस ए सी व स्लीपर क्लास है  तो सामान्य श्रेणी के यात्रियों पर क्या गुज़र रही होगी। कांवड़ियों के साथ आम यात्रियों को कितनी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा होगा ? और यदि यह सामान्य यात्री जगह न मिलने की सूरत में ए सी व स्लीपर क्लास में जाते हैं तो आरक्षण  यात्रियों को भी असुविधा होती है। टिकट निरीक्षक पैसों की वसूली करते हैं और यात्रियों को  अपमान भी सहना पड़ता है।

      हाँ इतना ज़रूर है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को भले ही वंदे भारत को हरी झंडी दिखाने की या पुराने रेल स्टेशंस के नवीनीकरण तक की भी इजाज़त नहीं परन्तु उन्होंने अपने मंत्रालय के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रचार प्रसार करने और उनके एजेंडे के अनुसार काम करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। वे प्रधानमंत्री को ख़ुश करने में इतना व्यस्त है कि शायद उन्हें इस बात की फ़िक्र ही नहीं कि आख़िर रेल परिचालन क्यों फ़ेल हो रहा है ?
 

                               (ये लेखिका के अपने विचार हैं, आवश्यक नहीं कि भारत वार्ता इससे सहमत हो)

                                        चित्र साभार निर्मल रानी द्वारा ईमेल से