आखिर कब बदलेंगे नेता जनता की किस्मत

                किस्मत बदलदी वेखी मैं; मैं जग बदलदा वेख्या; मैं बदलते वेखे अपने; मैं रब बदलता वेख्या। मशहूर सिंगर ‘‘एम्मी विर्क‘‘ की एलबम ‘‘किस्मत‘‘ की यह पंक्तियाँ हर व्यक्ति के जीवन के उतार-चढ़ाओ को समझा रही हैं और वर्तमान में जिस तरह से भारत के राजनीतिक दल जनता व भारतीय जवानों की किस्मत के साथ खेल रहे हैं, वह अफसोसजनक है।आज हर मनुष्य अपनी किस्मत बदलने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठा है। चाहे बाबाओं के पास जाना हो या किसी से हाथ मिलाना। तीन साल तीन महीने पहले जम्मू-कश्मीर में हुए पी.डी.पी- बी.जे.पी गठबंधन को पूर्व-पश्चिम मिलन के रूप देखा जा रहा था। दोनांे राजनीतिक दलों का कहना था कि उन्होंने यह एहम फैसला राष्ट्रहित के लिए लिया है, परंतु यह राष्ट्रहित के लिए नहीं बल्कि पार्टीहित के लिए लिया गया फैसला था। पार्टियां चाहें कुछ भी कहें परंतु असल वजह सबको पता है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एसा कुछ भी हो सकता है। पर यह राजनीति है साहब, यहाँ किस्मत चमकाने व किस्मत आजमाने के लिए कुछ भी हो सकता है।

      यदि पी.डी.पी – बी.जे.पी गठबंधन गलत नही तो बी.एस.पी – एस.पी गठबंधन (बुआ – बबुआ गठबंधन), कांग्रेस – एस.पी गठबंधन (पप्पू – बबुआ गठबंधन) गलत क्यों?और बाकी गठबंधन ठगबंधन क्यों ? इन बेचारो ने भी तो पार्टिहित के लिए कुछ सोच कर ही फैसला लिया होगा। यदि मीडिया मित्रों की माने तो सन 2014 से आतंकवादी गतिविधियों के कारण होने वाली मृत्युदर में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। और दूसरी तरफ सिक्योरिटी पर्सनल के मृत्युदर में 72 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आम नागरिक के मृत्युदर में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी नजर आई है। यह उपलब्धि बस किस्मत चमकाने की वजह से ही हासिल कर पाएं हैं हम लोग।

     राजनीतिक पार्टियां पार्टिहित के लिए किसी से भी हाथ मिला सकती हैं। चाहे वह राष्ट्रीय पार्टी हो या लोकल पार्टी सब एक ही थाली के चट्टे-बठ्ठे हैं। वह कभी जनता के बारे मे नही सोचते, परन्तु विपक्ष में होने पर जनता के कंधे पर बंदूक रखकर सत्ता धारी को अच्छी खासी सुनानी आती है। किस्मत तो जनता की खराब है, जो इन नेताओं व सरकारी अधिकारियों के हाथो कठपुतली बनी घूम रही है। जैसा यह चाहते है वैसा करवाते है, अपनी मर्जी से सामने वाले को नचाते हैं। एक जवान की शहादत के बाद कुछ ही महीनों के भीतर उसके परिवार के पास सरकारी क्वार्टर खाली करने का नोटिस आ जाता है व जल्द ही खाली भी करवा लिया जाता है, वही दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्रि सत्ता छिन जाने के बाद अपना बंगला नहीं छोड़ते, उनको हिलाने के लिए उच्च न्यायलय का सहारा लेना पड़ता है। यदि उसके बाद भी वे बंगला छोड़ दें तो उसके सामान भी अपने साथ ले जाते हैं। कुछ ने तो विधेयक भी पास कर दिया ताकि जनता के पैसों से बनाया हुआ बंगला खाली नही करना पड़े।

     सभी राजनैतिक दल वही कर रहे है जिस से जनता आपस में भिड़ी रहे, ताकि उसे अपनी मूलभूत जरूरतों का एहसास नहीं हो। हम ऐसे मुद्दांे में फसते व टांग अड़ाते हैं, जिस से हमारा हित बस इतना होता है कि सामने वाले पर हमारा दवदवा बन जाए। आज कुछ दलो के प्रयासों के कारण एक व्यक्ति अपने आपको मनुष्य कहने में शर्म महसूस करता है। परंतु अपनी जाति, धर्म, व समुदाय घमंड के साथ बताता है। इंसान अपने आप को इंसान कहलवाना नहीं चाहता और कई तो ऐसे हैं उत्तर प्रदेश में जो बुरा भी मान सकते हैं। हमसे अच्छे तो जानवर हैं, देखने में एक से है मददगार भी हैं। वर्तमान की स्थिति में और आजादी के पहले की स्थिति में फर्क बस इतना है कि पहले हम अंग्रेजो के गुलाम थे जिसमंे हमारी मर्जी नहीं थी, और आज हम अपनी मर्जी से फिर से गुलाम बने बैठे हैं।

आज हर राजनैतिक दल  किसान गरीब, बेसहारा, की किस्मत चमकाने की बात कर रहा है कि उनकी सरकार आएगी तो ये कर देंगे वो कर देंगे पर भाईसाहब कई साल पहले भी थी आपकी सरकार तब आपको करके दिखाना चाहिए था और वर्तमान सरकार के बारे मंे तो कहने से डरते हंै कहीं जनता एन्टी-नेशनल का ठप्पा नहीं लगा दे। कई सालों से सुनते आ रहे हैं कि अब किस्मत बदलने वाली है, अब ऐसा हो जाएगा, गरीब भूखे पेट नहीं सोएगा, किसान की जिंदगी से सभी दुख दूर हो जाएंगे, आदि पर धरातल पर इनमें से कोई चीज देखने को नहीं मिल रही है। कोई भी सरकार हो वह पार्टिहित वाले आंकड़ांे का प्रचार बड़े जोर शोर से करती है, परंतु कई आंकड़े छिपा भी देती है।

      कुछ कहते हैं राजनीति दलदल है, कुछ का कहना है कि गंदा गटर है, कुछ का कहना है कि इन अनपढ़ो के हाथ में सत्ता पहुच गई है, इन्होंने देश को बर्बाद कर दिया है। पर अगर इन्हीं से पूछा जाए तो ये अपने बेटे को पढ़ा- लिखा कर इंजीनियर, डॉक्टर बनाना चाहेंगे ताकि इसकी किस्मत चमक सके, पर नेता नहीं। तो इनको कोई हक नही बनता कि ये नेताओ को कुछ कहें। एक नेता के कई पुश्तों की किस्मत चमक जाती है सत्ता में आने के बाद। अगर एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, अच्छे लोग अपने हित के लिए भगवान बदल सकते हैं। तो शायद ऐसा भी दिन आएगा जब गरीब की थाली में रोटी, किसान के हाथ मंे सही दाम, व जीवित जवान हमारे भारत देश मे होंगे।

                                                 ‘‘ किस्मत का तो खेल है निराला ,

                                 वोटर के पास ही नहीं है निवाला  ’’

 

 

प्रवीन शर्मा

एम.एस.डव्लू विद्यार्थी

एम.जे.पी रूहेलखंड विश्विद्यालय

बरेली (उ.प्र.)