टीकाकरण अभियान की सार्थकता को संदिग्ध करते ये विशिष्टजन

     

कोरोना की पहली लहर के दौरान सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देश अमेरिका से गत 14 मई को एक सुखद व चौंकाने वाली ख़बर आई कि जिन लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका है उन्हें अब मास्क पहनने व  6 फ़िट की दूरी बनाए रखने जैसे नियमों का पालन करने की कोई ज़रुरत नहीं है। जिन लोगों ने  कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज़ ले ली है ऐसे लोग बिना मास्क और बिना 6 फ़िट की दूरी के नियम का पालन  करते हुए अपने सभी  काम काज जारी रख सकते हैं।  ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन  द्वारा मास्क उतारते हुए यह महत्वपूर्ण घोषणा की गयी। साथ ही राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह चेतावनी भी दी कि जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है, उनके लिए कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना ज़रूरी रहेगा। जिस दिन अमेरिका में सफल टीकाकरण अभियान के माध्यम से कोरोना पर फ़तेह हासिल करने व जनजीवन सामान्य करने की घोषणा की जा रही थी उन्हीं दिनों हमारे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार,सामूहिक रूप से चिताओं के जलने व बड़ी संख्या में नदियों के किनारे मानव शव बरामद होने जैसी ह्रदय विदारक ख़बरें आ रही थीं। बहरहाल,अमेरिकी राष्ट्रपति की उपरोक्त घोषणा यह समझ पाने के लिए काफ़ी है कि वैक्सीनेशन अर्थात टीकाकरण कोरोना से बचाव का सबसे बड़ा व सबसे ज़रूरी माध्यम है। ख़ासकर उस समय तक जब तक कि इसकी सटीक दवा न खोज ली जाए।

                                                                   अब ज़रा हमारे देश में टीकाकरण को लेकर फैले व फैलाए जा रहे भ्रम को भी देखिये। आज भी देश के कई राज्यों में विशेषकर ग्रामीण व पिछड़े इलाक़ों में लोगों द्वारा वैक्सीन लगाने का विरोध किया जा रहा। ऐसे लोगों को सरकार द्वारा प्रचारित वैक्सीनेशन के फ़ायदे की जानकारी तो नहीं परन्तु वे इन अफ़वाहों के शिकार ज़रूर हैं कि कोरोना का टीका लगाने से नपुंसकता व अन्य बीमारियां आ जाती हैं । ऐसे इलाक़ों में ऐसे लोगों को समझाने व उनकी ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को जाना पड़ता है। कई जगह तो जनता ने इन अधिकारियों का विरोध कर उन्हें वापस कर दिया। उधर अमेरिका में लोगों ने कई कई किलोमीटर लंबी लाइनें लगाकर भी जीवन के लिए ज़रूरी समझते हुए अपना टीकाकरण कराया गया। हमारे देश में टीकाकरण की आवश्यकता व इसकी सार्थकता को नकारने वाला वर्ग केवल वही नहीं है जो पिछड़ेपन का शिकार है। बल्कि सरकार के टीकाकरण अभियान पर ज़ोर दिए जाने के बावजूद जब  बाबा रामदेव जैसे योगगुरु कहते हैं कि मुझे वैक्सीन की आवश्यकता नहीं उस समय लोगों का वैक्सीनेशन से और भी भरोसा उठ जाता है। पिछले दिनों बाबा रामदेव ने कहा कि वह कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए टीका नहीं लगवाएंगे। रामदेव के अनुसार चूँकि वे  ‘योग’ व ‘आयुर्वेद’ का डबल डोज़ ले रहे हैं इसलिए उनको कोरोना वैक्सीन लगवाने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास से यह भी कहा कि 'कोरोना वायरस के कितने भी वेरिएंट आ जाएं, उन्हें संक्रमण से कोई ख़तरा नहीं होने वाला है। रामदेव के मुताबिक़ कोरोना वैक्सीन शत-प्रतिशत प्रभावी नहीं है। उन्होंने टीकाकरण पर अविश्वास जताते हुए यह दलील भी पेश की कि कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद भी तो लोग संक्रमित हो रहे हैं?

             बाबा रामदेव के देश विदेश में  कथित तौर पर करोड़ों अनुयायी हैं। देश में लाखों लोग उनकी विचित्र योगासन विद्या के चलते उन्हें अपना 'योग गुरु ' मानते हैं। उनका गेरुआ वस्त्र तथा संघ व भाजपा से उनकी घनिष्ठता से भी देश का एक वर्ग बाबा रामदेव के प्रति आस्था रखता है। वे स्वयं भी कभी कभी राजनेताओं की तरह 130 करोड़ देशवासियों का पक्ष रखते सुने जाते हैं। ऐसे में यदि उनके अनुयायी वैक्सीन के प्रति उनके नकारात्मक विचारों को सुनकर टीका न लगवाने पर आमादा हो जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। एलोपैथी चिकित्सा के बारे में उनका विचार या पूर्वाग्रह अभी पिछले दिनों छिड़े विवाद के पश्चात् देश देख ही चुका है। गोया अमेरिका सहित पूरे विश्व में कोरोना रक्षक टीकाकरण के प्रति जताया जा रहा विश्वास और बाबा राम देव जैसे विशिष्टजनों का टीके के प्रति अविश्वास जताना व उससे अधिक योग व आयुर्वेद की 'डबल डोज़ ' पर भरोसा जताना निश्चित रूप से  देश के टीकाकरण अभियान की सार्थकता पर सवाल खड़े करता है। इससे भी बड़ी बात यह कि यदि बाबा रामदेव से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने वैक्सीन लगवाने से इनकार कर दिया और इसके परिणामस्वरूप कोरोना संक्रमण चक्र नहीं टूट सका यानी देश से कोरोना का अंत नहीं हो सका फिर इसका ज़िम्मेदार कोन होगा ? सरकार के टीकाकरण अभियान पर अरबों रूपये ख़र्च करने से क्या हासिल होगा ?

          पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायलय ने टीकाकरण अभियान को लेकर केंद्र व राज्य सरकारों के बीच चल रही खींचतान के सन्दर्भ में केंद्र सरकार को फटकार लगाई। सर्वोच्च न्यायालय भी यथाशीघ्र और समयबद्ध तरीक़े से पूरे देश में टीकाकरण अभियान की समान प्रक्रिया चाहता है। परन्तु टीकों की कथित कमी के चलते जिस प्रकार सरकार टीकाकरण को लेकर अपने नियम बदलती रही है उससे भी इस अभियान पर संदेह खड़ा होता है। जब कोरोना से बचाव का सर्वमान्य एवं सर्वोपयुक्त उपाय टीकाकरण ही है तो इसे यथाशीघ्र संभव युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए। यदि टीकों की कमी भी है तो भी जितने टीके उपलब्ध हैं उनका इस्तेमाल शीघ्रातिशीघ्र कर लेना चाहिए। परन्तु पिछले दिनों हरियाणा के मुख्य मंत्री ने जिस तरह का बयान दिया उससे तो यही प्रतीत होता है कि उनकी लिए वैक्सीन बचाए रखना ज़्यादा ज़रूरी है न कि लोगों का यथाशीघ्र टीकाकरण। तभी तो जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में वैक्सीन की आ रही क़िल्लत व इसके चलते टीकाकरण केंद्रों के बंद होने की संभावना जताई तो इसके जवाब में खट्टर ने कहा कि -'केजरीवाल ने ड्रामा करने के लिए कह दिया कि कल से मेरे वैक्सीनशन सेंटर बंद हो रहे हैं -'हम कहते हैं टीके आपको ज़्यादा मिल रहे हैं ,हम भी दो लाख टीके एक दिन में लगाकर ख़त्म कर सकते हैं लेकिन हम 50 -60 हज़ार टीके रोज़ लगा रहे हैं ताकि काम चलता रहे।

            'टीकाकरण का काम चलता रहे', एक राज्य के मुख्यमंत्री का इस तरह का बयान भी न केवल टीकाकरण की यथाशीघ्र अनिवार्यता को कम करके आंकता है बल्कि  इससे यह भी पता चलता है कि टीका बचाकर इस्तेमाल करना लोगों की जान बचने से ज़्यादा क़ीमती है ? निश्चित रूप से विशिष्टजनों के इसी तरह के बयान व भाषा टीकाकरण अभियान की सार्थकता को संदिग्ध करते हैं।