निर्विवादित होनी चाहिये ‘मर्यादा पुरषोत्तम’ की प्राण प्रतिष्ठा

    अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी की मूर्ति की बहु प्रतीक्षित प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होना प्रस्तावित है। वैसे तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर अपना अंतिम फ़ैसला सुनाए जाने के बाद जब अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा एक ट्रस्ट बनाकर उसे सौंपने का आदेश दिया था उसी समय राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त हो गया था। साथ ही अदालत ने उसी समय यह आदेश भी जारी किया था कि सरकार ध्वस्त  की गयी बाबरी मस्जिद के बदले दूसरी मस्जिद बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड को किसी अन्य स्थान पर वैकल्पिक 5 एकड़ ज़मीन भी दी जाये। वैसे भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर दिये गये फ़ैसले से पूर्व भी दशकों से यह स्पष्ट ही था कि आज नहीं तो कल उस विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण ही होगा। सुप्रीम फ़ैसले से पूर्व के दो लक्षण तो कम से कम इसी ओर इशारा कर रहे थे। एक तो 'बाबरी मस्जिद ' में मुसलमानों का दशकों से नमाज़ अदा न करना और इस इमारत के प्रति निष्क्रिय हो जाना। क्योंकि इस्लाम धर्म किसी भी ऐसे स्थान पर नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं देता जो जगह विवादित हो। और दूसरे अदालती फ़ैसला आने से दशकों पहले से ही अयोध्या के कार सेवक पुरम में राम जन्म भूमि की इमारत से सम्बंधित पत्थरों को तराशने का काम निरंतर जारी रखना।

      बहरहाल अयोध्या विवाद पर दिये गये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने आनन् फ़ानन में एक 15 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया। सरकार ने इसमें अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद के लोगों को ट्रस्टी बनाया। जिसमें अधिकांश लोग आर एस एस व विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े या इसी विचारधारा के लोग हैं। अब यही ट्रस्ट न केवल मंदिर का निर्माण कर रहा है बल्कि इसी ट्रस्ट ने भगवान श्री राम चंद्र जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिये भी 22 जनवरी का दिन भी निर्धारित कर दिया है। परन्तु अफ़सोस की बात यह है कि भारत वर्ष के सबसे प्रतिष्ठित,पूज्य,आदरणीय व स्वीकार्य भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम जितना ही निर्विवाद,सर्वमान्य व सर्व स्वीकार्य होना चाहिये उतना ही अधिक यह आयोजन विवादों में घिरता जा रहा है। यहाँ तक कि ख़बर है कि 'हिन्दू मैनुफ़ेस्टो' नमक संस्था जोकि कथित तौर पर हिन्दू धर्म के हितों हेतु कार्य करती है,से सम्बद्ध एक व्यक्ति ने 8 जनवरी को ट्रस्ट को एक आपत्ति पत्र व क़ानूनी नोटिस भेजा है जिसमें कई बातों पर आपत्ति दर्ज की गयी है। इनकी आपत्तियों में किसी भी शादी शुदा व्यक्ति का यजमान बनने पर उसका सपत्नीक अनुष्ठान में शामिल होना ही शास्त्र सम्मत है फिर प्रधानमंत्री मोदी अकेले ही यजमान कैसे ? शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर मोदी की अकेले की जाने वाली पूजा शास्त्र सम्मत नहीं। दूसरा यह कि पूजा के समय गर्भ गृह में पांच लोगों की सूची में संघ प्रमुख मोहन भागवत का नाम किस आधार पर ? जबकि मोहन भागवत एक ग़ैर रजिस्टर्ड संस्था के प्रमुख मात्र हैं ? इसी तरह सरकार द्वारा स्वामी विजेंद्र सरस्वती को शंकराचार्य बताया जा रहा है। जबकि 22 सितंबर 2017 को इलाहबाद उच्च न्यायालय यह निर्णय भी दे चुका है कि केवल वर्तमान चार पीठों के प्रमुखों को ही शंकराचार्य माना जायेगा। और पांचवां फ़्रॉड समझा जायेगा। आदि

      उधर चारों पीठों के वास्तविक शंकराचार्यों की  विभन्न कारणों से प्राण प्रतिष्ठा आयोजन से नाराज़गी व दूरी जग ज़ाहिर हो चुकी है। सभी शंकराचार्य इस विषय पर सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं। इन सभी सम्मानित शंकराचार्यों की एक सामान्य,सबसे महत्वपूर्ण व शास्त्र सम्मत आपत्ति तो यही है कि मंदिर भवन अभी भी अधूरा है। इसके पूरा होने में अभी लगभग एक वर्ष का समय और लग सकता है। यहाँ तक कि इसका मुख्य शिखर भी अभी तक तैयार नहीं। और जब शिखर तैयार नहीं तो मंदिर की ध्वजा कहाँ स्थापित होगी ? ऐसे गंभीर प्रश्नों के साथ सभी शंकराचार्य आपत्ति दर्ज कर रहे हैं। और इस पूरे आयोजन को ही शास्त्र विरुद्ध बता रहे हैं। उनका साफ़ कहना है कि यह पूरा आयोजन, सरकार आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र केवल राजनैतिक लाभ हासिल करने के लिये कर रही है। लिहाज़ा एक शंकराचार्य होने के नाते उनका किसी भी अशास्त्र संगत आयोजन में शिरकत करना मुनासिब नहीं। उन्हें प्राण प्रतिष्ठा हेतु चुनी गयी 22 जनवरी की तारीख़ पर भी एतराज़ है। शंकराचार्य के अनुसार इसके लिये  'रामनवमी ' से बेहतर अवसर और क्या हो सकता था ?

      बहरहाल सरकार को शंकराचार्यों की आपत्तियों की तो कोई परवाह नहीं है बल्कि सरकार मंदिर निर्माण के नाम पर की जा रही राजनीति को और भी तेज़ धार देने में व्यस्त है। अब उसकी नज़रें इसपर हैं कि 22 जनवरी के आयोजन का निमंत्रण पाने वालों में कौन कौन लोग नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के विभिन्न दलों के नेता इस आयोजन से किनारा काट रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि "धर्म व्यक्ति का निजी विषय है परन्तु  बीजेपी और आरएसएस लंबे समय से इस मुद्दे को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाते रहे हैं. स्पष्ट है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है. 2019 के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करते हुए लोगों की आस्था के सम्मान में मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी, भाजपा और आरएसएस के इस आयोजन के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार करते हैं." परन्तु निमंत्रण अस्वीकार करने वालों को भाजपा ने 'राम द्रोही ' नामक एक नई श्रेणी बनाकर उसमें डाल दिया है और दलाल मीडिया सत्ता की बीन पर 'नागिन डांस ' करने लगा है। मीडिया के बूते की बात नहीं कि वह चारों शंकराचार्यों के विरुद्ध भी ऐसे शब्दों का प्रयोग कर सके जैसे शब्द वह इंडिया गठबंधन नेताओं विशेषकर कांग्रेस के बारे में प्रचारित कर रहा है। उधर शंकराचार्यों की आपत्ति का जवाब जिन शब्दों में विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष व श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय द्वारा दिया गया और मर्यादा पुरुषोत्तम को भी सम्प्रदाय में बांटने की कोशिश की गयी वह तो बेहद आपत्तिजनक है। उनके बयान के बाद तो कई शंकराचार्य चंपत राय पर भी भड़क उठे हैं।

       इन सब बातों के बावजूद सरकार व ट्रस्ट ने मंदिर मस्जिद विवाद में मुख्य पक्षकार मुद्दई स्वर्गीय हाशिम अंसारी के पुत्र इक़बाल अंसारी को भी मंदिर ट्रस्ट ने आमंत्रण पत्र भेजा है। ग़ौरतलब है कि लंबे अदालती विवाद के दौरान मुद्दई रहे इक़बाल के पिता हाशिम अंसारी न्यायालय में पैरोकारी करने दिगंबर अखाड़ा के महंत परमहंस राम चंद्र दास के साथ ही आते जाते थे। दोनों मित्र थे, जबकि वह विपक्ष से पैरोकारी करने वाले थे। ख़बरों के अनुसार महंत के साकेतवासी होने के दौरान हाशिम अंसारी दिगंबर अखाड़ा पहुंचे थे और उनकी मृत्यु से बेहद दुखी थे। वे उस समय ख़ूब रोये भी थे। सवाल यह है कि जब सरकार इक़बाल अंसारी को आमंत्रित कर साम्प्रदायिक सद्भाव का सन्देश देना चाह रही है तो इतने बड़े आयोजन में शंकराचार्यों से नाराज़गी मोल लेने का औचित्य क्या ? विपक्षी दलों पर निशाना साधना उन्हें रामद्रोही साबित करना व शास्त्र असम्मत क़दमों के बाद भी स्वयं को ही 'धर्म' ध्वजावाहक प्रमाणित करने का सत्ता प्रयास और चुनावों में समय पूर्व किये जा रहे इस आयोजन को भुनाने की तैयारी कैसे मुनासिब कही जा सकती है ? वास्तव में 'मर्यादा पुरषोत्तम ' भगवान राम की  प्राण प्रतिष्ठा तो पूरी तरह अराजनैतिक व निर्विवादित होनी चाहिये।