अध्यात्म के सिरमौर थे संत कृपाल सिंह जी महाराज

   संत कृपाल सिंह जी महाराज के जन्म दिन पर  विशेष 

    भारत माता के गगनांचल रूपी ऑंचल में ऐसे-ऐसे नक्षत्र उद्दीप्त हुए हैं जो न केवल अपने भारत भूमि को बल्कि संपूर्ण विश्व मण्डल को अपने प्रकाश पुंजों से अवलोकित किया है। ऐसे ही एक प्रकाश पुंज भारत की धरा पर अवतरित हुआ जिसका नाम संत कृपाल सिंह रखा गया।

     संत कृपाल सिंह जी महाराज अध्यात्म के सिरमौर थे, जब वे चलते थे तो साक्षात परमात्मा चलता था। ऐसे महान संत जो बचपन से ही त्रिकालदर्शी थे। उन्हें अपने बचपन के स्कूल में ही पता चल जाता है कि उनकी नानी मरने वाली है, इसलिए अपने अध्यापक से घर जाने की छुट्टी मांग रहे थे, बचपन में वो कहा करते थे कि उन्हें अमेरिका जाना है।

     20वीं शताब्दी में दुनिया भर में अध्यात्म के लिए पहचाने जाने वाले संत कृपाल सिंह महाराज सावन कृपाल रूहानी मिशन के चेयरमैन के पद पर विराजित थे। उनका जन्म 6 फरवरी 1894 को रावलपिंडी के गांव सैयद कसरां जो कि अब पाकिस्तान में है, में हुआ। इनके पिताश्री  का नाम हुकुम सिंह तथा माता का नाम गुलाब देवी था। केवल 4 वर्ष की आयु में ही परमात्मा में पूरी तरह खो जाने वाले संत थे, कहीं एकांत देखकर बच्चों संग खेलने से दूरी बनाकर ध्यान में लीन हो जाया करते थे। संत कृपाल सिंह स्वयं परमात्मलीन होकर परमात्म रूप हो गए थे। उनकी शुरू से ही पूर्ण पुरुष कामिल मुर्शिद से मिलने की हार्दिक अभिलाषा थी। और, वे जब भी अंदर ध्यानमग्न  होते थे, तब उन्हें हाथ में छड़ी पकड़े एक बाबा जी दिखाई देते थे जिनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ी हवा में लहराती रहती थी, जिन्हें कृपाल सिंह जी महाराज गुरूनानक जी समझा करते थे।

     कृपाल सिंह जी घुमते-घुमते एक बार सन् 1924 में लाहौर में रहते हुए उन्होंने ब्यास नदी पर जाने का निश्चिय किया, तब वहां उन्हें पहली बार बाबा सावन सिंह के दिव्य दर्शन हुए। देखते ही कृपाल सिंह जी ने कहा हुजूर इतनी देर क्यों किया मिलने में तो सावन सिंह महाराज ने कहा कि यही सबसे उत्तम समय था। तत्पश्चात सावन सिंह जी महाराज ने उन्हें पल भर के अंदर आत्म साक्षात्कार करा दिया।  

     तत्पश्चात,  2 अप्रैल 1948 को सावन सिंह महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया और इसके बाद संत कृपाल सिंह भी व्यास को छोडक़र ऋषिकेश के जंगलों में तपस्या करने निकल पड़े, यहां कृपाल सिंह जी महाराज ने कठोर तप किया व माता गंगा के दर्शन का भी लाभ लिया। उपरोक्त स्थान पर वहां उनके साथ उनके गुरु भाई हर देवी ताई जी (जोकि लाहौर में राजा बाजार के मालिक थे) भी निकल पड़े। इस दौरान संत कृपाल सिंह को फिर अंतर्ध्यान में महाराज सावन सिंह का आदेश हआ कि वह ऋषिकेश से दिल्ली आकर अपने रूहानी मिशन के कार्य को जारी रखें। इस दौरान महाराज कृपाल सिंह जी महाराज ने कई विश्व यात्राएं की। विश्व भ्रमण में रूस के राष्ट्रपति मिखायिल गोर्वाच्योव उनसे बहुत प्रभावित हुए और हमेशा के लिए उनके भक्त बन गए और  बोले कि गॉड इज इन इंडिया (God Is In India)।

      1955 में उन्होंने अपने पहले विश्व दौरे में अमरीका और यूरोप सहित कई देशों में लोगों तक अपने मिशन के महान कार्यों को समझाया और सुरत शब्द योग का संदेश दिया।  संत कृपाल सिंह जी महाराज ने 1974 ई. में यूनिटी ऑफ मैन एक विश्व धर्म सम्मेलन दिल्ली में बुलाया। इस तरह का विश्व धर्म सम्मेलन बुलाने वाले सम्राट अशोक के बाद संत कृपाल सिंह जी महाराज थे ऐसा  तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी ने कहा। भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी स्वयं इनके कार्यक्रम में आईं और बहुत ही इस तरह के कार्यक्रम की प्रशंसा भी किया।

     ज्ञात हो कि दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित इस धर्म सम्मेलन में सभी धर्मों के प्रमुखों समेत दुनिया भर से लाखों की संख्या में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वहीं सभी धर्म गुरुओं के अलावा इंदिरा गांधी, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, मदन लाल खुराना जैसे  कई महान नेताओं ने भी भाग लिया।

     परम पूजनीय कृपाल सिंह जी महाराज ने 21 अगस्त 1974 को परमात्मा में अपने आप को पूरी तरह विलीन कर दिया, पुन:  इनके बेटे दर्शन सिंह ने इनकी आध्यात्मिक विरासत संभाली। वर्तमान में  पूरे विश्व में सावल कृपाल रूहानी मिशन का कार्य-भार संत राजिन्दर सिंह जी महाराज संभाल रहे हैं। इस समय पूरे विश्व में सावन कृपाल रूहानी मिशन के केंद्र चल रहे हैं।

     6 फरवरी को परम पूजनीय संत कृपाल सिंह जी महाराज इस धरा पर अवतरित होकर पूरे विश्व को कृतार्थ किया था, उनके जन्म दिन पर श्री संत राजिन्दर सिंह जी महाराज, माता रीटा जी व उनकी प्यारी संगत को कृपाल जी के जन्म की बहुत-बहुत बधाई।