इस्तीफों का नाटक

देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष भाई अमित शाह की कुशल रणनीति के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में वंशवादी, जातिवादी और वायदावादी राजनीति का अंत हो गया है। राज्यों में कई कुनबापरस्त क्षेत्रीय दलों का सफाया हो गया है। लोकसभा चुनाव में एनडीए को 352 तो भाजपा को अकेले ही 303 सीटें मिली हैं। नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में यह एक नया इतिहास रचा गया है। महागठबंधन बनाकर मोदी-शाह को चुनौती देने वाले कई नेता तो लोकसभा में ही नहीं पहुंच पाए। दादा-पोते, बाप-बेटे, पति-पत्नी, चाचा-भतीजे सब चुनाव में हार गए।

भाजपा की इस प्रचंड विजय के कारण विपक्षी दलों में हताशा व्याप्त है। विपक्षी दलों के बड़े-बड़े वायदों के बावजूद जनता छलावे में नहीं आई। अब बारी है विपक्षी दलों में नेताओं और कार्यकर्ताओं में गुस्सा फूटने की। नेता हताश हैं तो कार्यकर्ता गुस्से में है। कार्यकर्ताओं के गुस्से को देखते हुए दलों के मुखियाओं का इस्तीफा देने का नाटक शुरु हो गया है। सबसे पहले कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया। मीडिया में आई खबरों के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदम्बरम को लेकर राहुल गांधी ने नाराजगी जताई। राहुल नाराज हैं कि इन नेताओं ने अपने पुत्रहितों को पार्टी हितों से ऊपर रखा और टिकट देने के लिए दवाब डाला। कांग्रेस कार्यसमिति ने राहुल का इस्तीफा खारिज कर दिया। मां और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी, बहन और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं के अनुरोध पर राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का अनुरोध मान लिया। प्रियंका गांधी ने कहा कि इस्तीफा देने से राहुल गांधी भाजपा की चाल में फंस जाएंगे। राहुल गांधी एक तरफ तो अन्य नेताओं को पुत्रों को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी हितों को ताक पर रखने की भड़ास निकाल रहे हैं। कांग्रेस में वंशवाद की ऐसी परिपाटी किसने प्रारम्भ की ? जैसा नेतृत्व वैसे अनुयायी। राहुल गांधी किस योग्यता के कारण कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। प्रियंका गांधी को किस योग्यता के आधार कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। क्या कांग्रेस में कोई ऐसा नेता नहीं है जो जमीनी स्तर पर कार्य कर सके। खैर राहुल को इस्तीफे की नाटकबाजी करनी थी, सो जो हुआ, वो हो गया और यूं हो गया।  पूरे दिन मीडिया इसी बात को दिखाता रहा कि राहुल इस्तीफा देंगे या नहीं देंगे। इस्तीफा देंगे और मंजूर होगा तो कौन नया अध्यक्ष बनेगा। मीडिया का ध्यान इसी पर लगा रहा। यह सब केवल मीडिया का ध्यान भटकाने के लिए ही था। लोकसभा चुनाव में हारे कुछ अन्य दलों के नेता हार के कारणों की समीक्षा करने की बात कर रहे हैं। अच्छी बात है करनी भी चाहिए पर हार के कारण की समीक्षा इमानदारी से करें। यह भी देखे कि चुनाव जीतने के लिए जातिवादी और वंशवादी राजनीति अब नहीं चलेगी। देश की जनता को अब वायदे नहीं काम करने वाली सरकार चाहिए।

इसी तरह नाटकबाजी में माहिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी इस्तीफा देने का खेल रचा। राहुल के इस्तीफे देने का नाटक का खेल तो बाहर आया पर ममता बनर्जी ने खुद ही घोषणा की कि वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना चाहती हैं पर पार्टी ने मना कर दिया। राहुल गांधी ने तो चुनाव में अपनी हार मान ली और नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह को बधाई दी पर ममता बनर्जी तो अपनी हार मानने के लिए तैयार ही नहीं है। ममता ने एक कविता भी लिखी, जिसमें कहा गया कि वे अपनी हार मानने को तैयार नहीं है। ममता ने हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा है। हार से बौखलाई ममता के गुंडे राज्य में भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे हैं। ममता बनर्जी ने राज्य में आपातकाल जैसे हालात पैदा करने के आरोप लगाए। ऐसे हालात किसने बनाएं हैं, यह पूरा देश जानता है। ममता बनर्जी ने देश के संविधान, अदालत, चुनाव आयोग समेत सभी संवैधानिक संस्थाओं का अपमान किया है। केंद्र सरकार की हर योजना को विरोध करके किसने टकराव की शुरुआत की। प्रधानमंत्री को जेल भेजने की धमकी किसने दी। हार के डर से ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का नाटक महज अखबारों में जगह पाने के लिए किया। अखबारों में उन्हें जगह भी मिली। अब जनता तो जनता है और सबकुछ जानती है।