जैश-लश्कर ए शैतान को समाप्त करना ही होगा

विष्णुगुप्त

पाकिस्तान अपने आप को शांति का मसीहा घोषित कर दिया, इमरान खान के लिए शांति का नाॅबल पुरस्कार मांग लिया। भारत में भी बहुत सारे ऐसे लोगों हैं जो इमरान खान के कथित तौर पर युद्ध विरोधी सोच का समर्थन कर रहे हैं और इमरान खान की चरणवंदना भी कर रहे हैं? यह भी सही है कि भारत में एक ऐसा गिरोह हमेशा सक्रिय रहा है जो भारत की एकता और अखंडता के प्रति विनाशक सोच रखता है, भारत की संस्कृति को खंडित व अपमानित करने की कोशिश करता है, भारत के प्रेरणास्रोत महापुरूषों को कंलकित करने या फिर उन्हें तेजाबी और खतरनाक बताने का जेहाद जारी रहता है, कभी ऐसे गिरोहों ने ही चीनी हमलावर माओत्से तुंग को अपना प्रधानमंत्री तक कह डाला था, चीन को हमलावर नहीं बल्कि भारत को ही हमलावर कह दिया था, महात्मा गांधी तक को ब्रिटेन का एजेंट तो फिर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिलटर के दलाल तक कहे थे, एक पूरी की पूरी आयातित संस्कृति राष्ट्र की अवधारणा को नहीं मानती, पूरी की पूरी कम्युनिस्ट जमात राष्ट्र की अवधारणा को नहीं मानती है, सोवियत संघ कोई राष्ट्र नहीं बल्कि राष्ट्रों का समूह था। मुश्किल और खतरनाक स्थिति यह है कि कांग्रेस जैसी पार्टी जिसका योगदान देश की आजादी में था उस पार्टी का मुख्य एजेंडा ऐसे समूह द्वारा निर्धारित होता है जो कांग्रेस की जड़ों में मटठा डालने जैसा कार्य करता है, कांग्रेस की कमजोरी का एक बडा कारण भी यही है। ऐसे समूहों और ऐसे समूहों पर पलने वाले लोगो को भारत की बढती शक्ति कैसे स्वीकार हो सकती है, भारत की दुनिया बढ़ती धाक कैसे स्वीकार हो सकती है, भारत के शख्त रवैये पर पाकिस्तान के झुकने और इमरान खान के विवश होने की बात कैसे स्वीकार हो सकती है? इमरान खान की प्रशंसा तब हो सकती है जब वह आतंकवादी संगठनों का अपने देश में सर्वनाश करेंगे, आतंकवादी संगठनों को जमींदोज करने का पराक्रम दिखायेंगे। तुर्की में मोहम्मद कमाल पाशा का उदाहरण को पाकिस्तान में सच कर दिखायेंगे।

            अभिनंदन को बिना शर्त रिहाई करना तो एक मजबूरी थी, दुनिया का कोई देश अपने हितों को बलिदान कर पाकिस्तान और इमरान खान को मदद नहीं कर सकता है। पाकिस्तान का आका चीन खुद पाकिस्तान का साथ छोड दिया और चीन यह नहीं चाहता था कि भारत को पाकिस्तान पर आक्रमण करने का अवसर मिले। अगर भारत पाकिस्तान पर आक्रमण कर देता और युद्ध हो जाता तो फिर चीन का भी एक बडा नुकसान होता है। जो लोग चीन की निवेश नीति और सामरिक नीति नहीं जानते हैं उनके लिए जानकारी का विषय यह है कि गुलाम कश्मीर में चीन के सामरिक ठिकाने हैं, चीन पाकिस्तान के अंदर में करोड़ों हजार डालर के निवेश किये हैं जो युद्ध के दौरान प्रभावित होते। चीन अगर पाकिस्तान का पक्ष लेता तो फिर चीन को भारत के बाजार से हाथ धोना पड़ता। अमेरिका पहले से ही पाकिस्तान से नाराज है। पाकिस्तान के पडोसी देश ईरान खुद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से ग्रसित है, ईरान कई बार पाकिस्तान को अपने आतंकवादियों को काबू में रखने , नही ंतो कार्रवाई का भुगतभोगी होने की धमकियां दे रखी है। पाकिस्तान के आतंकवाद से न केवल भारत पीडित है बल्कि चीन, अफगानिस्तान और ईरान भी पीडित है। यह बात भारत के पाकिस्तान परस्त लोग जानते हैं कि नहीं पर विश्व बिरादरी जरूर जानती है। इसीलिए पाकिस्तान के अंध मित्र सउदी अरब और तुर्की जैसे देश भी इमरान खान को सच का आइना दिखाये और युद्ध से बचने तथा भारत से संबंध सुधारने के लिए कह डाले। अब आप ही बता सकते हैं कि इमरान खान के पास विकल्प क्या थे?

            इमरान खान को शांति का मसीहा बताने वाले भारत के तथाकथित शांति के मठाधीशों को इमरान खान द्वारा संसद में दिये गये भाषण का अवलोकन करना चाहिए। इमरान खान ने भारत के एयर सर्जिकल स्ट्राइक के खिलाफ अपने संसद में उसी तरह की आग उगली जिस तरह के आग जियाउल हक उगलते थे, जिस तरह की आग परवेज मुर्शरफ उगलते थे, जिस तरह की आग नवाज शरीफ उगलते थे। इमरान खान ने यहां तक कह डाला कि कश्मीर में भारतीय सेना आतंकवाद से बढकर हिंसा करती है, कश्मीर में भारत खलनायक है, पाकिस्तान कश्मीर के आतंकवादी संगठनों का समर्थन करती है और करती रहेगी। जब इमरान खान खुलेआम अपनी संसद में कश्मीर के आतंकवाद का समर्थन करते हैं तब इमरान खान को शांति का मसीहा कैसे और क्यों माना जाना चाहिए? सच का आईना यह है कि कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ही भारत को पीडित करता है, कश्मीर के आतंकवादी संगठन पाकिस्तान प्रायोजित और पोषक हैं, यह पूरी दुनिया भी जानती है। खुद उल्टे पाकिस्तान गुलाम कश्मीर के अंदर मानवाधिकार की कब्र खोद रखी है। गुलाम कश्मीर के अंदर पाकिस्तान की गुलामी के खिलाफ जब-तब आंदोलन होते रहे है, जिसे पाकिस्तान की सेना बर्बरता से कुचलती रही है।

जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तोयबा जैसे इस्लामिक संगठन की खतरनाक प्रवृति और खतरनाक हिंसा को इमरान खान या फिर पाकिस्तान के आवाम तथा पाकिस्तान की सेना क्यों नहीं समझती है। जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तोयबा जैसे इस्लामिक संगठन सिर्फ और सिर्फ शैतान हैं। अगर ये सोचते हैं कि जैश ए मोहम्मद या फिर लश्कर ए तोयबा जैसे मुस्लिम संगठन से सिर्फ भारत ही पीडित है, सिर्फ भारत ही इनके आतंकवाद से ग्रसित है तो फिर ये अपनी सोच और समझ बदल लें। मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की करतूत से भारत जितना पीडित नहीं है उससे हजार गुना पीड़ित पाकिस्तान है, भारत से अधिक आतंकवादी घटनाएं पाकिस्तान के अंदर घटती है, मुस्लिम आतंकवादी संगठन पाकिस्तान के अंदर शिया और सुन्नी का विभेद करा कर मुसलमानों को गाजर मुल्ली की तरह काटते हैं। एक मुस्लिम आतंकवादी संगठन द्वारा बच्चों के स्कूल पर आत्मघाती हमला कर सौ से अधिक बच्चों को मौत का घाट उतारने की आतंकवादी घटना को आप भूल गये हैं क्या? पाकिस्तान की सेना को अफगानिस्तान से लगे प्रदेशों में आतंकवादी संगठनों को नियंत्रित करने मे कितनी मुश्किल का सामना करना पडता है, पाकिस्तान की सेना खुद आतंकवादियों की गोली का शिकार हो जाती है फिर भी पाकिस्तान की सेना मुस्लिम आतंकवादी संगठनों को पालने-पोषने से पीछे नहीं हटती है, गुड तालिबान,बैठ तालिबान, गुड आतंकवादी संगठन, बैठ आतंकवादी संगठन की अवधारणा ही पाकिस्तान की खुशफहमी और पाकिस्तान के संकट के लिए जिम्मेदार है, ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान के अंदर कई संप्रभुत्ताओ की लडाई चल रही है, पाकिस्तान के अंदर में मुहाजिर देश, बलूच देश तो फिर सिन्धी देश की मांग उठती रही है।

            पाकिस्तान को किसी मोहम्मद कमाल पाशा की जरूरत है। कभी तुर्की में मुल्ला-मौलवियों ने इस्लाम के अनुदारवाद और अरब के जाहिलपन का बाजार लगा रखे थे। महोम्मद कमाल पाशा ने छह महीने के अंदर अरबी भाषा की जगह अपनी भाषा बनायी और लागू की थी, कठमुल्लापन, इस्लाम के अनुदारवाद को जमींदोज कर आधुनिक तुर्की की नींव रखी थी, आधुनिक तुर्की यूरोप के आधुनिकतावाद और उदारवाद का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थी। हालांकि अब तुर्की में भी इस्लाम का अनुदारवाद हावी होने लगा है। इमरान खान तो मोहम्मद कमाल पाशा बन नहीं सकते हैं, वे समाजशास्त्री या फिर समाज सुधारक भी नहीं है। इमरान खान तो उसी सेना की देन है, उसी सेना ने चुनावों में धांधली कर प्रधानमंत्री पद पर बैठवायी है जिस सेना ने मुस्लिम आतंकवादियों का पालन-पोषण कर भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देती है, अफगानिस्तान और ईरान को भी आतंकवाद से पीडित करती है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आतंकवाद को आउटसोर्सिंग कर शांति का दुश्मन बन बैठती है।

इमरान खान की तारीफ तब हो सकती है, इमरान खान की वीरता तो तब मानी जायेगी जब वह मोहम्मद कमाल पाशा के रास्ते का अनुकरण कर पाकिस्तान को आतंकवाद मुक्त बनायेगे। नही ंतो फिर इसी तरह पाकिस्तान को दुनिया भर मे भीख मांगने के लिए कटोरा लेकर घूमना पडेगा, जहां पर सिर्फ और सिर्फ अपमान ही मिलेगा, एक न एक दिन जैश ए मोहम्मद-लश्कर ए तोयबा जैसे संगठन पाकिस्तान के अस्तित्व भंजन के लिए ही जिम्मेदार साबित हो सकते हैं।

 

 

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