महुआ के बहाने बेनक़ाब हुए ‘ माननीय ‘

    भारतीय संसद को वैसे तो लोकतंत्र का मंदिर भी कहा जाता है। हमारे देश के जनप्रतिनिधि इसी संसद भवन में बैठकर देश के भविष्य की योजनायें व इससे सम्बंधित क़ानून बनाते हैं। इसलिये यह कहने की ज़रुरत नहीं कि प्रत्येक सांसद को पूर्ण रूप से संसदीय व्यवस्था व सञ्चालन को समझने की क्षमता रखने वाला,संसदीय क़ायदे क़ानूनों का जानकार ,गंभीर,ज़िम्मेदार,ईमानदार,अनुशासित तथा समाज के लिये आदर्श पेश करने वाला नेता होना चाहिये। परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं । स्वतंत्रता से लेकर अब तक जहां हमारी संसद में अनेकानेक ऐसे सांसद हुए हैं जिनपर देश नाज़ करता है वहीँ दुर्भाग्यवश इसी संसद में अपराधी,भ्रष्ट,रिश्वतख़ोर,सवाल पूछने के बदले पैसे लेने वाले,संसद में हाथा पाई,मारपीट तथा लात घूसा चलाने वाले,ज़मीर फ़रोश,सिद्धांत विहीन,सत्ता लोलुप,दलबदलू यहां तक कि अशिक्षित सांसद भी 'शोभायमान ' होते रहें। इसके अतिरिक्त यही माननीय कई बार सांसद की गरिमा के विरुद्ध आचरण करते भी देखे जा चुके हैं। उदाहरण के तौर पर मार्च 2000 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के पाँच दिवसीय दौरे पर आए थे उस दौरान उन्होंने 22 मार्च को संसद के केंद्रीय कक्ष में संयुक्त भारतीय संसद को भी संबोधित किया था। खचाखच भरे इस केंद्रीय हाल में राष्ट्रपति क्लिंटन के संबोधन के बाद जिस तरह हमारे 'माननीयों ' में क्लिंटन के साथ हाथ मिलाने व फ़ोटो खींचाने की होड़ मची थी वह दृश्य भी अभूतपूर्व था। अनेक सांसद उस दिन कुर्सियां फांद कर एक दूसरे को पीछे छोड़ राष्ट्रपति क्लिंटन की तरफ़ जाते दिखाई दिये थे। यह उनसे हाथ मिलाने व उसके साथ फ़ोटो खिंचाने के लिये लालायित थे। इस दृश्य ने भी अनेक 'माननीयों' की मानसिकता व उनकी हक़ीक़त को उजागर किया था। आज भी उसी मानसिकता के अनेक सांसद समय समय पर संसद में 'मोदी '- 'मोदी' का जाप करते सुनाई देते हैं। ऐसा 'नेता जाप ' भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश की संसद में होते नहीं सुनाई देता। 

     पिछले दिनों भारतीय संसद में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया। उनपर संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने तथा लोकसभा पोर्टल का अपना लॉग इन पासवर्ड, लोकसभा नियमों के विरुद्ध दूसरों से शेयर करने के आरोप हैं। हालांकि महुआ मोइत्रा के लोकसभा से निष्कासन को विपक्ष बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता रहा है वहीं सरकार व उसके पक्षकारों का मत है कि महुआ के साथ जो कुछ हुआ है वह सब कुछ नियमों के तहत ही  हुआ है। परन्तु महुआ प्रकरण पर गत 8 दिसंबर को लोकसभा में चली चर्चा के दौरान जब महुआ के समर्थन में बांका (बिहार ) के जनता दल यूनाइटेड सांसद गिरधारी यादव खड़े हुये तो उनके मुंह से कुछ ऐसे वाक्य निकले जिन्होंने न केवल लोकसभा अध्यक्ष बल्कि पूरी संसद को स्तब्ध कर दिया। चूँकि गिरधारी यादव अपने क्षेत्र से चार बार विधायक और तीन बार लोक सभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हो चुके हैं इसलिये जनता के बीच उनकी लोकप्रियता से इंकार क़तई नहीं किया जा सकता। गिरधारी यादव ने साफ़ साफ़ कहा कि न तो उन्हें लोकसभा पोर्टल लॉगिन करना आता है न ही उन्हें अपना पासवर्ड याद रहता है न ही वे लोकसभा में अपने सवाल खुद तैयार करते हैं। बल्कि उनका यह सारा गोपनीय काम उनके पी ए करते हैं।

     निश्चित रूप से सांसद गिरधारी यादव द्वारा संसद में ऑन रिकार्ड की गयी यह स्वीकारोक्ति ग़ैर क़ानूनी व संसदीय नियमों के विरुद्ध थी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सांसद गिरधारी यादव के इस बयान पर घोर आपत्ति भी दर्ज की और उन्हें सचेत भी किया कि सदन में ऑन रिकार्ड दिये गये आपके इस विवादित बयान को लेकर आपके विरुद्ध कार्रवाई भी हो सकती है। परन्तु गिरधारी यादव ने बिना छुपाये हुये अपनी जो हक़ीक़त थी वह बयान कर डाली। साथ ही यह भी कहा कि अब उनकी यह उम्र कम्यूटर आदि सीखने की नहीं और उन्हें यह सब नहीं आता। जब लोकसभा अध्यक्ष सांसद गिरधारी यादव की बातों से असहज हुये तो उन्होंने इस गंभीर विषय पर संसद की नब्ज़ भी टटोलनी चाही। उन्होंने उसी समय वरिष्ठ तृणमूल सांसद सुदीप बंदोपाध्याय से पूछा कि क्या आप इनकी (सांसद गिरधारी यादव) बातों से सहमत हैं। इसपर उस वरिष्ठ सांसद ने सदन में जो बात कही वह भारतीय संसद की हक़ीक़त को उजागर करने के लिये काफ़ी है। बंदोपाध्याय ने कहा कि आप दस दस सांसदों के ग्रुप को अपने कार्यालय में बुलाकर स्वयं देख लें कि कितने सांसदों को लॉगिन करना और कंप्यूटर संचालन आता है। यह सुनते ही लोकसभा अध्यक्ष जो सांसद गिरधारी यादव को उनके विवादित बयान के लिये कार्रवाई की धमकी देते सुनाई दिये वही स्पीकर, सुदीप बंदोपाध्याय की बात सुनकर ठन्डे पड़ते देखे गये।

      सवाल यह है कि क्या सांसद गिरधारी यादव की बातों पर सुदीप बंदोपाध्याय की प्रतिक्रिया और उनकी प्रतिक्रिया सुन लोकसभा अध्यक्ष की ख़ामोशी भारतीय सांसदों की हक़ीक़त को उजागर नहीं करती ? और यहीं से दूसरा सवाल महुआ मोइत्रा पर लगे आरोपों को लेकर भी खड़ा होता है कि जब सांसद गिरधारी यादव सदन में स्वीकार कर चुके कि न तो वे लोकसभा के अपने सवाल तैयार करते हैं न ही उन्हें अपना लॉग इन पासवर्ड याद रहता है। उनके यह सारे काम कोई अन्य (उनका पी ए ) करता है। फिर इन्हीं आरोपों में केवल महुआ मोइत्रा ही दोषी क्यों ? रहा सवाल देश विदेश में संसद की गरिमा धूमिल करने का,जैसा कि सत्ता पक्ष के कई सांसदों द्वारा लोकसभा में चर्चा के दौरान महुआ मोइत्रा पर आरोप लगाया गया। तो संसद की गरिमा इससे भी अधिक पूरे विश्व में पहले भी धूमिल होती रही है। याद कीजिये इसी वर्ष 21 सितंबर को जब भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने सांसद दानिश अली को संसद में निशाना बनाते हुये  उनके पूरे समुदाय को संसद में गाली दी थी और अपमानित किया था। क्या एक निर्वाचित सांसद के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करना उसे गलियां देना,धमकी देना संसद की गरिमा को नहीं गिराता ? भारतीय संसद ऐसी और भी अनेक घटनाओं की साक्षी रही है जिससे लोकतंत्र के इस मंदिर की गरिमा को धक्का लगता रहा है। अदानी के बढ़ते साम्राज्य पर संसद के भीतर व बाहर मुखरित होकर बोलने वाली सांसद महुआ मोइत्रा को बहुमत के ज़ोर पर संसद की सदस्य्ता से निष्कासित तो ज़रूर कर दिया गया है। परन्तु इस चर्चा के दौरान महुआ के बहाने माननीयों की हक़ीक़त से भी पर्दा उठ गया है।

                        (लेखक स्वतंत्र विचारक हैं, अपने लेख के लिए स्वयं उत्तरदायी हैं)