मोदीवाद की ऐतिहासिक जीत के तत्व

राष्ट्र-चिंतन

            विष्णुगुप्त

मोदीवाद की जीत है, मोदीवाद का जनादेश है, जनता मोदी के साथ चली, सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि भाजपा के सहयोगी पार्टियां भी मोदीवाद के सहारे ही जीत पायी हैं, वे स्वयं के बल पर जीती नही हैं। अब डिस्नरी में मोदीवाद एक नया शब्द जुड जाना चाहिए। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि मोदीवाद का जनादेश की कसौटी पर अर्थ क्या है? जनादेश की कसौटी पर अर्थ विकास है, उन्नति है, स्वच्छता है, जनहित सुरक्षा है, देशभक्ति है, सीमा पर सैनिकों का सम्मान है, देश के दुश्मनों को कठोर और सबक कारी जवाब, दुनिया में भारत का डंका बजाने, स्वच्छ व्यापार और स्वच्छ आय पर आसान कर सुनिश्चित करना होता है। इन सभी प्रश्नों पर मोदी की छवि और मोदी का काम बेहतर से बेहतर था, हालांकि विपक्ष और तथाकथित सेक्युलर संस्कृति के बुद्धिजीवी इन सभी प्रश्नों पर मोदी की विफलता मानते थे और इन सभी प्रश्नों पर मोदी की आलोचना करने की कोई अवसर नहीं छोडते थे, आलोचना सिर्फ आलोचना तक सीमित नहीं थी। आलोचना अश्लील और अपमानजनक थी। सबसे बडी बात यह थी कि पूरे पांच साल तक मोदी के समर्थक जनता को सांप्रदायिक,देश तोडक, खतरनाक, विध्वंसक बताया जाता रहा, मोदीवाद के समर्थक लोगों को अंधभक्त कह कर अपमानित किया जाता रहा। जनता ऐसे अपमानजनक व्यवहार और राजनीति पर अपना त्रिनेत्र भी खोलती है। जाहिर तौर पर देश की जनता ने इस लोकसभा चुनाव में मतदान करने के समय अपना त्रिनेत्र खोली और अपनी जनता को ही सांप्रदायिक,खतरनाक, विध्वंसक कहने वाली राजनीतिक पार्टियों के भविष्य को जमींदोज कर डाली। लोकतंत्र में जनता ही संदेशवाहक भी होती है, लोकतंत्र में राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दलों को जनता के संदेश को आत्मसात करना होता है, जनता के संदेश के अनुसार राजनीतिज्ञों और राजनीतिक पार्टियों को अपनी गलतियां सुधारनी होती है। पर भारतीय राजनीति में राजनीतिक पार्टियां अपनी गलतियां सुधारती ही नहीं हैं। बार-बार जातिवाद, क्षेत्रवाद और अति अल्पसंख्यक वाद से जनता छुटकारा भी लेती है।

                         फिर से बहुमत के साथ सत्ता में लौटना नरेन्द्र मोदी के लिए कितना कठिन काम था, मोदी के सामने चुनाव जितने के लिए कितनी भयानक चुनौतियां खडी थी, कितने बडे-बडे अवरोधक थे, देश के बाहरी दुश्मन भी मोदी के लिए चुनावी दुश्वारियां खडी कर रहे थे, यह भी सब जगजाहिर है। कांग्रेस अपने ब्रमास्त्र यानी प्रियंका गांधी को मोदी के खिलाफ चुनाव प्रचार में उतार चुकी थी। एनडीए से अलग होकर चन्द्रबाबू नायडू विपक्षी एकता का स्वयं सूत्रधार बन कर घूम रहा था। 2014 में जितनी भयानक, खतरनाक चुनौतियां नहीं थी उससे भी बढकर 2019 की चुनौतियां सामने थी। 2014 में पूरा सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस और मोदी विरोधी तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक पार्टियां विखरी हुई थी, उनमें एकता नहीं थी, सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस जनविरोधी हो गयी थी, कांग्रेस अहंकारी भी हो गयी थी, जनता के हित कांग्रेस के लिए कोई अर्थ नहीं रह गया था। उत्तर प्रदेश जैसे देश के बडे राज्य जहां पर 80 सीटें हैं वहां पर अखिलेश सिंह यादव और मायावती भी अलग-अलग चुनाव लडे थे। इसलिए 2014 के लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के लिए बडा ही आसान था, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परस्थितियां भी नरेन्द्र मोदी के लिए सहायक थी। पर इस 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के लिए सब कुछ नकरात्मक था, ऐसा राजनीतिक वातावरण गढ दिया गया था कि नरेन्द्र मोदी तो हवा-हवाई हो गये। कांग्रेस बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे बडे राज्यों में गठबंधन पर सवार होने के लिए सफलता हासिल की थी, अर्थात कांग्रेस अपने आप को सत्ता का दावेदार मान चुकी थी। उत्तर प्रदेश में दो विपरीत विचार धारा वाले और दो विपरीत जनाधार वाले राजनीतिक दल एक हो गये, यानी कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी। कभी ये दोनों राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे के घोर विरोधी थी। सपा और बसपा के गठबंधन ने इस लोकसभा चुनाव की दशा-दिशा बदल चुकी थी। पर यह गठबंधन भी मोदीवाद की लहर में कोई खास करिश्मा नहीं कर पाया। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा पहले की उपलब्धि नहीं दोहरा पायी, फिर भी उत्तर प्रदेश में भाजपा की सफलता कम नहीं आंकी जा सकती है।

                           नकारात्मक राजनीति को भी पराजय मिली है, संदेश यह भी गया है कि नकरात्मक राजनीति से सत्ता नहीं मिल सकती है, राजनीतिक पार्टियां अपना चुनावी भविष्य तय नहीं कर सकती है। नकरात्मक चुनावी राजनीति कैसी-कैसी रही है, यह भी देख लीजिये। नकरात्मक चुनावी राजनीति की पडताड राहुल गांधी से करते हैं। राहुल गांधी ने चैकीदार चोर है का नारा दिया था, चैकीदार चोर है का अर्थ था कि नरेन्द्र मोदी चोर है। राहुल गांधी ने चुनाव के दौरान सुप्रीम कोर्ट को लपेट दिया, यहां तक कह दिया कि चैकीदार चोर है पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। राहुल गांधी द्वारा चुनाव के दौरान सुप्रीम कोर्ट को लपेटने पर बडी बदनामी हुई, सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी को अवमानना का मुकदमा झेलना पडा। राहुल गांधी ने बार-बार पैंतरेबाजी की पर राहुल गांधी की पैतरेंबाजी ध्वस्त हो गयी। कोई एक बार नहीं बल्कि चार बार सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी को माफी मांगनी पडी। सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी विरोधी पूरा विपक्ष चैकीदार चोर है का नारा लगा रहा था। जनता के अंदर यह बात बैठ गयी कि राहुल गांधी और पूरा विपक्ष उस व्यक्ति को चोर कह रहा है जो अपनी पत्नी, अपनी मां और अपना पूरे परिवार से अलग है, जिसके लिए राजनीति से अलग और कोई एजेंडा नहीं है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने एक ऐसे व्यक्ति को लोकसभा चुनाव में उतार दिया जो मोदी को टुकडे-टुकडे करने की घोषणा कर डाली थी। ममता बनर्जी कहती थी मैं नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानती, देश के प्रधानमंत्री को कोई मुख्यमंत्री पद पर बैठी हुई राजनीतिज्ञ अगर प्रधानमंत्री नहीं मानने का बयान देगी तो फिर जनता में कैसा संदेश गया? यह संदेश तो आप चुनाव परिणामों में देख सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ममता बनर्जी ने नरेन्द्र मोदी को थप्पड मारने की भी बात कही थी। राबडी देवी, लालू, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, मायावती, अरविन्द केजरीवाल ने कैसी-कैसी चुनावी अश्लील और अपमानजनक टिप्पनियां मोदी के खिलाफ की थी, यह भी जगजाहिर है। कांग्रेस के नेता मनिशंकर अय्यर फिर अपनी पुरानी भूमिका लौट आये, मनिशंकर अय्यर ने चुनाव के दौरान फिर कह डाला कि नरेन्द्र मोदी सही में नीच आदमी है, प्रधानमंत्री के लायक नहीं है, वह निचता की सारी सीमाएं तोड डाली है। मनिशंकर अय्यर कभी कहा था कि एक चाय बेचने वाला नरेन्द्र मोदी कैसे प्रधानमंत्री बनेगा, अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनता है तो देश के लोकतंत्र समाप्त हो जायेगा। अतिरंजित और अपमान जनक टिप्पणियों के लिए कांग्रेस ने मनिशंकर अय्यर को पार्टी से निलंबित कर दिया था पर फिर से उसकी वापसी क्यों हुई, यह कांग्रेसी रणनीति समझ से परे है। राजीव गांधी को महाभ्रष्ट कहने पर नरेन्द्र मोदी की भाषा पर उंगली उठी थी पर जनता में यह संदेश गया कि राहुल गांधी जब नरेन्द्र मोदी चोर है, कहेंगे तो फिर राजीव गांधी को निशाना क्यों नहीं बनाया जा सकता है?

                             दुनिया में राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा भी सत्ता बनाने और सत्ता बिगाडने की कसोटी बन चुकी है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा पर हिलेरी क्लिंटन को हरा कर राष्ट्रपति बने थे। राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा की कसौटी पर ही अभी अभी बेजांमिन नेतन्याहु इजरायल में चुनाव जीते हैं, जबकि बेंजामिन नेतन्याहु की स्थिति काफी कमजोर बतायी जा रही थी। आस्ट्रलिया और फ्रांस के चुनावों में भी राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा की जीत हुई थी। कहने का अर्थ यह है कि दुनिया भर में राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा पर सत्ता हासिल हो रही है। भारत में अभी-अभी राष्ट्रवाद की जोरदार हवा बह रही है, राष्ट्रवाद की जो हवा बह रही है उसके पीछे कारण क्या है, इसके लिए दोषी कौन हैं? भारत में एकंाकी सांप्रदायिकता की व्याख्या और राजनीति तथा अति अल्पसंख्यकवाद ही दोषी रही है। एकांकी सांप्रदायिकता की व्याख्या और राजनीति तथा अति अल्पसंख्यकवाद का जनक कांग्रेस है और जातिवादी, क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां है, लालू, मुलायम, अखिलेश, मायावती, हुडा, देवगौडा, आदि अपनी जातिवादी राजनीति की किस्मत बनाने के लिए अति अल्पसंख्यक वाद पर उतर आते हैं। चुनाव के दौरान सीताराम यचुरी ने रामायण और महाभारत के हिंसक ग्रंथ कह कर राष्ट्रवाद की नींव मजबूत कर डाली थी, सीताराम यचुरी ने ऐसा कह कर नरेन्द्र मोदी के समर्थकों को न केवल भडकाया बल्कि बहुसंख्यवक जनता को भी अपने विरोधी तथा मोदी के समर्थक बना डाला। सोशल मीडिया पर राष्ट्रवादियों की चर्चा थी कि सीताराम यचुरी की हिम्मत है तो फिर कुरान या बाईबल के खिलाफ बोल कर दिखायें। यही कारण है कि भारत में उल्टा हो रहा है, हर देश में अल्पसंख्यक उत्पीडित होते हैं पर भारत में अल्पसंख्क अराजक और हिंसक हो कर बहुसंख्यक आबादी को ही हिंसा का शिकार बना देती है। इसी का दुष्परिणाम है कि भारत में राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा बनी हुई है। 2014 में भी नरेन्द्र मोदी राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा की कसौटी पर जीते थे और 2019 के इस चुनाव में भी राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा काम की है। अगर राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा के समाने जातिवादी और क्षेत्रीय मानसिकता की पार्टियां जमींदोज हो रही हैं तो फिर यह अच्छी बात है लोकतंत्र के लिए सुखद संदेश है।

                              खासकर राहुल गांधी को अब सकारात्मक राजनीति करनी होगी। प्रियंका गांधी का ब्रमास्त्र मोदी लहर में काम किया नहीं। अब कांग्रेस मोदी के सामने कौन सा ब्रमास्त्र लायेगी। अब नरेन्द्र मोदी के विरोधियों को नकरात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक राजनीति करनी होगी, नही ंतो फिर नरेन्द्र मोदी के समाने इसी तरह पराजित होते रहेंगे।

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