हिंदू बच्चों को मजहबी शिक्षा देना संविधान का उल्लंघन है

आचार्य श्री विष्णुगुप्त
 

देश के विभिन्न राज्यों में धर्म परिवर्तन कराने और मजहबी जहर घोलने के लिए इस्लामिक मदरसों की करतूत सामने आयी है, जिस पर अभी तक केन्द्रीय सरकार, मानवाधिकार आयोग और कानून व संविधान का रक्षक सुप्रीम कोर्ट को क्यों खामोश है? मदरसों में एक साजिश के तहत गैर मुस्लिम बच्चों जैसे हिन्दुओं और ईसाईयों और बुद्ध धर्म के बच्चों को नामांकन कराया जाता है, लालच के तौर पर छात्र वृतियां भी प्रदान की जाती है और उन्हें इस्लाम से संबंधित विषयों को पढ़ाया जाता है, इस्लाम के अनुसार आचरण करने के लिए सिखाया जाता है। जानना यह भी जरूरी है कि मदरसों की पूरी व्यवस्था ही इस्लामी है।

            मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चें पढ़ने क्यों जाते हैं? इसके दो कारण है। एक कारण लालच है और दूसरा कारण मजबूरी है। पहले चर्चा मजबूरी पर। कई राज्य सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण पर चलती हैं और वे जान बुझ कर इस्लामीकरण के सुलभ और आसान रास्ते बनाने में मदद करते हैं। मिश्रित आबादी के बीच सामान्य सरकारी स्कूलों को बंद कर देते हैं। इसके बाद गैर मुस्लिम बच्चों को शिक्षा के अधिकार का हनन कर लिया जाता है। गैर मुस्लिम बच्चों को शिक्षा का कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचता है। पश्चिम बंगाल, केरल और बिहार के कई जिलों में इस तरह की समस्याएं आम है। देश के हजारों स्कूलों को सरेआम इस्लामिक स्कूलों में बदल दिया गया है।

                    उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों को इस्लामिक स्कूलों में तब्दील करने की घटना लोमहर्षक हुई थी। खासकर मायावती और अखिलेश यादव के राज्य में सामान्य सरकारी स्कूलों को इस्लामी स्कूलों में तब्दील कर दिया गया था। रविवार की जगह शुक्रवार को स्कूल बंद होते थे और इस्लाम की शिक्षा होती थी। मुझे ऐसी जानकारी मिली थी। मैंने इस पर एक लेख लिखा और कई स्तरों पर शिकायत करायी। इसके बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जागी थी। सरकारी जांच हुई तो पता चला कि सरकारी दस्तावेज में स्कूल तो सामान्य ही था पर पढ़ाई और नियम कानून इस्लामिक थे। जिन लोगों ने सरकारी आदेश के बिना सामान्य वर्ग के स्कूलों को इस्लामिक घोषित किया गया था उन लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऐसी करतूत को योगी सरकार के नौकरशाहों पर्दा डाल दिया।

         अब लालच पर चर्चा करते हैं। लालच यह दिया जाता है कि मदरसों में कम पढ़ाई के बाद भी अच्छे नंबर मिलेंगे। फेल होने का कोई डर नहीं होगा। इसके अलावा छात्र वृतियां भी खूब मिलेगी। छात्रवृतियों के पैसे से एसोआराम करोगे और इस्लाम की फ्री पुस्तकें भी पढ़ने को मिलेगी, स्कूल फीस से भी मुक्ति मिलेगी। मुस्लिम बच्चों वाले स्कूलों को जमकर सरकारी लाभ मिलते हैं और मुस्लिम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को जमकर छात्रवृतियां मिलती हैं।

         गैर मुस्लिम यानी हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध बच्चों को इस्लामिक शिक्षा देना संविधान का उल्लंघन है। संविधान की धारा 28 में यह प्रावधान है कि आप अपनी मजहब को गैर धर्म के बच्चों पर लाद नहीं सकते हैं। इसके अलावा लालच और बल पूर्वक शिक्षा के लिए बच्चों को बाध्य नहीं कर सकते है। इस तरह की मजहबी शिक्षा के लिए बच्चों के अभिभावकों की स्वीकार्यता आवश्यक है।

                   पर दुर्भाग्य यह है कि लोभ, लालच देकर हिन्दु, मुस्लिम और सिख बच्चों को इस्लामिक शिक्षा दिया जा रहा है। इसका सीधा अर्थ देश का इस्लामीकरण करना है। यह कार्य बहुत ही तेजी से चल रहा है। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारें इसमें इस्लामिक संस्थानों को मदद दे रही हैं और सभी प्रकार के हथकंडे उपलब्ध करा रहे हैं। केन्द्रीय सरकार, मानवाधिकार आयोग और संप्रीम कोर्ट को इस प्रश्न पर कानून का बलडोजर चलाने की जरूरत है। पर ये सभी अभी तक खामोश क्यों है? यह प्रश्न कौन पूछेगा?

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