बीबीसी की झूठी पत्रकारिता

 बीबीसी की भगवान राम विरोधी और झूठी पत्रकारिता पर चला बेनकाब का बुलडोजर

राष्ट्र चिंतन

 आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
 

      अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान बीबीसी ने झूठी और अफवाही और सनातन विरोधी पत्रकारिता का प्रदर्शन किया है, इसके कारण पत्रकारिता के मूल चरित्र का संहार हुआ है, हनन हुआ है। यह मैं नहीं कह रहा हूं। यह भारत सरकार नहीं कह रही है। यह कोई सनातनी संगठन नहीं कह रहे हैं, ऐसा कोई भारतीय नियामक नहीं कह रहा है। फिर कौन कह रहा है? अगर आप यह जानगे कि ऐसा कौन कह रहा है तो फिर आप भी आश्चर्य में पड जायेंगे। ऐसा ब्रिटेन का सांसद कह रहे हैं। ब्रिटेन के सांंसद बॉब बैल्कमेन का कहना है कि प्राण प्रतिष्ठा के दिन बीबीसी ने मुस्लिमों को भडकाने जैसे प्रसारण किये और लेख-समाचार प्रकाशित किये हैं, झूठी बातें लिखी गयी हैं, मंस्जिद के पक्ष में ज्वाला भडकाने और मंदिर का विरोध करने जैसी करतूत की गयी, इतिहास और भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज कर दिया गया, ऐसा प्रतीत होता है कि बीबीसी सनातन विरोधी है और उसे सनातन से जन्मजात दुश्मनी है। सांसद बॉब ब्लैकमैन ने बीबीसी को इस अपराध के लिए हाउस ऑफ कॅामन में विस्तृत चर्चा कराने की मांग की है। हाउस ऑफ कॉमन की नेता पोनी पैनी माडौट ने भी बीबीसी की पक्षपाती और सनातन विरोधी प्रसारण-प्रकाशन की आलोचना की है।

      बीबीसी की पत्रकारिता को लेकर अजीबोगरीब स्थिति है। भारत में जहां बीबीसी की झूठी पत्रकारिता को लेकर कोई शोर नहीं है, कोई चिंतन नहीं है, कोई समीक्षा नहीं है, कोई पडताल नहीं है, कोई सरकारी संज्ञान नहीं है, कोई न्यायिक संज्ञान नहीं है, संसद तक खामोश है, वहीं सात समुन्दर पार यानी ब्रिटेन में तहलका मचा हुआ है, बीबीसी की झूठी पत्रकारिता को बेनकाब किया जा रहा है, चिंता प्रकट की जा रही है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ब्रिटेन की हाउस ऑफ कॉमन में इस बात पर मजबूती से चर्चा की कराने की मांग उठ रही है। एक प्रश्न यहां यह भी उठता है कि जब बीबीसी की झूठी पत्रकारिता को लेकर ब्रिटेन की हाउस ऑफ कॉमन मे बात उठ रही है तब फिर भारत में यह प्रश्न ज्वाला क्यों नहीं बन रहा है? क्या भारत में बीबीसी की झूठी पत्रकारिता को भी अभिव्यक्ति की आजादी मान लिया गया है? क्या बीबीसी को भारत की छबि खराब करने का लाइसेंस मिला हुआ है? क्या बीबीसी को सनातन संस्कृति के खिलाफ संहारक और अपमानित करने वाला अभिव्यक्ति का जिहाद चलाने की छूट मिली हुई? अगर नही ंतो फिर भारत सरकार की कानूनी प्रक्रिया बीबीसी के खिलाफ आगे क्यों नहीं बढती है, न्यायिक प्राधिकारें खामोश क्यों रहते हैं? वीबीसी एक विदेशी मीडिया संस्थान है, इसकी पूरी व्यवस्था फूट डालो और राज करो के सिद्धांत पर चलती-फिरती है, अंग्रेज चले गये, अंग्रेजियत परास्त हो गयी पर अंग्रेजों का यह सिद्धांत और हथकंडा बीबीसी उठा रखा है, अभिव्यक्ति के नाम पर उसकी फूट डालों की नीति खूब चलती है, उसकी झूठ की प्रक्रिया खूब चलती है, अंग्रेज दुनिया मे सर्वश्रेष्ठ है, शेष कीडे-मकौडे हैं, ये शासन चलाने के लायक नहीं हैं, ये सदभाव और समानता के खिलाफ हैं आदि-आदि इनकी घृणित अभिव्यक्ति उपनिवेशिक काल से ही चली आ रही है।

      बीबीसी यानी ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन का चरित्र और कर्म उपनिवेशवादी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि बीबीसी उपनिवेशवाद की कोख से ही जन्म लिया है। ब्रिटेन कभी दुनिया का बादशाह था, दुनिया पर उसका सिर्फ चमक-दमक और प्रभाव ही नहीं था बल्कि आधिपत्य भी था, ब्रिटेन के संबंध में यह कहावत भी प्रचलित था कि ब्रिटेन के राज में सूर्यास्त नहीं होता है। सही भी यही था कि दुनिया के बडे हिस्से पर ब्रिटेन का राज था। भारत भी ब्रिटेन का गुलाम था। इसी सर्वश्रेष्ठता के अंहकार के खिलाफ जर्मनी इटली और जापान ने विरोध का ज्वाला भडकाया था और हिटलर की हिटलरशाही चली थी। दुष्परिणाम यह हुआ कि दुलिया दूसरे विश्व युद्ध में फंस गयी, लाखों नहीं बल्कि करोडो लोग मारे गये और प्रभावित हुए, अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम की बरसा कर दूसरे विश्व युद्ध को थामने का काम किया था। दूसरे विश्व युद्ध का एक सुखद परिणाम यह निकला कि ब्रिटेन की सर्वश्रेष्ठा की ग्रंथि का संहार हुआ और उसे अपनी उपनिवेशिक नीतियां समाप्त करनी पडी, गुलाम बनाने और गुलाम पर शासन करने की नीति भी छोडनी पडी थी। भारत सहित कई ब्रिटिश कालोनियां आजाद हुई थी। इस प्रकार ब्रिटेन की उपनिवेशिक नीति और हथकंडा का संहार हुआ था। पर ब्रिटेन की उपनिवेशिक संस्थान बीबीसी की उपस्थिति बनी रही।

     भारत जैसे देशों में कथित तौर पर बीबीसी की स्थिति निडर पत्रकारिता की बनायी गयी। उपनिवेशिक मानसिकता की सोच थी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हथकंडा बना कर उपनिवेशिक हथकंडे आगे भी जारी रखे जा सकते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्रिटेन की सरकार ने बीबीसी को मजबूत किया। पूरी दुनिया की भाषाओं में बीबीसी की पत्रकारिता चलती-फिरती है। भारत में हिन्दी, उदू्र्र, बांग्ला, आदि कई भाषाओं में बीबीसी की पत्रकारिता का प्रसारण होता है। खासकर भारत में बीबीसी की पत्रकारिता विखंडनवादी, अंतर्विरोधों को भडकाने वाली, अफवाह फैलाने वाली, जिहाद को बढाने वाली और खासकर सनातन संस्कृति के संहार के लिए जानी जाती है। भारत की राष्टवादी राजनीति के खिलाफ आग उगलना, कश्मीर में भारतीय सेना को आतातायी की श्रेणी में खडा करना, हिन्दू-मुसलमानों के बीच दूरियां बढाने वाली अभिव्यक्ति को अभियानी बनाने, धर्मातरंण जैसे प्रश्नों पर झूठी तर्क देकर लीपापोती करने के लिए जानी जाती है। इसके लिए बीबीसी ने भारतीयों को ही मोहरा के रूप में इस्तेमाल किया। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों में एक खास समूह जयंचंद बन जाते हैं। भारत में जयचंदो की कोई कमी नहीं है। जयचंदो ने कुछ पैसों के लिए बीबीसी में नौकरी कर भारत की संस्कृति की कब्र खोदने जैसे कार्य किये हैं, बीबीसी की गुलामी की है। खासकर बीबीसी की उर्दू सेवा सनातन संस्कृति के खिलाफ जिहादी होता है।

     अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड में बीबीसी की करतूतों की लंबी-चौडी फेहरिस्त है। सबसे बडी बात यह है कि बीबीसी अपने आप का सत्य हरिशचन्द का वंशज बताती है, ईमानदार और नैतिकवादी पत्रकारिता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बताती है। पर क्या आर्थिक गबन करना कोई सत्य, ईमानदार और नैतिकवादी पत्रकारिता का उदाहरण हो सकता है? बीबीसी पर आर्थिक गबन करने के साथ ही साथ भारतीय आर्थिक कानूनों को भी पालन नहीं करने का आरोप है। उल्लेखनीय है कि बीबीसी पर इनकम टैक्स का छापा पडा था। इनकम टैक्स विभाग की जांच में पाया गया कि बीबीसी टैक्स चोरी करने का अपराधी है। अभी भी यह प्रश्न चल रहा था। हालांकि बीबीसी पर भारतीय इनकम टैक्स के छापे पर ब्रिटेन और पश्चिम की मीडिया ने खूब कुकुर आवाज उठायी थी और भारत को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने वाला देश घोषित किया था। पश्चिम की मीडिया की ऐसी करतूतें भारत सरकार को प्रभावित नहीं कर पायी थी।

     गुजरात दंगों पर बीबीसी ने एक फीचर फिल्म बनायी थी, जिसमें नरेन्द्र मोदी को संहारक और अमानवीय घोषित किया था। मोदी विरोधी संहारक ग्रंथि कांग्रेस की थी, मुस्लिम पक्ष की थी, तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादियों और विदेशी पैसों पर पलने वाले एनजीओ की थी। यानी की बीबीसी कांग्रेस, कम्युनिस्टों और मुस्लिम पक्षों का झंडा उठायी, उनके एजेंडे का पोषण किया। जबकि सच्चाई कौन नहीं जानता है? चौदह सालों तक न्यायिक समीक्षा हुई, लेकिन नरेन्द्र मोदी गुजरात दंगे के लिए जिम्मेदार नहीं दिखे। फिर भी नरेन्द्र मोदी को बीबीसी संहारक करार देने की करतूत दिखायी। गुजरात दंगों को लेकर नरेन्द्र मोदी को विदेश भ्रमण से प्रतिबंधित करने के अभियान में बीबीसी की भी बडी भूमिका थी। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व बीबीसी के देश ब्रिटेन ने मोदी को अपने यहां आमंत्रण दिया और स्वागत किया, अमेरिका की अहंकारी राजदूत को गुजरात जाकर नरेन्द्र मोदी की चरणवंदना करनी पडी थी। मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान बीबीसी की उर्दू सेवा की रिपोर्ट मुस्लिम पक्षधर थी। ब्रिटेन के शहरों में हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान बीबीसी की रिपोर्टिंग मुस्लिम पक्षधर थी। मणिपुर हिंसा में भी बीबीसी की रिपोर्टिंग सनातन विरोधी थी।

     सनातन धर्म संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है, विश्व बंधुत्व का संदेश देती है। बीबीसी के अफवाह उठाने और अपमानजनक पत्रकारिता से सनातन संस्कृति न तो समाप्त होगी और न ही कलंकित होगी। बीबीसी की झूठी पत्रकारिता के बाद भी राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा पूरे विश्व में प्रेरक बना और सनातन संस्कृति गर्व, मोक्ष और मुक्ति का प्रतीक बन गयी। फिर भी बीबीसी की ऐसी पत्रकारिता पर भारतीय नियामकों और खासकर सरकारों को सचेत होना चाहिए, संज्ञानशील होना चाहिए। बीबीसी की झूठी और अफवाह पूर्ण पत्रकारिता पर विराम जरूर लगाया जाना चाहिए।