Author: अर्पण जैन "अविचल"

अर्पण जैन ‘अविचल’ खबर हलचल न्यूज के संपादक है और पत्रकार होने के साथ साथ , शायर और स्तंभकार भी हैं| भारतीय पत्रकारीता पर शोध कर रहे हैं जैन ने ‘आंचलिक पत्रकारों पर एक पुस्तक भी लिखी हैं | अविचल ने अपने कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा हैं और आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता के आधार आंचलिक पत्रकारिता को ज़्यादा लिखा हैं |मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बड़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया | बेचलर आफ इंजीनियरिंग (कंप्यूटर साइंस) से करने के बाद एमबीए और एम जे की डिग्री हासिल की | कई पत्रकार संगठनों के राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं | भारत का पहला पत्रकारों के लिए बनाया गया सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपेडीया www.IndianReporters.com” भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है|
 
				
								कुनबे की कलह से ढहेगा समाजवादी साम्राज्य
समसामयिक: अखिलेश यादव के पार्टी से निष्कासन पर विशेष ‘वंशवाद’शब्द नेहरू-गांधी परिवार की निंदा के लिए विद्वत्ता का मुखौटा लगाने का ... 
				
								विपक्षीय विरोध के ढीले कलपुर्जे
घर से चौराहे तक, गली से गलियारे तक, झोपड़ी से महलों तक, किसान से कुबेर तक, संसद से सड़क तक, ... 
				
								अधूरी दास्ताँ
कुछ पुरानी यादें... और तुम्हारा साथ... वही पुराने प्रेम पत्र और अपनी बात... पलभर की गुस्ताख़ी, और अंधेरी रात... टूटें हुए मकान और सुना पड़ा खाट.. 'अवि' के ... 
				
								‘न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया’
सस्ती लोकप्रियता और बालीवूड का बहुत पुराना नाता हैं , किंतु जब फन को लेकर निम्न स्तर उतर ... 
				
								तिजोरियों में जमा कालेधन को उजागर करने का मोदी का नया फंडा
500-1000 के नोट का चलन बंद विशेष: वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में देश के दूसरे बड़े राजनैतिक दल 'भारतीय जनता ... 
				
								पत्रकारिता : मानक नहीं मान्यता बदलना होगी
तेज गति से चलने वाले जनजीवन में पत्रकारो और पत्रकारिता का महत्व क्षणे-क्षणे कमतर होता जा रहा है, जनसामान्य ना ... 
				
								खून की दलाली बनाम राजनीतिक स्यापा
दिल्ली से लेकर दंतेवाड़ा, मुंबई से लेकर मीरपुर और बंगाल से बारामूला तक हिंद के जनमानस में केवल और केवल ... 
				
								शहर मर भी रहा है
हर शहर की सरहद के उस पार से कुछ ठंडी हवाएँ हर बार जरूर आती है अपने साथ सभ्यताओं का एक पुलिंदा ... 
				
								 
				


