बुर्का बनाम बिकिनी : क्यों लगाएं प्रतिबंध

बुर्के के पक्ष में जितने तर्क हो सकते हैं, उससे कहीं ज्यादा उसके विरूद्घ हो सकते हैं लेकिन बुर्के पर प्रतिबंध लगाने का तर्क काफी खतरनाक मालूम पड़ता है| फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सारक़ोजी यदि अपनेवाली पर उतर आए तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे बुर्का-विरोधी कानून पास करवा ले जाएंगे| बुर्के पर प्रतिबंध लगानेवाले सारकोजी पहले समाज सुधारक नहीं हैं| अब से लगभग 85 साल पहले तुर्की के महान नेता कमाल पाशा ने बुर्के पर प्रतिबंध ही नहीं लगाया था बल्कि कहा था कि केवल वेश्याएं ही बुर्का ओढ़ें| भले घर की औरतें अपना चेहरा क्यों छुपाएं ? मिस्र की प्रसिद्घ समाज-सुधारिका हौदा चाराउई ने अपनी सैकड़ों सहेलियों के साथ मिलकर बुर्के का बहिष्कार किया और 1923 में समारोहपूर्वक सारे बुर्के समुद्र में बहा दिए| 1927 में सोवियत उज़बेकिस्तान में लगभग एक लाख मुस्लिम महिलाओं ने बुर्के के बहिष्कार की शपथ ली थी| 1928 में अफगानिस्तान के साहसी बादशाह अमानुल्लाह की पत्नी महारानी सुरय्रया ने खुले-आम बुर्का उतार फेंका था| 1936 में ईरान के रिज़ा शाह पहलवी ने भी बुर्के या चादर पर प्रतिबंध लगा दिया था| क्या किसी ने बेनज़ीर भुट्रटो, हसीना वाजिद और खालिदा जि़या को बुर्के में देखा है ?  ये मिसाले हैं, मुस्लिम राष्ट्रों की लेकिन यूरोपीय राष्ट्रों ने भी इस दिशा में पहले से कई कदम उठा रखे हैं|

2004 में फ्रांस ने कानून बनाया कि स्कूलों में छात्रएं और शिक्षिकाएं न तो बुर्का पहन सकती हैं और न चेहरे पर स्कार्फ लपेट सकती हैं| जर्मनी के अनेक शहरों में इसी तरह के प्रतिबंध लागू हैं| बेल्जियम के एक शहर में सड़कों पर कोई औरत बुर्का या नक़ाब पहनकर नहीं निकल सकती| हालैंड के पिछले चुनाव में बुर्का काफी महत्वपूर्ण मुद्रदा बन गया था| बि्रटेन के स्कूलों को कानूनी अधिकार है कि वे ऐसी अध्यापिकाओं को निकाल बाहर करें, जो अपना चेहरा नक़ाब या बुर्के में छिपा कर आती हैं| 1981 से ट्रयूनीसिया में बुर्के पर प्रतिबंध है| यह भी उत्तर अफ्रीका का मुस्लिम देश है| तुर्की और इंडोनेशिया में भी बुर्के को लेकर आजकल कोहराम मचा हुआ है|

कहने का मतलब यही है कि बुर्के पर प्रतिबंध लगानेवाले सारकोजी पहले नेता नहीं होंगे लेकिन बुर्के पर प्रतिबंध लगाकर न तो वे फ्रांस का भला करेंगे और न ही मुस्लिम औरतों का ! बुर्के से फ्रांस की संस्कृति कैसे चौपट होती है, क्या वे बताएंगे ? बुर्के से फ्रांस की संस्कृति नष्ट होती है और बिकिनी से उसकी रक्षा होती है, यह कौनसा तर्क है ? बुर्का ज्यादा बुरा है या बिकिनी ? बुर्का पहननेवाली औरतें खुद को नुकसान पहुंचाती हैं लेकिन चोली-चड्रडीवाली औरतें सारे समाज को चौपट करती हैं| फ्रांस ने औरत को वासना का थूकदान बनाने के अलावा क्या किया है ? फ्रांसीसी समाज में स्वतंत्र्ता और मानव अधिकार के नाम पर औरत मर्दों की उद्रदाम वासना का पात्र् बनकर रह गई है| बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के पहले बिकिनी पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता ? यदि बुर्का पुरूषों की दमित वासना का पिटारा है तो क्या बिकनी उनकी नग्न-वासना को निमंत्र्ण नहीं है ? मानव-अधिकार और मानव-गरिमा क्या केवल मर्दों के लिए ही हैं ? क्या औरतें मानव नहीं हैं ? उनके कोई अधिकार और क्या उनकी कोई गरिमा नहीं है ?

सारक़ोजी का यह तर्क भी गलत है कि बुर्का फ्रांस की धर्म-निरपेक्ष व्यवस्था के विरूद्घ है| धर्म-निरपेक्ष या सेक्यूलर होने का अर्थ क्या है ? क्या यह कि जो अपने-जैसा न दिखे, वह सेक्यूलर नहीं है| सेक्यूलर होने के लिए क्या सबको एक-जैसा दिखना जरूरी है ? क्या विविधता और सेक्यूलरिज़्म एक-दूसरे के दुश्मन हैं ? यदि बुर्का इस्लाम का प्रतीक है, संप्रदाय-विशेष का प्रतीक है तो टाई क्या है, क्रॉस क्या है, यहूदी-टोपी क्या है ? क्या ये धार्मिक और सांप्रदायिक प्रतीक नहीं हैं ? इन पर प्रतिबंध क्यों नहीं है ? फ्रांसीसी नागरिक होने के बावजूद यदि सिख पगड़ी नहीं पहन सकते तो फ्रांसीसी सरकार आखिर चाहती क्या है ? इसके पहले कि वह फ्रांस के सिखों और मुसलमानों को बदले, वह फ्रंास को ही बदल डालेगी| यह प्रतिबंधोंवाला फ्रांस लोकतांत्र्िक नहीं, फाशीवादी फ्रांस बन जाएगा| फ्रांसीसी राज्य क्रांति अब शीर्षासन करती दिखाई पड़ेगी| सारकोजी रॉबिस्पियर के नए संस्करण बनकर अवतरित होंगे|

बेहतर तो यह होगा कि मुस्लिम औरतों को बुर्का पहनने की पूरी छूट दी जाए, जैसी कि कैथोलिक सिस्टर्स को शिरोवस्त्र् रखने की छूट है| क्या सारकोजी मदर टेरेसा का पल्लू हटवाने की भी हिमाकत करते ? यदि कोई घोर पारंपरिक हिंदू महिला फ्रांस की नागरिक है और वह एक हाथ लंबा घूंघट काढ़े रखना चाहती है तो उसे वैसा क्यों नही करने दिया जाए ? उसके नतीजे वह खुद भुगतेगी| उन्हें कई नौकरियॉं बिल्कुल नहीं मिलेंगी| उन्हें कोई ड्राइवर या पायलट कैसे बनाएगा ? वे शल्य-चिकित्सा कैसे करेंगी ? वे ओलंपिक खेलों में हिस्सा कैसे लेंगी ? वे समाज में मज़ाक और कौतूहल का विषय बनेंगी| वे तंग आकर खुद तय करेंगी कि उन्हें बुर्का या पर्दा रखना है या नहीं ? नागरिक को अपने लिए जो फैसला करना चाहिए, वह अधिकार सरकार क्यों हथियाना चाहती है ?

सारकोजी का यह कहना सही है कि बुर्के का मज़हब से कोई ताल्लुक नहीं है| यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि यदि कोई औरत बुर्का नहीं पहने तो उसे मुसलमान नहीं माना जाएगा| किसी भी मुस्लिम औरत के लिए बुर्का पहनना लाजि़म नहीं है| कुरान-शरीफ में ‘बुर्का’ शब्द का उल्लेख तक नहीं है| मुहम्मद साहब ने कहीं भी बुर्का पहनने का निर्देश नहीं दिया है| उन्होंने तो ‘हिजाब’ की बात कही है, जिसे सरल शब्दों में कहंे तो ‘ऑंखों की शरम’ की बात कही है और यह बात औरत और मर्द सब पर लागू होती है| क्या दुनिया में इससे बेहतर कोई पर्दा हो सकता है ? कुरान में जो दो शब्द आए हैं, वे हैं ‘जिलबाब’ और ‘खिमार’| ‘जिलबाब’ दुपट्रटे की तरह होता है, जो कमर से गले तक लपेटा जाता है और ‘खिमार’ पल्लू की तरह होता है, जो सिर और सीने को ढकता है| यहॉं बुर्का कहां से आ गया ? बुर्का तो कपड़े का पिंजरा होता है, जो सिर से पांव तक औरत को कैद कर लेता है| आंखों पर भी जाली लगी होती है| इतना जुल्म तो पिंजरे के पंछियों या जानवरों पर भी नहीं होता| औरतों पर यह जुल्म क्यों किया जाता है ? उनका दोष क्या है ? मर्द  अगर पापी हैं, दुश्चरित्र् हैं, बदनज़र हैं तो उसकी सज़ा औरतों को क्यों दी जाए ? क्या बुर्का पहनना इसलिए जरूरी है कि मर्द दुश्चरित्र् होते हैं ? यदि ऐसा है तो मुल्ला-मौलवियों को अपने मुसलमान मर्दों को सीधा करने के लिए कोई क्रांतिकारी कदम उठाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या यह माना जाए कि औरत ही पाप की जड़ है, जैसा कि बाइबिल और कुरान कहती है ? यह वही हव्वा है, जिसने आदम को गुमराह किया था| सारकोजी बुर्के पर प्रतिबंध लगा पाएंगें या नहीं, यह भविष्य बताएगा लेकिन उन्होंने बुर्के के बहाने सिर्फ इस्लाम ही नहीं, ईसाइयत की मूल मान्यताओं को भी प्रश्नों के घेरे में खींच लिया है| सिर्फ बुर्के पर प्रहार करने से सारकोजी इस्लाम-विरोधी मालूम पड़ते हैं लेेकिन अगर वे सभी सामी मज़हबों की स्त्र्ी-संबंधी मूल मान्यताओं पर प्रहार करते तो माना जाता कि वे कोई क्रांतिकारी कदम उठा रहे हैं|

इस पहल के पीछे सारकोज़ी का इरादा कुछ और ही हो सकता है| वे बुर्के से नहीं, मुसलमानों से डर रहे होंगे| अल्जीरिया, तुर्की, ईरान आदि देशों से आकर फ्रांस में बसे 30-40 लाख मुसलमानों ने अपनी आवाज़ में कुछ दम भी पैदा कर लिया है| कुल आबादी का 7-8 प्रतिशत होना मामूली बात नहीं है| अब संसद और मंत्र्िमंडल में भी उनके लोग हैं| फ्रांसीसी मुसलमानों ने पिछले कुछ वर्षों में दंगे और आगज़नी में भी जमकर भाग लिया| डेनमार्क में उठे पैगम्बर के कार्टून-विवाद ने सारे यूरोप की नसों में सिहरन दौड़ा दी थी| फ्रांस को यह डर भी है कि बुर्का आतंकवाद को बढ़ाने में सहायक हो सकता है| बुर्के में छिपा चेहरा किसी का भी हो सकता है, पुरूष आतंकवादी का भी| अल्जीरिया के क्रांतिकारियों ने बुर्के की ओट में कभी काफी धमाके किए थे| ऐसे बुर्काधारियों पर सरकार कड़ी निगरानी रखे, यह जरूरी हैं लेकिन उन पर प्रतिबंध लगाने की कोई तुक नहीं है| कुल 30 लाख मुसलमानों में औरतें कितनी हैं और उनमें भी बुर्केवालियां कितनी होंगी ? कुछेक हजार बुर्केवाली औरतों पर निगरानी रखने के लिए सारक़ोजी अपने लोकतंत्र् को फाशीवादी राज्य में क्यों बदलना चाहते हैं ? फ्रांस अपने आपको सउदी अरब और ईरान के स्तर पर क्यों उतारना चाहता है ? इन देशों में बुर्का या चादर पहनना अनिवार्य है| यह उलट-प्रतिबंध है| इन राष्ट्रों में औरतों ने लाख बगावत की लेकिन उनकी कोई सुननेवाला नहीं है| यदि फ्रांस अपनी मनमानी करेगा तो इस्लामी जगत की औरतों पर प्रतिबंधों का शिकंजा ज्यादा कसेगा| जो मुस्लिम औरतें बुर्का, चादर, हिजाब आदि को मध्ययुगीन पोंगापंथ मानती हैं, वे भी बुर्के के पक्ष में बोलने लगेंगी| सारक़ोजी अपने दुराग्रह के कारण बुर्के को मजबूत बना देंगे|

सारक़ोजी का दुराग्रह इस्लाम के पुनर्जागरण की बाधा बनेगा| जो मुल्ला-मौलवी कुरान-शरीफ की प्रगतिशील व्याख्या कर रहे हैं और मुस्लिम औरतों को अरबी मध्ययुगीनता से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, सारक़ोजी उन्हें कमज़ोर करेंगे| सारकोजी की पहल के पीछे चाहे कोई दुराशय न हो लेकिन उनका यह कदम बुर्के पर नहीं, इस्लाम पर प्रहार माना जाएगा| विश्व-आतंकवाद के कारण इस्लाम पहले से ही सकपकाया हुआ है| अब सारकोजी का यह कदम उसे हमलावर बनने के लिए उकसाएगा|