रात के अंधेरे में लालगढ़ से दिल्ली तक माओवादी नज़रिया

-सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है और व्यवस्था बंदूक से चलती है

– कोबाड के एनकाउंटर की तैयारी झारखंड में हो चुकी थी

माओवादी कोबाड गांधी को पुलिस एनकाउंटर में मारना चाहती थी। लेकिन मीडिया में कोबाड की गिरफ्तारी की बात आने पर सरकार को कहना पड़ा कि कोबाड गांधी नामक बड़े माओवादी को दिल्ली में पकड़ा गया है, जो सीपीआई माओवादी का पोलित ब्यूरो सदस्य है। यह बात अचानक किसी ने टेलीफोन पर कही। 24 सितंबर की रात के वक्त मोबाइल की घंटी बजी और एक नया नंबर देख कर थोडी हिचकिचाहट हुई कि कौन होगा…रात में किस मुद्दे पर कौन सी खबर की बात कहेगा….यह सोचते सोचते हुये ही मोबाइल का हरा बटन दब गया और दूसरी तरफ से पहली आवाज यही आयी कि मैं आपको यही जानकारी देना चाहता हूं कि सीपीआई माओवादी संगठन के जिस पोलित ब्यूरो सदस्य कोबाड गांधी को पुलिस ने पकड़ा है, उसके एनकाउंटर की तैयारी पुलिस कर रही थी।

लोकिन आप कौन बोल रहे हैं ? मैं लालगढ़ का किशनजी बोल रहा हूं । किशनजी ….यानी सीपीआई माओवादी का पोलितब्यूरो सदस्य कोटेश्वर राव …यह नाम मेरे दिमाग में आया तो मैंने पूछा, किशनजी अगर इनकाउंटर करना होता तो पुलिस कोबाड को अदालत में पेश नहीं करती।

आप सही कह रहें है लेकिन पहले मेरी पूरी बात सुन लें …..जी कहिये । उन्होंने कहा, हमें कोबाड गांधी के पकडे जाने की जानकारी 22 सितबर की सुबह ही लग गयी थी । इसका मतलब है कोबाड को 22 सितंबर से पहले पकड़ा गया था। हमनें दिल्ली में पुलिस से पूछवाया। लेकिन पुलिस ने जब कोबाड को पकड़ने की खबर को गलत माना तो हमने 22 सितंबर को दोपहर बाद से ही तमाम राष्ट्रीय अखबारो को इसकी जानकारी दी। इसके बाद मीडिया के लगातार पूछने के बाद ही सरकार की तरफ से रात में कोबाड गांधी की गिरफ्तारी की पुष्टि की गयी। अगर मीडिया सामने नहीं आता तो दिल्ली पुलिस झारंखड पुलिस को भरोसे में ले चुकी थी और कोबाड के एनकाउंटर की तैयारी कर रही थी। क्योंकि दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने जब झारखंड पुलिस को कोबाड गांधी के पकड़ने की जानकारी दी तो झारखंड पुलिस ने इतना ही कहा कि कोबाड गांधी को एनकाउटर में मार देना चाहिये। नहीं तो माओवादी झारखंड समेत अपने प्रभावित क्षेत्रो में तबाही मचा देगे। हमारे एक साथी को झारखंड पुलिस ने पकड़ा था और दो महीने पहले ही हमने पांच राज्यो में बंद का ऐलान किया था। झारखंड में हमारी ताकत से सरकार वाकिफ है। इसलिये झारखंड में भी जब हमने पता किया तो यही पता चला कि 21 सितंबर को ही झारखंड पुलिस की तरफ से कोबाड गांधी के एनकाउंटर को हरी झंडी दे दी गयी थी।

लेकिन दिल्ली में एनकाउंटर करना खेल नहीं है। क्योंकि मीडिया है, सरकारी तंत्र है…फिर लोकतंत्र पर इस तरह का दाग सरकार भी लगने नहीं देगी!

मै कब कह रहा हूं कि एनकाउंटर दिल्ली में होना था । झारखंड पुलिस चाहती थी कि 22 सितंबर की रात ही कोबाड गांधी को डाल्टेनगंज ले जाया जाये । वहां डाल्टेनगंज और चतरा के बीच पांकी इलाके में पहुंचाया जाये और एनकाउंटर में मारने का ऐलान अगले ही दिन 23 सितंबर को कर दिया जाये। माओवादी नेता कोटेश्ववर राव की मानें तो कोबाड गांधी के एनकाउंटर के जरीये झारखंड पुलिस के आईजी रैंक के एक अधिकारी इसके जरिए मेडल और बडा ओहदा भी चाहते थे, जो उन्हें इसके बाद गृह मंत्रालय की सिफारिश पर मिल भी जाता। मुझे लगा माओवादी पूरे मामले को सनसनीखेज बनाकर सरकार की क्रूर छवि को ही उभारना चाहते है। मैंने बात मोड़ते हूये पूछा, कोबाड गांधी की गिरफ्तारी का असर माओवाद के विस्तार कार्यक्रम पर कितना पड़ेगा ? करीब दो-तीन महीने तक संगठन का काम रुकेगा, जबतक दूसरे सदस्य कोबाड का काम नहीं संभाल लेते। मैंने देखा, रात के करीब साढे बारह बज रहे है..तो सोचा लालगढ के बार में भी माओवादियो की पहल और सोच क्या चल रही है, जरा इसे जान लेना भी अच्छा है, यह सोच मैने जैसे ही कहा, लालगढ़ मे तो आपको फोर्स ने घेर लिया है तो पल में जवाब आया, बिलकुल नहीं…आप यह जरुर कह सकते है कि लालगढ के जरीये पहली बार बंगाल में माओवादी कैडर और सीपीएम के हथियारबंद दस्ते आमने सामने आ खडे हुये हैं। प्रभावित इलाको के तीन ब्लाक मिदनापुर, सेलबनी और वाल्तोर में बीते तीन महिने की हिंसक झडपो में सीपीएम के सौ से ज्यादा हथियार बंद कैडर मारे जा चुके है । अभी तक इन क्षेत्रो में सीपीएम के चार सौ से ज्यादा हथियारबंद कैडर को जमीन छोड़नी पडी है जो कि 12 कैंपो में मौजूद थे।

कैंप का मतलब…क्या सेना का कैंप ? जी नहीं. सीपीएम का कैंप, जहां उनके हथियारबंद कैडर रहते हैं। सबसे बड़ा कैप तो सीपीएम नेता अनिल विश्वास के घर पर ही था, जहां सीपीएम के 35 कैडर मारे गये। इसी के बाद सीपीएम के एक दूसरे बडे नेता सुशांतो घोष ने सार्वजनिक सभा में ऐलान किया कि “नंदीग्राम की तरह लालगढ़ पर हमला कर जीत लेगें।” तो इसका असर लोगो में किस तरह हुआ यह बेकरा गांव की सभी में देखने को मिला, जहां के गांववालों ने सुशांतो घोष की सभा नहीं होने दी । जब वह सभा को संबोधित करने पहुंचे तो गांववालो ने उन्हें खदेड़ दिया। गांववालों में सीपीएम को लेकर कितना आक्रोष है, इसका नजारा मिदनापुर में हमनें देखा । मिदनापुर में इनायतपुर के पोलकिया गांव में 21 सितंबर की रात सीपीएम के पांच लोग मारे गये। दस घायल हुये । यहां की तीन आदिवासी महिलाओ के साथ सीपीएम के हथियार बंद कैडर ने बदसलूकी की थी । जिसके बाद गांववालो में आक्रोष आ गया । गांववालो ने सीपीएम की शिकायत यहां तैनात ज्वाइंट फोर्स से की । लेकिन गांववालो की मदद ज्वाइंट फोर्स ने नहीं की । माओवादियो से गांववालो ने मदद मांगी । 10 घंटे तक फायरिंग हुई । जिसके बाद सीपीएम के पांच लोग मारे गये । इसी तरह सोनाचूरा में 8 सीपीएम कैडर मारे गये । सीपीएम को लेकर लोगो में आक्रोष है । यही हमें ताकत भी दे रहा है और हम उसी जनता के भरोसे संघर्ष भी कर रहे है।

लेकिन अब केन्द्र सरकार भी माओवादियो को चारो तरफ से घेरने की तैयारी कर रही है। कैसे सामना करेंगे ? सवाल हमारा सामने करने का नहीं है । हम जानते है कि अबूझमाड यानी माओवादी प्रभावित क्षेत्र में घुसने के लिये 8 हैलीपैड बनाये गये है । आंध्र प्रदेश से सीमावर्ती चित्तूर , भद्राचलम से लेकर छत्तीसगढ के बीजापुर तक में अर्धसैनिक बलो को तैनात किया जा रहा है । लेकिन इसमें जितना नुकसान हमारा है, उतना ही सरकार का भी होगा। इसका एक चेहरा छत्तीसगढ के दंत्तेवाडा के पालाचेलिना गांव में सामने भी आया, जहां कोबरा फोर्स को पीछे हटना पड़ा। तो क्या यह चलता रहेगा। यह सरकार पर है। क्योंकि यहां के आदिवासी ग्रामीणो में गुस्सा है। वह हमसे कहते हैं मिलकर लडेगें, मिलकर मरेंगे। यह सरकार का काम है कि उनकी जरुरतो को उनके अनुसार समाधान करे। नहीं तो हम भी उन्हीं के साथ मिलकर लडेंगे, मिलकर मरेंगे ।

तो क्या सरकार समझती है कि गांववालो की जरुरत क्या है ? देखिये , सवाल समझने का नहीं है । जिन पांच राज्यो को लेकर सरकार परेशान है। उनमें झारंखंड, छत्तीसगढ और उड़ीसा में सबसे ज्यादा खनिज संसाधन है। खनिज संसाधन की लूट के लिये तब तक रास्ता नहीं खुल सकता है, जब तक यहां के ग्रामीण आंदोलन कर रहे है और हम उनके साथ खड़े हैं। लेकिन सरकार विकास के रास्ते भी खनिज संपदा का उपयोग कर सकती है ? सही कह रहे हैं आप लेकिन आंध्रप्रदेश से लेकर बंगाल तक के रेड कारिडोर पर पहली बार अमेरिका की नजर है । उसे भारत का यह खनिज औने पौने दाम में मल्टीनेशनल कंपनियो को दिलाने का रास्ता खोलना है। हाल ही में गृह मंत्री चिदबंरम साहब पेंटागन गये थे। वहीं उन्हें ब्लू प्रिट दिया गया कि कैसे माओवादियो को इन इलाको से खत्म करना है। इसी लिये कश्मीर से फौज हटायी जा रही है, जिसे माओवादी प्रभावित इलाको में हमारे खिलाफ लगाया जा रहा है। लेकिन यह समझ भारत की नही, अमेरिका की है । अमेरिका समझ रहा है कि विश्व बाजार जब तक पहले की तरह चालू नहीं हो जाता तब तक मंदी का असर बरकरार रहेगा। इन इलाको के खनिज संसाधन अगर विश्वबाजार में पहुंच ज