मोदी की आर्थिक क्रान्ति – प्रभाव और दुष्प्रभाव… 

     Benefits and Demerits of Demonetization

     कहावत है की मुसीबत कभी अकेले नहीं आती, वह दो-चार और बड़ी-बड़ी समस्याएँ साथ लेकर ही आती है. भारत में इस समय मोदी विरोधियों तथा समूचे विपक्ष पर यह कहावत पूरी तरह से लागू हो रही है. पाकिस्तान के खिलाफ की गई “सर्जिकल स्ट्राईक” के सदमे से विपक्षी दल उबर भी नहीं पाए थे कि नरेंद्र मोदी ने “तलाक-तलाक-तलाक” का मुद्दा छेड़कर न केवल कट्टरपंथी मुसलमानों में बल्कि पिछले साठ वर्ष में “मुस्लिम वोट बैंक” की राजनीति से पीड़ित विपक्ष को सकते में डाल दिया था. मोदी द्वारा तीन तलाक का मुद्दा उठाकर एक तीर से दो निशाने साधे गए हैं, पहला तो यह कि भारत की जनता के सामने समूचे विपक्ष को बेनकाब कर दिया गया है कि ये लोग न्यायालय का सम्मान नहीं करते, क्योंकि शाहबानो मुद्दा भले ही कितना भी पुराना हो चुका हो, देश की जनता उसका इतिहास जानती है और यह भी जानती है कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के बारे में कांग्रेस, वामपंथ या सपा-बसपा के क्या विचार हैं. दूसरा यह कि तीन तलाक के मुद्दे ने मुस्लिम समुदाय में ही दो-फाड़ कर दिया. जहाँ मुस्लिम महिलाएँ इस पहल से बेहद खुश हैं, वहीं कट्टरपंथी मुस्लिम गुट सब के सामने बेनकाब हो रहे हैं कि इन लोगों का भारतीय संविधान में कतई भरोसा नहीं है. इस प्रकार जो मुस्लिम वोट बैंक “एकजुट” होकर भाजपा के खिलाफ मतदान करता आया है, उसके आधे हिस्से में मोदी ने सेंध लगा दी है. अब कोई भी राजनैतिक दल इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि यूपी-पंजाब-गोवा के चुनावों में मुस्लिम महिलाएँ किस तरफ वोट करेंगी.

      “सर्जिकल स्ट्राईक” और “तीन तलाक” के दो झटकों से विपक्ष अभी सदमे की अवस्था में था, पाकिस्तान के समर्थन में इनके तमाम षड्यंत्र और सर्जिकल स्ट्राईक को लेकर झूठ फैलाने की सभी कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं. देश की जनता के सामने लगातार बेनकाब होते हुए विपक्ष जब तक यह समझ पाता कि आगे क्या करना है, इसी बीच नरेंद्र मोदी ने उनके माथे पर “परमाणु बम” का हमला कर दिया. यह परमाणु बम इतना अप्रत्याशित और खतरनाक है कि खुद भाजपा सहित देश के तमाम राजनैतिक दल, आतंकी गुट, हवाला ऑपरेटर, ड्रग्स के नीच धंधे में लगे हुए माफिया तथा काला कारोबार करने वाले व्यापारी वर्ग, अफसर, बिल्डर, वकील और डॉक्टरों को भी इस परमाणु हमले ने अपनी चपेट में ले लिया. भारत के इतिहास में केवल दो ही प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने बड़े नोटों को बंद करने की हिम्मत दिखाई है. पहले थे एक गुजराती मोरारजी देसाई और अब एक दुसरे गुजराती हैं नरेंद्र मोदी. आठ नवम्बर की रात को आठ बजे जब देश के टीवी चैनलों पर यह फ्लैश चमका कि देश के प्रधानमंत्री देश के नाम विशेष सन्देश देंगे, उस समय 99% लोगों के मन में सबसे पहले पाकिस्तान से युद्ध की घोषणा का संशय आया. क्योंकि उसी दिन प्रधानमंत्री सेना के तीनों प्रमुखों तथा राष्ट्रपति से चर्चा कर चुके थे, इसलिए ऐसी अफवाहें थीं की शायद नरेंद्र मोदी युद्ध की आधिकारिक घोषणा करेंगे. लेकिन मात्र आधे घंटे बाद अर्थात साढ़े आठ बजे तक समूचा देश यह जानकर हैरान हो गया कि प्रधानमंत्री ने एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम उठा लिया है, और अब देश में 500 व 1000 के नोट तत्काल प्रभाव से बंद किए जाते हैं. यह सुनते ही पूरे देश में एक हडकंप सा मच गया. जिस प्रकार एक बड़े भूकंप के बाद छोटे-छोटे झटके आते हैं और जनता को संभलने में समय लगता है, ठीक वैसा ही इस साहसिक घोषणा के बाद हुआ. अपने घरों में बिस्तरों के नीचे और कोठियों में करोड़ों रूपए का काला धन छिपाए बैठे “धनपशु” जब तक समझ पाते की वास्तव में हुआ क्या है, इससे पहले ही रात के बारह बजे की समय सीमा आरम्भ हो गई और उनके वे करोड़ों रूपए रद्दी का टुकड़ा भर रह गए.

      प्रधानमंत्री द्वारा 500 और 1000 के नोटों को रद्द किए जाने का यह फैसला वास्तव में एक “राजनैतिक मास्टर-स्ट्रोक” है, विशेषकर उत्तरप्रदेश और पंजाब के आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए. भारत जैसे विशाल अर्थतंत्र में से लगभग 70% करंसी को एक झटके में बाहर करने से कई दूरगामी प्रभाव होंगे, लेकिन इसके कई तात्कालिक प्रभाव तो पहले दिन से ही दिखाई देने लगे हैं. चूँकि बड़े नोटों को स्थान लेने के लिए सौ-सौ रूपए के नोट आएँगे तथा 2000 रूपए का नया नोट भी अपना स्थान बनाने में थोड़ा समय लेगा, उससे पहले उत्तरप्रदेश-पंजाब के चुनाव निपट चुके होंगे. इस क्रांतिकारी फैसले का पहला प्रभाव तो यह पड़ेगा कि धनबल से लादे जाने वाले उत्तरप्रदेश के चुनावों में नरेंद्र मोदी ने अपने विपक्षियों की “सप्लाई चेन” पर तत्काल लगाम लगा दी है. इसके अलावा यूपी की जनता के बीच यह साफ़ सन्देश गया है की नरेंद्र मोदी काले धन को समाप्त करने के प्रति वास्तव में गंभीर हैं और ऐसे बड़े निर्णय लेने की उनमें हिम्मत और क्षमता है. प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह से मायावती और मुलायम सिंह के चेहरे लटके हुए थे, उसे देखकर सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है कि इन लोगों को यूपी का चुनाव लड़ने में कितनी दिक्कत आने वाली है. मुलायम सिंह लगभग रुआंसे स्वर में आठ दिन की मोहलत देने की माँग करते रहे, जबकि मायावती जिन्होंने अपने उम्मीदवारों से नगद में दो-दो करोड़ रूपए लिए हैं, वे भी परेशान हैं की अब इन नोटों को कैसे ठिकाने लगाया जाए और जिसने “टिकट का पेमेंट” कर दिया है, उसे मना कैसे करें? दूसरा बड़ा झटका महानगरों में बैठे हवाला ऑपरेटरों को लगा है, जिनका करोड़ों रूपए रोज का कारोबार तत्काल प्रभाव से बंद हो गया है. तीसरा प्रभाव यह है कि संभवतः सोने के दामों में भारी बढ़ोतरी होगी क्योंकि काले धन के मालिक अपना धन ठिकाने लगाने के लिए सबसे सुरक्षित मार्ग सोना ही मानेंगे, जो तत्काल उपलब्ध भी हो जाता है. 

     लेकिन प्रधानमंत्री के इस निर्णय का देश को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि पाकिस्तान से आने वाले नकली नोट और आतंकवादियों की हवाला फंडिंग तुरंत प्रभाव से बंद हो गई है. नकली नोट तस्करी के लिए पश्चिम बंगाल के सबसे बदनाम इलाके मालदा में जो सन्नाटा पसरा है, वह देखने लायक है. ममता बनर्जी आने “मुस्लिम वोट बैंक” की तरफदारी में जिस तरह लगातार इस निर्णय के खिलाफ गरज रही हैं, उससे यह बात सिद्ध होती है की “चोट” बिलकुल मर्मस्थल पर लगी है. जिस प्रकार केवल तीन दिनों के अन्दर मायावती-मुलायम सिंह और ममता बनर्जी देश की जनता के सामने बेनकाब हुए हैं उससे यह स्पष्ट है कि इनकी राजनैतिक जमीन में भारी उथल-पुथल होने वाली है. सूत्रों के अनुसार पंजाब चुनावों के लिए अरविन्द केजरीवाल ने भारी मात्रा में करोड़ों रूपए नगद का चन्दा प्राप्त किया है. इसीलिए प्रधानमंत्री का यह निर्णय आने के दो दिन बाद तक तो केजरीवाल की बोलती ही बंद थी. पूर्व आयकर अधिकारी होने के नाते वे इस निर्णय के “भूकम्पकारी असर” को अच्छे से समझ चुके थे. इसलिए दिन-रात मोदी-मोदी भजने वाले केजरीवाल को अपनी प्रतिक्रिया देने में दो दिन लग गए. ज़ाहिर है की इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले प्रधानमंत्री और उनकी टीम ने कई जमीनी तैयारियाँ की थीं. एक नवम्बर से आठ नवम्बर के बीच सभी रिजर्व बैंकों के मैनेजरों और वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठकें हुईं. उन्हें कैश तैयार रखने के निर्देश दिए गए. 2000 रूपए का नया नोट छापने के बाद उसे देश के अन्य भागों में में स्थित बैंकों तक पहुँचाने के इंतजाम किए गए. यह सब कार्य करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि यह बात किसी के ध्यान में नहीं आने पाए कि सरकार 500 और 1000 के पुराने नोट सिरे से बंद करने जा रही है. यहाँ तक कि मोदीजी की कैबिनेट तक को इस निर्णय के बारे में कतई जानकारी नहीं थी, और जिन्हें आशंका थी कि ऐसा कुछ हो सकता है उन्हें भी निश्चित तारीख नहीं पता थी कि ऐसी घोषणा किस दिन होगी? आठ नवम्बर के दिन भर में मोदीजी ने केवल तीनों सेनाध्यक्षों तथा राष्ट्रपति से भेंट करके उन्हें इस निर्णय की सूचना दी. इस प्रकार मोदीजी, अरुण जेटली, तीनों सेनाध्यक्ष तथा राष्ट्रपति अर्थात केवल छः व्यक्तियों को ही पता था की आठ नवम्बर को भारत में एक ऐतिहासिक और हिम्मती कदम उठने जा रहा है.

     प्रधानमंत्री के इस निर्णय का सबसे बड़ा फायदा पेटीएम जैसी ई-वालेट कंपनियों तथा क्रेडिट-डेबिट कार्ड से किए जाने वाले भुगतानों की संख्या को होगा. सभी बैंकों को इस ऐतिहासिक अवसर का लाभ उठाते हुए इलेक्ट्रॉनिक मनी के अधिकाधिक उपयोग तथा मोबाईल पेमेंट को बढ़ावा देने में करना चाहिए, ताकि उनकी शाखाओं पर ग्राहकों का बोझ कम हो तथा संसाधन की बचत हो. इस निर्णय का सबसे खराब असर पड़ेगा “रियल एस्टेट” क्षेत्र को. बड़े-बड़े बिल्डर और कालोनाईज़र आठ नवम्बर की रात से ही धराशायी हो गए हैं. जैसा कि सभी जानते हैं कि बड़े-बड़े अफसरों, अधिकारियों, नेताओं और उद्योगपतियों ने पिछले कुछ वर्षों में गृह निर्माण के क्षेत्र में काले धन का जमकर उपयोग और उपभोग किया है. इस कारण मकानों के दामों में अनावश्यक बढ़ोतरी हुई और सामान्य जनता एक सामान्य कीमत का मकान खरीदने के लिए तरस गई. रियल एस्टेट के मार्केट में कालेधन ने एक गुब्बारा फुला दिया था, जिसके कारण मकानों की कीमतें अवास्तविक स्तर तक चढीं जिसके कारण भ्रष्टाचारियों के पास चार से लेकर दस-दस फ्लैट्स हो गए. ये बात और है कि वे मकान बिक नहीं पाए क्योंकि उनकी कीमत ही अवास्तविक थी. अब समस्या यह आएगी की जब बिल्डरों और कालोनाईज़रों के पास धन की कमी हो जाएगी, तथा भ्रष्ट अधिकारियों एवं नेताओं का काला पैसा उन तक नहीं पहुँचेगा तो बैंकों के ऋण भी डूबत खाते में जाएँगे. परन्तु इससे आम जनता को फायदा यह होगा कि मकानों और जमीनों के दाम वास्तविक स्तर पर आ जाएँगे, क्योंकि बिल्डरों को भी नगदी की आवश्यकता होगी तो वे थोड़ा नुक्सान सहकर अपने फ्लैट्स बेचेंगे ही. प्रधानमंत्री जी के इस निर्णय से प्रभावित होने वाला एक और सेक्टर है “रिटेल” व्यवसाय. बड़े नोटों को बंद किए जाने और उसके स्थान पर दुसरे बड़े नोटों को अपनी जगह संभालने के बीच जो वक्त लगेगा, इस दौरान तात्कालिक रूप से कुछ सप्ताह के लिए ट्रांसपोर्टेशन तथा रिटेल व्यवसाय में मंदी आएगी, क्योंकि अभी भी व्यापारियों को “नगद” लेनदेन ही सुहाता है. व्यापारियों तथा उन्हें सामान बेचने वाली इंडस्ट्री को अभी चेक, NEFT तथा RTGS इत्यादि की “आदत” नहीं है. क्योंकि ऐसा करने पर उनका समूचा ट्रांजेक्शन सरकार की निगाह में आ जाता है, जिस पर उन्हें टैक्स भी देना होगा, आयकर विभाग को हिसाब-किताब भी देना होगा. लेकिन यह आज नहीं तो कल होकर ही रहेगा. प्रधानमंत्री की इस पहल का उद्देश्य ही यही है की व्यापारियों द्वारा अधिकाँश पैसा हवाला अथवा नगद की बजाय इलेक्ट्रॉनिक तरीके से पारदर्शी हो. जो ईमानदार व्यापारी हैं, उन्हें इस निर्णय से कोई कष्ट नहीं है, लेकिन जिन्हें दो नंबर के काम करने की लत लगी हुई है, वे बिलबिला रहे हैं. तात्पर्य यह है कि प्रधानमंत्री के इस “बोल्ड” कदम से उन्हें संभवतः कुछ राजनैतिक लाभ अवश्य मिल सकता है, परन्तु भारत की आर्थिक गतिविधियाँ अगले छः माह तक लड़खड़ा जाएँगी और उन पर नकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ेगा. आखिर इतने वर्षों की “बीमारी” जल्दी तो ठीक नहीं हो सकती.मोदीजी ने जिस व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से अपनी इस गुप्त योजना को अंजाम दिया, इसकी तारीफ़ तो करनी ही पड़ेगी. 500 और 1000 रूपए के नोट एक झटके में बंद नहीं हुए हैं, यह करने से पहले मोदीजी ने सबसे पहले गरीबों के लिए जन-धन योजना में उनके बैंक खाते खुलवाए. जब इन बैंक खातों की संख्या लगभग पच्चीस करोड़ पार कर गई, तब उन्होंने इन लोगों को उनके खाते में उपलब्ध राशि को देखते हुए “प्रोत्साहन” स्वरूप डेबिट कार्ड भी जारी कर दिए. आधार कार्ड को गैस कनेक्शनों तथा बैंक खातों से जोड़ने की प्रक्रिया तो पहले ही आरम्भ की जा चुकी थी, इसलिए सरकार के सामने देश की लगभग 70-80 प्रतिशत जनता के बैंक खातों, गैस कनेक्शन और आधार कार्ड की पुख्ता जानकारी आ चुकी थी. इसके बाद नंबर आया काला धन रखने वालों को अपनी संपत्ति घोषित करने के लिए दी जाने वाली छूट योजना का. जेटली और मोदी ने कालेधन वालों को प्रस्ताव दिया की तीस प्रतिशत जुर्माने के साथ वे अपना पूरा काला धन घोषित करें, और उसके पश्चात चैन की नींद सोएँ. इस योजना का काफी अच्छा प्रभाव भी पड़ा और सरकार के खाते में 66,000 करोड़ रूपए जुर्माने के रूप में एकत्रित हुए. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने एक अंतिम चेतावनी जारी करते हुए अपने संबोधन में कहा था कि कालाधन रखने वालों के लिए यह अंतिम मौका है, वे चाहें तो अभी भी संभल जाएँ और किसी भी हालत में तीस सितम्बर तक अपनी संपत्ति घोषित कर दें. ये बात और है कि अधिकाँश बड़े नेताओं-व्यापारियों-बिल्डरों और वकीलों-डॉक्टरों ने मोदीजी की इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया. बहुत से लोगों को यह लगा कि प्रत्येक प्रधानमंत्री तो ऐसा बोलते ही रहते हैं. कुछ नहीं होगा… परन्तु मोदीजी के मन में पहले से ही पक्का निश्चय था कि एक ही वार में काले धन वालों की गर्दन उड़ाना ही है. इसलिए एक अक्टूबर से ही इस घोषणा के लिए जमीन तैयार करने का काम शुरू हो गया, और ठीक एक माह आठ दिन बाद अंततः मोदीजी ने अपना बम धनपशुओं के सिर पर दे मारा. अब स्थिति ये है कि कोई अपने नोट जला रहा है, तो कोई टुकड़े करके गंगाजी में बहा रहा है. अपना काला पैसा बचाने के लिए नित नए हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं, लेकिन सरकार भी “तू डाल-डाल, मैं पात-पात” की तर्ज पर सारे रास्ते ब्लॉक करती जा रही है. सरकार को यह कदम इसलिए भी उठाना पड़ा क्योंकि अभी भी भारत की अधिकाँश जनता आयकर के दायरे से बाहर ही है. आयकर विभाग द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार 2012-13 में भारत में 2.88 करोड़ आयकरदाता थे, जो 2013-14 में बढ़कर 3.35 करोड़ तथा 2014-15 में बढ़कर 3.65 करोड़ हो गए. भले ही यह दो वर्ष के भीतर 27% की बढ़ोतरी हो, लेकिन अभी भी देश की विशाल जनसँख्या और उनकी आय को देखते हुए यह बहुत कम है. आयकर विवरणी भरना और आयकर चुकाना दोनों अलग-अलग बातें हैं. अभी जो आंकड़े मैंने आपको बताए वे आयकर विवरणी दाखिल करने वालों के है, जबकि वास्तविक आयकर चुकाने वालों की संख्या केवल 1.91 करोड़ ही है, यानी जनसँख्या का केवल 1 प्रतिशत. ज़ाहिर सी बात है कि जिस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, लोगों की कमाई बढ़ रही है, वेतन बढ़ रहा है, व्यवसाय बढ़ रहा है, उसके अनुपात में आयकर नहीं भरा जा रहा. सीधा अर्थ है कि कालेधन में वृद्धि होती जा रही थी. जिसे तोड़ने के लिए सरकार ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया

संक्षेप में ठीक से समझने के लिए दो मिनट के इस वीडियो को जरूर देखिये…

https://www.youtube.com/watch?v=JSsF5DqYpCU

     जनधन बैंक खाते, गैस कनेक्शन, आधार कार्ड, से सभी खातों को जोड़ने के अलावा सरकार ने GST वाले चैनल पर भी लगातार काम जारी रखा. विपक्ष का सहयोग लिया, राज्यों को समझाया और अंततः एक अप्रैल 2017 से GST के पूरी तरह से लागू होने की पूरी संभावना है, देश की अर्थव्यवस्था में यह एक और बड़ा कदम सिद्ध होगा. बड़े नोटों को बंद करने का तत्काल प्रभाव से किसानों और छोटे व्यापारियों पर काफी असर पड़ेगा. देश का मध्यम वर्ग काफी हद तक डिजिटल पेमेंट के युग में आरंभिक प्रवेश कर चूका है, इसलिए उसे अधिक फर्क नहीं पड़ेगा. परन्तु चूँकि अब नई फसल मंडियों में आने लगी है और किसानों को भी नगद में राशि लेने की आदत पड़ी हुई है, सो उन्हें शुरुआत में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा. चूंकि कृषि पर आयकर नहीं लगता, इसलिए देश में अधिकाँश किसानों के पास PAN कार्ड भी नहीं है. परन्तु सौ-सौ के नोटों की विशाल संख्या को देखते हुए अब मजबूरी में किसानों को भी डिजिटल पैसे की तरफ अपना रुख करना ही होगा. मंडियों से व्यापारी सीधे उनके खाते में पैसा RTGS या NEFT करेगा. सरकार ने भी जनधन खाते और गैस कनेक्शन के बहाने बहुत से खातों को आधार कार्ड से जोड़कर जमीन तैयार कर दी है, इसके अलावा २२ बैंकों के संगठन ने ई-भुगतान हेतु जो UPI (यूनीफाईड पेमेंट इंटरफेस) आरम्भ किया है, उससे भी किसानों एवं छोटे व्यापारियों को जल्दी ही उसकी आदत पड़ जाएगी और भविष्य में धीरे-धीरे नगद भुगतान कालबाह्य होता चला जाएगा. देश में जितना ज्यादा “प्लास्टिक मनी” अर्थात डिजिटल मनी का उपयोग बढ़ता जाएगा, काले धन में उतनी ही कमी आती जाएगी. भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए “दीमक” के समान है, उसका निराकरण तभी होगा जब अधिकाधिक भुगतान नगद की बजाय डिजिटल हो. जैसा की वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा कहते हैं, कालेधन को समाप्त करने के लिए सरकार ने जो SIT (Special Investigation Team) बनाई थी, सरकार ने उसकी कई अनुशंसाओं को लागू करना आरम्भ कर दिया है. बड़े नोटों को बंद करना भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी थी, आने वाले समय में मोदीजी ज्वेलर्स, बिल्डरों, कालोनाईजरों, डॉक्टरों, वकीलों के कालेधन पर नकेल कसने के लिए कुछ और नई घोषणाएं और उपाय अपना सकते हैं.

     इस बात पर सवाल उठाए जाने लगे हैं कि बड़े नोटों को बंद करने के लिए भूकम्पकारी निर्णय का वास्तव में क्या कोई बड़ा फायदा हुआ है? क्योंकि बंद किए गए नोटों के बदले में सौ-सौ के तथा 500-2000 के नए नोट छापने का कुल खर्च लगभग 12,000 से 15000 करोड़ रूपए के बीच बैठेगा. इसके अलावा मानव संसाधन का समय जो लगेगा वह अलग ही है. तो क्या वास्तव में देश को इससे अधिक लाभ होगा? हम यह कैसे पता करें कि वास्तव में कालेधन वालों को इससे कोई बड़ा नुक्सान हुआ है? इसके लिए हमें कुछ मोटे-मोटे संक्षिप्त आंकड़े देखने होंगे. रिजर्व बैंक के अनुसार मार्च 2016 के अंत तक देश में 500 और 1000 के नोटों की कुल कीमत थी 14,28,000 करोड़ रूपए. अब सामान्य समझ कहती है कि प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद मार्च 2017 तक यदि इतना पैसा रिजर्व बैंक के पास वापस लौटकर नहीं आता, तो समझ लीजिए कि इसमें से जितना पैसा बचा रह गया, वह कालेधन वालों का वास्तविक नुक्सान ही है.पहले ही दिन बरेली में लाखों रूपए के जले हुए नोट सडक पर पाए गए हैं, ऐसी घटनाएँ अभी और बढेंगी. सरकार को चूना लगाने की प्रवृत्ति वाले कथित “चतुर सुजान” लोग येन-केन-प्रकारेण अपनी ब्लैक मनी को ठिकाने लगाने का प्रयास अवश्य करेंगे. आठ नवम्बर की रात को ज्वेलर्स के यहाँ रात दो बजे तक जुटी भीड़ साबित करती है की भारत में बहुत पैसा है, लेकिन हर कोई “नगद” से ही कारोबार करना चाहता है, न कि चेक से. सरकार ने ऐसे सभी ज्वेलर्स पर निगाह बनाए रखी है जिन्होंने 8-9-10 नवम्बर को कारोबार किया है. पिछली तारीखों में बिलिंग करके भी कुछ काला धन बचाया जाएगा, लेकिन वह राशि बहुत ही कम होगी. छापे के दौरान भ्रष्ट अधिकारियों के घर से जिस प्रकार करोड़-पांच करोड़ रूपए निकलते हैं उसे देखते हुए ये लोग कितना भी प्रयास कर लें, उनका बहुत सारा धन तो डूबने ही वाला है. वहीं सरकार इस बात पर भी निगाह बनाए रखेगी, कि आगामी दो-तीन माह में उद्योगों द्वारा निर्यात में “अचानक” बढ़ोतरी अथवा आयात में “अचानक” कमी तो नहीं हो गई है. क्योंकि उस रास्ते से भी काले धन को सफ़ेद करने की कोशिशें जारी रहेंगी. विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं की इससे पहले भी दो बार (1946 और 1977) नोटबंदी लागू की गई थी, परन्तु उस समय इसके परिणाम कुछ ख़ास नहीं मिले. परन्तु ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि उस समय सरकारों के पास प्रभावशाली निगरानी व्यवस्था नहीं थी, और ना ही आयकर विभाग के अधिकारी इतने चुस्त और आधुनिक थे. इस बार स्थिति दूसरी है, डिजिटल इण्डिया के कारण पैसों के लेनदेन पर निगाह रखना आसान हो गया है, साथ ही अधिकाँश बैंक खातों को आधार कार्ड से जोड़े जाने के कारण जासूसी सरल हो गई है. इसीलिए सरकार आठ नवम्बर के बाद जीरो बैलेंस के जन-धन खातों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करेगी और पिछले एक वर्ष के लेनदेन से तुलना करके तुरंत पता चल जाएगा कि “अचानक” इस गरीब के खाते में लाख-दो लाख रूपए कहाँ से आ गए?

     रिजर्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक़ 500 और 1000 के नोटों की कुल संख्या 16.4 लाख करोड़ रूपए है, जो कि देश में उपलब्ध कुल मुद्रा का 86% है. साफ़ बात है कि अब नगद में लेनदेन और मुश्किल से मुश्किल होता जाएगा. स्वाभाविक रूप से मकानों के भावों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिलेगी. वैसे भी इशारों-इशारों में मोदीजी पहले ही बता चुके हैं कि उनका अगला हमला “बेनामी संपत्तियों” के कारोबार पर होने वाला है. यानी भ्रष्टाचारियों को चैन की साँस फिलहाल तो नहीं मिलने वाली. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आशा जताई है कि यदि दबे पड़े काले धन में से आधा भी बैंकिंग सिस्टम में आ जाएगा तो बैंकों के पास नगदी बढ़ेगी और उन्हें ऋण देने में आसानी होगी, साथ ही आयकरदाताओं की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी. यदि इन सब तकनीकी बातों को छोड़ भी दिया जाए तो मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है कि नकली नोटों का धंधा ठप पड़ गया… नशीली दवाओं के कारोबार की कमर टूट गई… हथियारों के दलाल बिलबिला रहे हैं… दाऊद इब्राहिम जैसों का हवाला कारोबार खत्म हो गया है… और क्या चाहिए??

      सच तो यही है कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स, वातानुकूलित सब्जी मार्केट और क्रेडिट कार्ड अभी फ़िलहाल भारत के केवल 10% लोगों की ही पहुँच में हैं. भारत की बाकी 90% जनता निम्न-मध्यमवर्गीय लोग हैं जिनका वास्ता ठेले वाले, सब्जी वाले, प्रेस के लिये धोबी, सुबह-सुबह ब्रेडवाले आदि लोगों से पड़ता है, जिनके पास 100 का नोट “बड़ा” नोट माना जाता है. एक सामान्य आम आदमी को दैनिक “व्यवहारों” में 1000 और 500 के नोटों की कितनी आवश्यकता पड़ती होगी? सवाल वैसे कुछ मुश्किल नहीं है क्योंकि भारत की 70% जनता की रोज़ाना की आय 100 रुपये से भी कम है. अब दूसरा पक्ष देखिये कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के “ट्रांज़ेक्शन” में 80% नोट 50 रुपये से ऊपर के हैं, यानी कि अधिकतम 20% करंसी नोट 100 रुपये से कम वाले ऐसे हैं जिनसे 70% से अधिक जनता को अपना रोज़मर्रा का काम करना है. अमेरिका में सबसे बड़ा नोट 100 डॉलर का है, जबकि ब्रिटेन में सबसे बड़ा नोट 50 पाउंड का है, लेकिन भारत में सबसे बड़ा नोट अभी तक 1000 का था, जो अब 2000 का हो जाएगा. अगले पाँच वर्ष में 2000 का नोट भी बन्द किए जाने की पूरी संभावना है. जैसे-जैसे जनता में वर्चुअल मनी और डिजिटल भुगतान की आदत बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे नगद नोट अप्रासंगिक होते चले जाएँगे. अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि एक हजार रूपए के नोटों की रिश्वत देने के लिए एक करोड़ रूपए एकत्रित किए जाएँ तो उनका कुल वजन लगभग 12 किलो होगा, जबकि 100 रूपए के नोटों के बण्डल में यदि एक करोड़ की रिश्वत देनी हो तो उसका वजन लगभग 100 किलो हो जाएगा… तो बड़े नोटों की जरूरत किसे है?? मुझे तो नहीं है… क्या आपको है??