मैं ऐसा क्यों हूं ?

आखिर हम इतने निर्ल्लज, बेशर्म, बेहया क्यों बनते जा रहे हैं कि हर अच्छे काम के लिए कोर्ट हमें अर्थात् सरकार को चाबुक मार रही है? इससे लगता है कि विधायी पालिका और कार्यपालिका अब नाकाराओं के हाथ में आ गई हैं। यदि ऐसा है तो भारत देश के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं। जब सभी काम न्यायपालिका को ही करना है तो विधायी पालिका एवं कार्यपालिका का क्या काम? सरकार के पास काबिल एवं योग्य मंत्रियों की फौज के रहते हुए भी वह न केवल जनता को भ्रष्टाचार एवं काले धन के मुद्दे पर समझाने में नाकाम रही बल्कि न्यायालय के समक्ष भी अक्षम ही रही। ऐसा नहीं है सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पहली बार ही लताड़ा हो वह उसके पूर्व भी अनाज सड़ने एवं गरीबों में बांटने, राष्ट्र मंडल खेल, कश्मीरी पंडित, बी.पी.एल.कार्ड, सी.बी.सी., हसन अली, श्रमिक विरोधी नीति, देश में कोई भूखा न मरे जैसे मामलों में सरकार की न केवल बुरी तहर किरकिरी हुई बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर भी अनगिनत प्रश्न चिन्ह लग गए हैं?

यह देश की शायद पहली ही असाधारण घटना होगी कि देश के काले धन के चोरों को न्यायालय अब खुद पकड़ेगा अब चूंकि मामला न्यायालय का है नेता मनमसोस के रह गए है। पूरे परिदृश्य के पीछे गहराई में यदि हम जाए तो पाते है कि भ्रष्टाचार ही मुख्य है जिसे कोई भी राजनीतिक पार्टी ईमानदारी से न खत्म करना चाहती हेै और ना ही इसके लिए अन्ना जैसे लड़ने का साहस करना चाहती है। यहां मुझे राजेश खन्ना की फिल्म रोटी अनायास ही याद आती है जिसमें एक रोटी की चोरी पर महिला पर सभी पत्थर बरसाते है उसी समय नायक राजेश खन्ना कहता है कि इसे वह पत्थर मारे जिसने कभी पाप न किया हो। कहने को तो बात छोटी थी लेकिन रहस्य बड़ा ही गहरा था। आज राजनीति में हर एक नेता के दामन पर कहीं न कहीं दाग लगे ही हुए है। इसीलिए वे ऐसे गंभीर मुद्दे पर अन्तर आत्मा की आवाज उन्हें अंदर से धिक्कारती है और नतीजन पूरे मनोयोग से लड़ नहीं पाते।

हाल के घटनाक्रम में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे दो चेहरे काले धन एवं भ्रष्टाचार के लिए लोकपाल को ले उभरे हैं। बाबा रामदेव की बात करें जब वह व्यक्ति कह रहा है कि यदि मेरे पास काला धन हो तो सरकार इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दे साथ ही यह नीति भ्रष्ट नेताओं पर भी लागू हो, क्या गलत कहा? नेता क्यों ‘‘रोटी’’ फिल्म की भीड़ की तरह ठिठक कर रह गए? आखिर क्या बात है? कहीं चोर की दाड़ी में तिनका तो नहीं? जन प्रतिनिधि एवं मंत्रियों के द्वारा केवल अपनी करोड़ो-अरबों की संपत्ति घोषित कर देने मात्र से अपने को वीर नहीं समझ लेना चाहिए, बल्कि जनता को यह भी बताए कि कमाई गई संपत्ति का स्त्रोत क्या है? उनके अपने निजी एवं सगे संबंधियों, बेनाम व्यक्तियों के नाम से संचालित धंधो, व्यवसायों के बारे में क्या सरकार स्वतंत्र जांच एजेन्सियों से ऐसों की जांच बाबा रामदेव की तरह करायेगी? इन्होंने अपने पद का दुरूपयोग न किया का प्रमाण पत्र आखिर कौन देगा? इन सभी का केवल एक ही उत्तर एक स्वतंत्र अधिकार सम्पन्न ‘‘जन लोकपाल’’ ही आयेगा। यदि नहीं तो सरकार जांच करेगी? सरकार बनियागिरी छोड़े केवल जन सेवा पर ही ध्यान दे। इसके लिए अगर संविधान में आवश्यक संशोधन भी करना पड़े तो करें, आखिर जनप्रतिनिधि है किसके लिए? कुछ मंत्री कह रहे है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल की परिधि में रखने से उनका कद संविधान में कमजोर हो जायेगा। दूसरा इस देश में एक समानान्तर सरकार स्थापित हो जायेगी। कपिल सिब्बल देश के नामी गिरामी वकीलों में से एक है विधि के जानकार है फिर भी ऐसी बात कर रहे है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति भी संविधान के तहत् ही होती है और जो अधिकार किसी को दे सकता है तो वह इसकी दुरूपयोगिता पर वापस भी ले सकता है फिर खतरा कैसा?

 

हमारा जनप्रतिनिधि कैसा हो का मापदंड शासन को जनहित में जनता के बीच जारी करना ही चाहिए? वैसे मंत्रियों के लिए तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी आचार संहिता बना मीडिया में भी जारी कर चुके है जो स्वागतयोग्य है। इसमें मंत्रियों को तमाम हिदायतें दी गई है मसलन अपनी संपत्ति की घोषणा करे, गैर व्यवसाय से दूर रहे, नाते-रिश्तेदारों के व्यावसायिक हितों का खुलासा करें, किसी प्रकार के तोहफे न ले, मंत्री बनने के पहले कम्पनी की मिल्कियत, प्रबंधन से जुड़े हो तो संबंध तोड़ ले, घरवालो के किसी भी सार्वजनिक उपक्रम या व्यापार में शामिल न हो। यदि परिजन का बहुराष्ट्रीय कंपनी में शामिल होना जरूरी हो तो अनुमति ले। इस कार्य के लिए सी.एम. व राज्यों के मंत्रियों पर केन्द्र के गृहमंत्री नजर रखेंगे।

यहाँ यक्ष प्रश्न उठता है कि आज तक इन नियमों का अक्षरशः पालन कितने मंत्रियों ने किया या नहीं? गृहमंत्री कब ऐसों की सूची सार्वजनिक करेंगे? सरकार भ्रष्टाचार एवं काले धन को ले गंभीर है कहने मात्र से अब काम नहीं चलेगा, जनता परिणाम चाहती है।

काले धन को ले केन्द्र ने 30 सदस्यीय टीम भी गठित की थी जो अपना दायित्व नहीं निभा सकी। ये कार्यवाही करने में क्यों नाकाम एवं लेट लतीफ रही? शासन ऐसे कर्त्तव्यहीन सदस्यों के खिलाफ कार्य में लापरवाही बरतने को ले क्या कर रही है? जनता को बताए आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट को यह काम अपने हाथों में लेना पड़ा। भ्रष्टाचार से उपजा काला धन मामले को ले सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को जोर का झटका धीरे से दिया है। इतना ही नहीं उसने जांच एवं निगरानी का काम भी अपने हाथों मे ले एक जांच दल एस.आई.टी. भी गठित कर दिया है जिसके अध्यक्ष न्यायामूर्ति वी.पी.जीवन रेड्डी एवं उपाध्यक्ष न्यायामूर्ति एम.वी.शाह के साथ 10 सदस्यीय सदस्य भी गठित किये है। इसी के साथ कोर्ट ने केन्द्र एवं सभी राज्यों की सरकारों को एस.आई.टी. को सहयोग करने का भी निर्देश दिया है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। काला धन कितना है इसको लेकर भी अलग-अलग मत है। भाजपा कहती है 25 लाख करोड़, सरकार मानती है 22,210 से 62188 अरब रूपये, वही बाबा रामदेव इसे 400 लाख बता रहे है। बैंगलूर के प्रोफेसर आर. बैधनाथन के अनुसार 2002 से 2006 की बीच देश से बाहर गए काले धन की मात्रा 6.92 लाख करोड़ है। स्विस बैंक के अलावा विदेश में अन्य बैंकों में भी यहां का काला धन यहां से बाहर भेज जमा किया गया है। यहां जांच समिति का दायित्व और भी बढ़ जाता है कि हर पहलू की बारीकी से परीक्षण हो ताकि भारत की जनता का विश्वास न्यायामूर्तियां पर कायम रहे।

लोग बेवजहा ही महमूद गजनवी को बदनाम करते है उससे ज्यादा धन तो हमारे अपने लोगों द्वारा लूट विदेशों में ले जाकर जमा किया है। भारत की जनता को पूरा हक बनता है कि उसे असली गद्दार, देशद्रोही एवं चोर का नाम पता चले। आखिर में ये धन भारत के गरीबों का जो है। अभी तक तो केन्द्र सरकार का जनता के बीच एक नाकाम कार्यप्रणाली का ही संदेश गया है। एक ओर बुरी बात केन्द्र में हो रही है जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ विगुल बजाता है सभी मिल उसके पीछे पड़ तमाम जांच एजेन्सी लगा देते है। यदि यही जांच एजेन्सी सरकार अपने मंत्रियों के पीछे लगा दे तो उनके द्वारा कमाए गए स्त्रोतों के पीछे पड़े तो अरबों रूपया सरकार के हाथ लग सकता है लेकिन ऐसा दुष्कर कार्य वह करेगी नहीं?

 

‘‘सितारों के आगे जहां और भी है

अभी इश्क के इम्तहां और भी है।’’