बोफोर्स : सौदे को भूलें और तोपों को याद करें

भाजपा के ‘इंडिया शाइनिंग’ (चमकता भारत) नारे के मुकाबले कॉंग्रेस को अब ‘राजीव शाइनिंग’ (चमकते राजीव) नारा हाथ आ गया है| जिस बेरहमी से केंद्र सरकार विज्ञापनों पर पैसा बहा रही है, उसके मुकाबले अब कॉंग्रेस भी खम ठोक रही है| दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को कॉंग्रेस ने अपनी नाव बना लिया है| वह तिनके को नाव समझ बैठी है| डूबते को तिनके का सहारा ! जिस बोफोर्स-सौदे के कारण कॉंग्रेस की नाव डूबी, अब वह फिर उसी पर सवार होना चाहती हैं| उसकी यह कोशिश उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता का पता देती है| और कोई नारा नहीं तो यही सही|

लेकिन यह सही नहीं है| सोनिया गॉंधी का यह कहना अजीब-सा लगता है कि उन्हें अपने पति पर गर्व है| यों तो हर पत्नी को अपने पति पर गर्व हो सकता है लेकिन इसमें गर्व करने की क्या बात है कि कोई प्रधानमंत्री रिश्वत नहीं लेता| यदि यह गर्व करने की बात बन जाए तो इसका एक अर्थ यह भी होगा कि रिश्वत लिये बिना कोई प्रधानमंत्री नहीं बने रह सकता या नहीं बन सकता और राजीव गॉंधी इस नियम के अपवाद सिद्घ हुए हैं| इसीलिए उन पर गर्व है| यह सोच राजीव की दृष्टि से अच्छा हो सकता है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री पद की दृष्टि से यह भयंकर छविभंजक होगा|

यहॉं एक प्रश्न यह भी उठता है कि उच्च न्यायालय का कोई जज राजीव गॉंधी को जितना जानता है, क्या सोनिया गॉंधी राजीव को उससे भी कम जानती थीं ? जज के बताने पर ही उन्हें मालूम पड़ा कि राजीव ईमानदार थे ? यदि जज के फैसले को ध्यान से पढ़ा जाए तो मालूम पड़ेगा कि राजीव की ईमानदारी तो उस फैसले का विषय ही नहीं था| राजीव गॉंधी के किसी रिश्तेदार या कॉंग्रेस पार्टी के किसी सदस्य ने याचिका नहीं लगाई थी और हिन्दूजा-बंधुओं ने जो याचिका लगाई थी, उसमें यह मॉंग नहीं की गई थी कि जज राजीव गॉंधी की ईमानदारी पर फैसला सुनाऍं| जज ने भी यह कहीं नहीं कहा कि राजीव गॉंधी बिल्कुल ईमानदार थे| उसने केवल यह कहा है कि सी.बी.आई. कितनी निकम्मी है कि वह रिश्वत के प्रमाण नहीं खोज पाई| उसके पास रत्ती भर प्रमाण भी नहीं हैं, यह सिद्घ करने के लिए कि राजीव ने रिश्वत ली थी| ‘प्रमाण नहीं हैं’, इसका मतलब क्या है ? क्या इसका मतलब यह है कि घटना भी नहीं हुई है| हत्या का प्रमाण नहीं मिल पाए तो क्या यह मान लिया जाएगा कि हत्या हुई ही नहीं ? स्वयं जज ने माना है कि रिश्वत दी गई है और रिश्वत ली गई है| उसने यह भी माना है कि बोफोर्स के सौदे में भारत सरकार से 64 करोड़ रु. ठगे गए हैं| जिसने ठगे हैं, वह कौन है, यह अभी तय होना है और सी.बी.आई. का निकम्मापन यह है कि व उन सब खातों का पता नहीं लगा पाई, जो राजीव गॉंधी के नाम से जुड़े हुए थे|

अदालत का यह फैसला राजीव गॉंधी को निश्चय ही रिश्वत के आरोप से बरी करता है| कानून की यह मजबूरी है| यदि राजीव गॉंधी जीवित होते तो निश्चय ही उन्हें कोई सजा नहीं होती लेकिन यह फैसला राजीव गॉंधी की ईमानदारी का नहीं, सी.बी.आई. के निकम्मेपन का प्रमाण-पत्र है| दूसरे के निकम्मेपन को हम अपनी ईमानदारी समझ बैठें और उसका सारी दुनिया में ढोल पीटें, इससे बड़ा भोलापन क्या होगा ? वह ईमानदारी भी क्या ईमानदारी है, जिसके बचाव में अटल-पूर्व सरकारों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया| बेचारी सी.बी.आई. मुफ्त में मारी गई| सी.बी.आई. तो सरकार के हाथ का खिलौना होती है| सरकार चाहे तो उघाड़नेवालों को ढॉंपनेवालों का काम दे देती है| रिश्वतखोरों ने जितने पैसे खाए, उससे ज्यादा इस उधेड़-बुन में खर्च हो गए| यहॉं एक प्रश्न यह भी पूछा जाना चाहिए कि पिछले छह साल से वर्तमान सरकार क्या करती रही ? उसे किसने रोका था? इसने उन खातों को क्यों नहीं पकड़ा, जिनका संबंध राजीव गॉंधी से बताया गया था ? जो लोग सबसे ज्यादा शोर मचा रहे थे, वे अब सरकार में बैठे हैं| क्यों उन्हें कोई लज्जा अनुभव नहीं हो रही ?

सोनिया गॉंधी का यह कहना कि अपने निराधार आरोपांे के लिए भाजपा माफी मॉंगे, जरा टेढ़ी खीर है| भाजपा ही क्यों, वे सब पार्टियॉं भी माफी क्यों नहीं मॉंगे जो अब कॉंग्रेस की हमजोली बन रही हैं? यह सचमुच एक राजनीतिक हादसा है कि श्री विश्वनाथप्रताप सिंह ने कह दिया कि उन्होंने राजीव गॉंधी पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए| यह कहकर वे क्या सिद्घ करना चाहते हैं ? यही न, कि अब जो सेक्युलर मोर्चा बन रहा है, कहीं वह उनके बयान की गर्मी से तड़क न जाए ! एक तात्कालिक सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपने जीवन के सबसे बड़े सत्य को तिलांजलि क्यों दे दी ? क्या किसी करुणावश ? गली-गली में शोर है और उसके बागे के शब्द आखिर इस देश में ऑंधी की तरह किसने फैलाए थे ? एक जज के फैसले से क्या देश की राय बदल जाएगी ? विश्वनाथप्रताप सिंह का फैसला किसी भी जज के फैसले से कहीं बड़ा था| फैसला आया, सजा भी मिल गई| अब उस पर लीपा-पोती करने से क्या फायदा ? अच्छा तो यह होता कि सोनिया गॉंधी, वि.प्र. सिंह और वर्तमान सरकार – सभी बोफोर्स को किसी दु:स्वप्न की तरह भूल जाऍं| जब तेलगी जैसे लोग 30-30 हजार करोड़ का चूना लगा सकते हैं तो 64 करोड़ रु. की क्या क़ीमत है? असली बात तो यह है कि राजीव गॉंधी ने पैसे के लिए देश की पीठ में छुरा नहीं भोंका| यदि करगिल युद्घ में बोफोर्स की तोपें फुस्स हो जातीं तो यह सबसे बड़ा देशद्रोह कहलाता| अच्छा हो कि राजीव का नाम सौदे की बजाय तोपों से जोड़ा जाए| सौदे को भूलें और तोपों को याद करें|

यदि कॉेग्रेस सौदे को भुनाने की कोशिश करेगी तो वह खुद भुन जाएगी| अदालत किसी को जेल के सींखचों से बचा सकती है, राजनीतिक बनवास से नहीं| यदि सौदा उछला तो सरकार सर्वोच्च न्यायालय में जा सकती है और सी.बी.आई. अपनी दक्षता सिद्घ करने के चक्कर में राजीव की स्मृति के साथ पता नहीं क्या-क्या खिलवाड़ कर सकती है| भारत के अखबारों में  गड़ी हुई कब्र को दुबारा उखाड़ा जाएगा| पता नहीं, कितने केबिनेट सचिव और संयुक्त सचिव अपने संस्मरणों की अल्मारियों में से कौन-कौन-से कंकाल निकालेंगे ? अभी तो राजीव गॉंधी को फॅंसाया गया था, अब निर्दोष सोनिया को भी फॅंसा दिया जाएगा| देश की राजनीति राष्ट्रीय विकास की बजाय, व्यक्तिगत विनाश पर केंदि्रत हो जाएगी|