पिक्चर अभी बाकी है चिदम्बरम साहब…

2G घोटाला (2G Scam) मामले में सीबीआई की अदालत ने हमारे माननीय गृहमंत्री चिदम्बरम साहब को “क्लीन चिट”(?) दे दी। डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी (अर्थात वन मैन आर्मी) द्वारा लड़ी जा रही इस कानूनी लड़ाई में जैसे ही कोर्ट ने कहा कि “चिदम्बरम को इस मामले में आपराधिक षडयंत्र का दोषी नहीं माना जा सकता…”, मानो मीडिया और कांग्रेस को मनमाँगी मुराद मिल गई और इन दोनों के “नापाक गठजोड़” ने दीपावली मनाना शुरु कर दिया। “सुपरस्टार बयानवीर” अर्थात कपिल सिब्बल ने डॉ स्वामी को भगवान से अपील करने तक की सलाह दे डाली और मीडिया के “दिमागी पैदलों” ने “चिदम्बरम को राहत…” की बड़ी-बड़ी हेडिंग के साथ ही यह घोषणा तक कर डाली कि अब भविष्य में चिदम्बरम (P Chidambaram) को इस मामले में घसीटना बेतुका होगा… अर्थात सीबीआई की एक अदालत के निर्णय को, इन सभी स्वयंभू महान पत्रकारों ने “सुप्रीम कोर्ट” का अन्तिम निर्णय मान लिया, जिस पर अब बहस की कोई गुंजाइश नहीं हो…।

इस सारे झमेले और फ़र्जी हो-हल्ले के बीच यह खबर चुपचाप दब गई (या दबा दी गई) कि तमिलनाडु के (कु)ख्यात मारन बन्धुओं (Dayanidhi and Kalanidh Maran) और मैक्सिस कम्पनी के बीच जो अवैध लेन-देन हुआ और जिसमें मारन बन्धुओं ने करोड़ों (सॉरी, अरबों) रुपए बनाए, उस मामले में उन्हें साफ़-साफ़ दोषी पाया गया है…। सीबीआई की FIR में कहा गया है कि मारन बन्धुओं को एयरसेल-मैक्सिस सौदे में अनधिकृत रूप से 550 करोड़ रुपये का लाभ पहुँचाया गया। जब मारन बाहर हुए तो ए राजा उस मलाईदार कुर्सी पर काबिज हुए और उन्होंने भी जमकर माल कूटा जिसमें “चालाकी दिखाने की असफ़ल कोशिश” के तहत स्वान टेलीकॉम ने DMK के घरू चैनल “कलाईनर टीवी” को 200 करोड़ रुपए दिए। हालांकि चालाकी काम न आई और करुणानिधि की लाड़ली बिटिया कनिमोझि को तिहाड़ की सैर करनी ही पड़ी…। उल्लेखनीय है कि यह सारे “पवित्र कार्य” उसी समय सम्पन्न हुए जब 2G  केस की निगरानी सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाथों में ली, और डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी हाथ-पाँव-मुँह धोकर चिदम्बरम, गृह मंत्रालय और संचार मंत्रालय के पीछे पड़े और उन्हें मजबूर किया कि वे डॉ स्वामी को मूल फ़ाइलों की कॉपी प्रदान करें…।

प्रस्तावना के तौर पर इतनी “कहानी”(?) सुनाना इसलिए जरूरी था, क्योंकि चिदम्बरम साहब स्वयं और उनकी पत्नीश्री भी इतने काबिल वकील और चतुर-सुजान हैं कि इन्होंने बड़ी सफ़ाई से इस मामले में अभी तक अपनी खाल बचा रखी है और “फ़िलहाल” (जी हाँ फ़िलहाल) एक भी “प्रत्यक्ष सबूत” सामने नहीं आने दिया है…।

परन्तु प्रत्यक्ष सबूत ही तो सब कुछ नहीं होते, शक गहरा करने वाली घटनाएं, तथ्य और कड़ियाँ जिस बात की ओर इशारा करती हैं, हमें उन्हें भी देखना चाहिए। डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की टीम तो पहले से ही “तिलस्म-ए-चिदम्बरम” के पिटारे का दरवाजा खोलने हेतु जोर-आजमाइश कर ही रही है, परन्तु तमिलनाडु के राजनैतिक एवं सामाजिक हलकों से छन-छन कर आने वाली खबरें तथा सीबीआई व अन्य जाँच एजेंसियों से “लीक” होने वाले सूत्रों द्वारा बहुत सी बातें निकलकर आ रही हैं जो कि चिदम्बरम को बेचैन करने के लिए काफ़ी हैं।

जिन्होंने माननीय जज ओपी सैनी के पूरे निर्णय को पढ़ा है उन्हें पता होगा कि उसमें उन्होंने लिखा है, “In the end, Mr. P. Chidambaram was party to only two decisions,  that is, keeping the spectrum prices at 2001 level and dilution of equity by the two companies. These two acts are not per se criminal. In the absence of any other incriminating act on his part, it cannot be said that he was prima facie party to the criminal conspiracy. There is no evidence on record that he was acting in pursuit to the criminal conspiracy, while being party to the two decisions regarding non-revision of the spectrum pricing and dilution of equity by the two companies.”

निर्णय की इन पंक्तियों पर गौर कीजिये (1.There is no evidence on record… और 2. it cannot be said that he was prima facie party to the criminal conspiracy) अर्थात फ़िलहाल इस लोअर कोर्ट के जज “मजबूर” दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि डॉ स्वामी द्वारा कोई ठोस सबूत उनके समक्ष नहीं रखा गया। परन्तु कानूनी जानकार बताते हैं कि इस निर्णय को उच्च न्यायालयों में उलटे जाने की पूरी सम्भावना है। रही बात सबूतों की, तो वह भी जल्द ही सामने आएंगे ही, फ़िर भी कुछ घटनाएं और तथ्य जो कि “उड़ती चिड़िया” बता जाती हैं, वह इस प्रकार हैं…

26 दिसम्बर 2005 को एयरसेल कम्पनी का अधिग्रहण ग्लोबल कम्यूनिकेशन ने कर लिया था। ग्लोबल कम्पनी पूरी तरह से मैक्सिस कम्यूनिकेशंस तथा डेक्कन डिजिटल नेटवर्क का संयुक्त उपक्रम है, जिसके मूल मालिक “सिन्द्या सिक्यूरिटीज़ एण्ड ग्लोबल कम्यूनिकेशन हैं। उल्लेखनीय है कि एयरसेल कम्पनी की शुरुआत की थी शिवशंकरन ने, जिन्होंने संयुक्त उपक्रम में मैक्सिस मलेशिया और सिन्द्या सिक्यूरिटीज़ के साथ मिलकर इसे स्थापित किया था। सिन्द्या सिक्यूरिटीज़ एण्ड ग्लोबल कम्यूनिकेशन में प्रमुख शेयर धारक हैं चेन्नई के अपोलो अस्पताल समूह के रेड्डी परिवारजन, और इसमें मैक्सिस के 74% शेयर थे।

अपोलो अस्पताल के प्रमुख प्रमोटर प्रताप रेड्डी ने अपने लिखित बयान में सीबीआई के सामने स्वीकार किया है कि सिन्द्या सिक्यूरिटीज़ को द्वारकानाथ रेड्डी एवं सुनीता रेड्डी ने प्रमुखता से प्रमोट किया तथा “इन्वेस्टमेण्ट के तौर पर” एयरसेल कम्पनी में पैसा लगाया। सुनीता रेड्डी अपोलो अस्पताल समूह के प्रताप रेड्डी की पुत्री हैं, और उन्हें “अचानक यह ज्ञान प्राप्त हो गया”, कि अब उन्हें अस्पताल का धंधा छोड़कर टेलीकॉम के धंधे में उतर जाना चाहिए।

यहाँ तक के घटनाक्रम से तो ऐसा लगता है कि सब कुछ “कुख्यात केडी” (अर्थात कलानिधि, दयानिधि) की ही कारस्तानी है… लेकिन कुछ और खोदने पर नया चित्र सामने आता है। चेन्नई के व्यापारिक हलकों में चर्चा है कि एयरसेल में अपोलो अस्पताल समूह की रुचि की असली वजह हैं चिदम्बरम साहब की बहू श्रीनिधि चिदम्बरम, जिनका विवाह कार्तिक चिदम्बरम से हुआ है। पेंच यह है कि श्रीनिधि की नियुक्ति अपोलो अस्पताल में प्रमुख फ़िजिशियन के रूप में दर्शाई जाती है। जबकि हुआ यह है कि अपोलो अस्पताल समूह ने अपने शेयर बहूरानी श्रीनीति के नाम किए (अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से चिदम्बरम के ही नाम किए), बदले में चिदम्बरम साहब ने एयरसेल और रेड्डी परिवार के बीच सौदा फ़ाइनल करवाने में प्रमुख भूमिका अदा की। बाद में शक्तिशाली मारन बन्धुओं द्वारा मैक्सिस के शिवशंकरन की बाँह मरोड़कर करोड़ों रुपये डकारे गये।

सीबीआई के अपुष्ट सूत्रों के अनुसार जिस समय मारन बन्धुओं के घर छापे की कार्रवाई चल रही थी उस समय सीबीआई के कुछ अधिकारी चेन्नई के हाई-फ़ाई इलाके नुगाम्बक्कम में सुनीता रेड्डी के घर डेरा डाले हुए थे, ताकि इस बात से आश्वस्त हुआ जा सके कि समूचे घटनाक्रम में बहूरानी श्रीनिधि का नाम कहीं भी न झलकने पाए। उधर मारन बन्धु पहले ही चिदम्बरम साहब को धमकी दे चुके थे कि यदि इस मामले में उनके अकेले का नाम फ़ँसाया गया तो चिदम्बरम साहब को भी नुकसान पहुँच सकता है। इसीलिए अब सीबीआई को इस झमेले में फ़ूंक-फ़ूंक कर कदम रखना पड़ रहा है।

अब हम आते हैं चिदम्बरम साहब और अपोलो अस्पताल समूह के मधुर सम्बन्धों पर… अपोलो अस्पताल समूह ने तमिलनाडु के एक छोटे और सुस्त से शहर कराईकुडी में 110 बिस्तरों वाला आधुनिक अस्पताल खोला, कुराईकुडि चिदम्बरम साहब का गृह-ग्राम है। “संयोग” देखिए, कि इस कस्बे में अपोलो के इस भव्य अस्पताल की घोषणा तभी हुई, जब 2009 में चिदम्बरम साहब की बहूरानी को अपोलो अस्पताल के शेयर आवंटित हुए…। कुराइकुडि के इस अस्पताल का उदघाटन 27 दिसम्बर 2011 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था, एक मामूली कस्बे में एक अस्पताल का उदघाटन करने के लिए प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति के पास टाइम ही टाइम है, जबकि ए राजा द्वारा हेराफ़ेरी की गई फ़ाइलों को ठीक से देखने का वक्त नहीं है… क्या गजब संयोग है?

तत्कालीन नियमों के मुताबिक टेलीकॉम सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 74% से अधिक की अनुमति नहीं थी, परन्तु मारन बन्धुओं तथा बहूरानी की खातिर चिदम्बरम साहब ने इस बात से आँखें मूंदे रखीं, कि मार्च 2006 में मैक्सिस ने मलेशिया स्टॉक एक्सचेंज में लिखित रूप से कहा है कि एयरसेल में उसका मालिकाना हक 99.3% है।

बहरहाल, चिदम्बरम साहब की मुश्किलों में बढ़ोतरी इस बात से भी होने वाली है कि डॉ स्वामी की टीम के लोग इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि चिदम्बरम साहब के वित्तमंत्री रहते उनके “शेयर मार्केट उस्ताद” सुपुत्र कार्तिक ने कौन-कौन से सौदे किए थे तथा चिदम्बरम साहब ने “नीतियों में परिवर्तन एवं अचानक की गई घोषणाओं” से कार्तिक को कितना लाभ पहुँचाया। इस दिशा में भी “खोजबीन” जारी है कि चिदम्बरम साहब जिस “वासन आई केयर अस्पताल श्रृंखला” के नज़दीकी हैं, उसमें कार्तिक की इतनी रुचि क्यों है? उल्लेखनीय है कि वासन आई केयर के 25वें और 100वें अस्पताल का उदघाटन चिदम्बरम ने ही किया था। वासन आई केयर ने 2008 में चेन्नई में पहला अस्पताल खोला था, और मात्र तीन साल में उसके 15 अस्पताल सिर्फ़ चेन्नई में खुल गये हैं… ऐसी “भीषण” तरक्की का राज़ क्या है, यह जानने की उत्सुकता अन्य अस्पतालों के मालिकों में भी है…।

कहने का तात्पर्य यह है कि चिदम्बरम साहब को सीबीआई जज श्री सैनी ने “तात्कालिक” राहत पहुँचाई है, जबकि पिक्चर अभी बाकी है… उम्मीद है कि प्रणब मुखर्जी साहब भी अपने दफ़्तर की मेज़ के नीचे छिपाए गये खुफ़िया माइक प्रकरण को भूले नहीं होंगे और चिदम्बरम साहब की मुश्किलें बढ़ाने का “उचित मौका” ढूंढ रहे होंगे… परन्तु 2G का घोटाला एक विशाल “बरगद” के समान है, खोदने वाले को पता नहीं कहाँ-कहाँ, कौन-कौन सी जड़ें मिल जाएं।