अब्दुल बासित की उलटबासी

पाकिस्तान के उच्चायुकत अब्दुल बासित यों तो काफी अनुभवी और समझदार राजनयिक हैं लेकिन कल उन्होंने दिल्ली के विदेशी पत्रकारों के सामने जो कह दिया, उसने सबको चमका दिया है। उनके कहने का मतलब यह था कि भारत और पाक के बीच चल रही बातचीत को भंग ही समझा जाए। पठानकोट-कांड की खोजबीन करने आई टीम के बदले भारतीय टीम का पाकिस्तान जाना संभव नहीं दिखता। भारत और पाकिस्तान के बीच असली मुद्दा कश्मीर है। जब तक वह हल नहीं होता, कोई बात आगे कैसे बढ़ेगी? बासित की इस उलटबासी ने सबके कान खड़े कर दिए हैं।

बासित के यह कहने के घंटे भर बाद ही पाकिस्तान और भारत, दोनों के विदेश मंत्रालयों ने उनकी बात का खंडन कर दिया। उन्होंने कहा कि विदेश सचिवों की बातचीत की तैयारी चल रही है। इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त गौतम बांबवाला ने कहा कि पठानकोट के बारे में जो चिट्ठी-पत्री आई-गई हैं, उनमें साफ-साफ लिखा हुआ है कि यह जांच पूर्ण पारस्परिकता के आधार पर हो रही है।

इन दोनों प्रतिक्रियाओं से क्या अंदाज लगाया जाए? एक अंदाज तो यही लगता है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय और उसके उच्चायुक्त में आजकल तालमेल नहीं हैं, हालांकि पाकिस्तानी सरकार के लिए भारत में नियुक्त उसका उच्चायुक्त सारे राजनयिकों में सबसे महत्वपूर्ण होता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से उसका सीधा संपर्क रहता है लेकिन अभी ऐसा लग रहा है कि बासित इस समय सरकार की बजाय फौज और आईएसआई से अधिक संपर्क में हैं। यों भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद पुराने नेता सरताज़ अजीज से लेकर जनरल नासिर जेंजुआ को दे दिया गया हे। जेंजुआ और बासित का संपर्क अधिक घनिष्ट मालूम पड़ रहा है। इसके अलावा इस्लामाबाद में भी सरकार और फौज के बीच पहले जैसा समन्वय नहीं दिखाई पड़ रहा है। दूसरे शब्दों में बासित के बयान में पाकिस्तान की अंदरुनी राजनीति की झलक दिख रही है।

जो भी हो, इस समय भारत और पाकिस्तान के नेताओं ने जो रास्ता पकड़ा है, उन्हें उस पर डटे रहना चाहिए। अब भारतीय खोजी दल को पाकिस्तान जाना चाहिए। दोनों देशों की जनता और नेताओं को टीवी और अखबारी प्रचार को एकदम सच नहीं मान लेना चाहिए। पाकिस्तान पत्रकार यों तो काफी निर्भीक होते हैं लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि वे फौज के इशारे पर निषेधात्मक खबरें भी फैलाने से नहीं चूकते। इस समय अफगानिस्तान पर होने वाली अंतरराष्ट्रीय बातचीत में भारत को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। भारत को धैर्य और दृढ़ता से काम लेना होगा। वरना मोदी सरकार के अगले तीन साल भी खाली ही बीत जाएंगे।