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‘भारतमाता की जय’ को लेकर छिड़ा विवाद बिल्कुल बेतुका है। अनावश्यक है। न तो इसका इस्लाम से कुछ लेना-देना है और न ही यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बपौती है। क्या ‘भारतमाता की जय’ का नारा संघ का दिया हुआ है? संघ का जन्म 1925 में नागपुर में हुआ। भारतमाता की जय का नारा क्या 1925 में ही शुरु हुआ? उसके पहले भारत के स्वाधीनता सेनानी कौनसा नारा लगाते थे? बाल गंगाधर तिलक, बदरुद्दीन तय्यबजी, लाला लाजपतराय, दादाभाई नौरोजी, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सुभाष बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद और हकीम अजमल खान कौनसा नारा लगाते थे? क्या ये सब महान नेता संघ के स्वयंसेवक थे? चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, अशफाक, बिस्मिल- क्या ये सब संघ के आदेश पर भारतमाता की जय बोलकर फांसी के फंदे पर चढ़े थे? क्या इस नारे का प्रचलन सिर्फ नागपुर में ही था? क्या यह नारा कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक सारे भारत में नहीं गूंजता था?
तो फिर इस नारे का विरोध किसलिए हो रहा है? क्या सिर्फ इसलिए कि सर संघचालक मोहन भागवत ने इस नारे की तारीफ कर दी है? उन्होंने सिर्फ यही कहा था कि भारत के नौजवानों को यह नारा ज़रा जोर से गुंजाना चाहिए। यदि आपने यही जिद पाल रखी है कि संघ जो भी कहे, उसका विरोध करना है तो आप किसी दिन अपने आप को मसखरा बना लेंगे। यदि संघ ऐलान कर दे कि शराब पीना गलत है तो क्या आप मद्यपान को सही ठहराने पर तुल जाएंगे? इत्तिहादुल-मुसलमीन के नेता ने यही किया है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हम मोहन भागवत का आदेश क्यों मानें? बिल्कुल ठीक है। भारत का हर नागरिक स्वतंत्र है? किसी भी बात को मानने, न मानने या कुछ और मानने के लिए। उसे मजबूर नहीं किया जा सकता। मैंने पहले ही दिन कहा था कि यदि कोई ‘भारतमाता की जय’ नहीं बोलना चाहे तो न बोले। यही बात कुछ दिन बाद भागवत ने भी कह दी। अब तो कोई विवाद नहीं रहना चाहिए था लेकिन दो फतवे हैदराबाद से जारी हो गए और एक देवबंद से।
इस नारे का विरोध करते हुए ओवैसी ने पूछा था कि संविधान में कहां लिखा है कि ‘भारतमाता की जय’ बोलो? क्या हर बात संविधान में लिखी जा सकती है? यह बात ऐसी ही है, जैसे कि अन्ना हजारे ने एक बार मुझसे पूछा कि हम लोग ऐसा आंदोलन क्यों न चलाएं जो कि देश के सारे राजनीतिक दलों को भंग करने की मांग करे? मैंने पूछा क्यों चलाएं तो उन्होंने कहा कि ये सब दल गैर-कानूनी हैं, क्योंकि संविधान में इनका जिक्र तक नहीं है। फिल्मी कवि जावेद अख्तर ने खूब कहा कि संविधान में यह कहां लिखा है कि सब लोग कपड़े पहनकर ही घर से बाहर निकलें।
मोहन भागवत की वजह से जो मुस्लिम संस्थाएं फतवे जारी कर रही हैं और जो मुस्लिम नेता इस नारे का विरोध कर रहे हैं, वे अपने आप को संघ के हाथ का खिलौना बना रहे हैं। वे बेवजह अपने आप को भारत के हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों से अलग-थलग कर रहे हैं। उनकी वजह से मुसलमान लोग, चाहे वे कितने ही कम हों, गुमराह हो सकते हैं। वे कहते हैं कि हम ‘भारतमाता की जय’ की जगह ‘जयहिंद’ कहेंगे। मेरी नज़र में दोनों एक ही हैं लेकिन हिंद की जय पर बहुत जोर देनेवालों को बता दूं कि हिंदू शब्द इसी ‘हिंद’ से निकला है और ‘हिंदू राष्ट्र’ भी। याने फतवेबाज नेता अनजाने ही अपना नुकसान करने पर उतारु हैं। एक सादे-से नारे पर जिदबाजी किसी दिन अलगाववाद की जड़ साबित हो सकती है।
जहां तक ‘भारतमाता की जय’ को इस्लाम-विरोधी कहने की बात है, वह भी तर्कसंगत नहीं है। भारतमाता कोई मूर्ति नहीं है, कोई जड़ पदार्थ नहीं है, कोई बेजान चीज़ नहीं है। वह कोई देवी नहीं है। यदि उसकी कोई पूजा करे तो वह कोई बुतपरस्ती नहीं होती। बुतपरस्ती या मूर्तिपूजा तो आर्यसमाजी भी नहीं करते, सिख भी नहीं करते, ईसाई भी नहीं करते। जब उन्हें भारतमाता कहने में कोई एतराज़ नहीं तो मुसलमानों को कोई एतराज़ क्यों होना चाहिए? जैसा कि जवाहरलाल नेहरु ने लिखा है कि भारतमाता का मतलब सिर्फ भारत की जमीन ही नहीं है। उसका मतलब भारत के नदी, तालाब, समुद्र, आकाश हैं और सबसे ज्यादा उसके लोग-बाग हैं। लोग ही भारत माता हैं। माता, क्योंकि जननी होती है, जीवनदात्री होती है, इसीलिए उसे सर्वोच्च स्थान मिलता है। वह निराकार है। इस्लाम में भी अल्लाह निराकार है। उसका सबसे प्रिय नाम ‘रहमान’ है। रहमान शब्द ‘रहम’ से बना है। अरबी भाषा में ‘रहम’ धातु का अर्थ होता है-गर्भ। गर्भ कौन धारणा करता है? माता, जो रहमान है, रहीम है, दयालु है। अल्लाह ने अपने माता रुप को खुद कुरान-शरीफ में पेश किया है। और फिर सबसे बड़ी बात यह है कि ‘भारतमाता की जय’ में पूजा की बात कहीं नहीं है। क्या ‘जय’ का मतलब ‘पूजा’ होता है? यदि हां तो ‘जयहिंद’ में क्या जय नहीं है? अगर संकीर्ण नजरिये से देखें तो आप ‘जयहिंद’ को ‘भारतमाता की जय’ से भी अधिक इस्लाम-विरोधी मान बैठेंगे।
वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब ने यह कहकर सांप्रदायिक दृष्टि को मजबूती दी है कि ‘भारतमाता’ या ‘मातृभूमि’ जैसे शब्द भारतीय नहीं हैं। ये अभी सौ-डेढ़ सौ साल पहले यूरोप से उधार लिए गए हैं। वे मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर हैं। यदि उन्हें भारत के प्राचीन साहित्य का थोड़ा भी अंदाज होता तो वे ऐसी बात कभी नहीं कहते। ऋग्वेद में कहा गया है, ‘पृथिवीमाता द्यौर्मे पिता’ याने पृथ्वी मेरी मां और आकाश मेरा पिता है। अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त कहता है, ‘माता भूमिः पुत्रोहं पृथिव्याः’। राजा राम कहते हैं, सोने की लंका मुझे पसंद नहीं। जननी जन्मभूमि ही स्वर्ग से भी प्यारी है। भारत के हिंदू ही नहीं, पठान भी ‘मादरे-वतन’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। पैंगबर मुहम्मद के पोते इमाम सज्जाद ने भी वही कहा है, जो वेद में कहा गया है। धरती तुम्हारी मां है। इसकी रक्षा करो।
इस नारे के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस की राय एक ही रही। फर्क इतना था कि भाजपा जरा ज्यादा उग्र थी। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टियों की राय भिन्न थी। महाराष्ट्र विधानसभा से वारिस पठान की मुअत्तिली में कांग्रेसी विधायकों ने बढ़चढ़कर रोल अदा किया और मध्यप्रदेश के कांग्रेसी विधायक जीतू पटवारी ने ओवैसी के विरुद्ध निंदा-प्रस्ताव रख दिया। इतना तिल का ताड़ क्यों बना? क्योंकि हमारे जिम्मेदार नेतागण भी ज्यादा विचार नहीं करते। किसी के मुंह से कोई अनर्गल बात निकली नहीं कि वे उसे ले उड़ते हैं। टीवी चैनल तो इसी के भूखे होते हैं। घांस को बांस बना देना उनके बाएं हाथ का खेल है। नेतागण यह क्यों नहीं समझते कि विचारों में परमाणु बम से भी ज्यादा ताकत होती है। सिर्फ प्रचार पाने के लिए विचारों से खेल करना बहुत खतरनाक है।