भाजपा के नेताः सत्ता की कब्जी ?

भाजपा नेताओं को हुआ क्या है? कहीं उन्हें सत्ता का अजीर्ण तो नहीं हो गया है? अजीर्ण को बोलचाल की भाषा में ‘कब्जी’ कहते हैं लेकिन कुर्सी में बैठे-बैठे हमारे कुछ नेताओं को कब्जी नहीं, ‘कब्जा’ हो गया है। पहले नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस राज में भाजपा के नेताओं ने इतना जुल्म देखा है, जितना कि अंग्रेजों के राज में कांग्रेस ने भी नहीं देखा था। उनके बाद अब अरुण जेटली ने नरसिंहराव की पहलकदमी की मजाक उड़ाई है और कह दिया कि उनका आर्थिक उदारवाद तो महज़ मजबूरी था।

दोनों भाजपाइयों के ये बयान भाजपा-जैसी शानदार और अनुशासित पार्टी को मज़ाक का विषय बनाते हैं। मोदी के बयान से यह पता चलता है कि या तो उन्हें भारत की आजादी के इतिहास की मोटी-मोटी बातों का भी पता नहीं है या वे भाजपा (जनसंघ) के इतिहास से भी ठीक तरह से परिचित नहीं हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर अटलबिहारी वाजपेयी तक का नेहरु से नरसिंहराव तक ने जो सम्मान किया है, क्या उसकी जानकारी मोदी और जेटली को है?

आपात्काल के दौरान सिर्फ भाजपा ही नहीं, लगभग सभी पार्टियों के नेता पकड़े गए थे लेकिन अटलजी और मोरारजी की सुविधाओं का कितना ध्यान रखा जाता था, इसकी मुझे व्यक्तिगत जानकारी है। मेरे पिता भी इंदौर में जेल में थे। उनके साथ कई अन्य जनसंघी भी थे। किसी ने भी अंग्रेजों-जैसे जुल्म का जिक्र तक नहीं किया। मैं लगभग 60 साल पहले पहली बार जेल गया था और उसके बाद कई बार जेल गया हूं लेकिन मैंने सावरकरजी की तरह कभी कोल्हू नहीं पेला और अंग्रेजों के कैदियों की तरह जेल में कभी चक्की नहीं पीसी। पता नहीं, मोदी और जेटली ने कौन से जुल्म सहे हैं?

यह दुखद है कि नरसिंहराव को आज की कांग्रेस पार्टी भुलाने की कोशिश करती है लेकिन भाजपा राव की प्रशंसक रही है। राव साहब ने नेहरु की आर्थिक नीतियों को शीर्षासन करवाया और विदेश नीति के अनेक नए आयाम खोले, जिनकी भरपूर तारीफ खुद अटलजी किया करते थे। जेटली अब जो बोल रहे हैं, वह भाजपा की नहीं, सोनिया कांग्रेस की वाणी है। यह मां-बेटा कांग्रेस है। इस कांग्रेस की तुलना गांधी, सुभाष, पटेल और नेहरु की कांग्रेस से कैसे की जा सकती है? आजादी के बाद भी जिस कांग्रेस ने भारत पर राज किया है, उसकी तुलना अंग्रेजों के राज से करना इतिहास के बारे में अपने अज्ञान को बघारना है। देश को गर्व करना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र जिंदा ही नहीं है बल्कि दनदना रहा है। एशिया और अफ्रीका के कई देशों की तरह भारत में न संविधान बदला गया और न ही कोई फौजी तख्ता-पलट की नौबत आई। क्या इसका श्रेय हम कांग्रेस को नहीं देंगे?