बड़े नोटों पर प्रतिबंध परंतु आटा 25 रुपये किलो?

                     भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों पांच सौ तथा एक हज़ार रुपये की नोट का प्रचलन बंद किए जाने की अचानक घोषणा कर दी। जिस प्रकार हमारे देश में काला धन के विरुद्ध गत् लगभग एक दशक से मुहिम चलाई जा रही है देश के कई वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता इस मुहिम के अगुवाकार बने हुए हैं। तथा इन नेताओं द्वारा एक हज़ार तथा पांच सौ रुपये की प्रचलित भारतीय मुद्रा प्रतिबंधित किए जाने की ज़ोर-शोर से मांग की जा रही थी उसे देखकर इस बात का आभास तो निश्चित रूप से था कि भारत की यह सबसे बड़ी करंसी नोट किसी भी समय बंद की जा सकती है। बहरहाल गत् 8 नवंबर को सायंकाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस बहुप्रतीक्षित घोषणा को सार्वजनिक करते हुए इन करंसी को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस कदम से निश्चित रूप से मध्यम वर्गीय तथा एक नंबर में अपना लेखा-जोखा रखने वाले लोगों को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। परंतु ऐसे लोग जिन्होंने हज़ार व पांच सौ के नोट करोड़ों की संख्या में इधर-उधर लुका-छिपा के रखे हुए हैं उनके लिए इन नोटों की घोषणा करना तथा इतनी बड़ी संख्या में उनके पास इन बड़ी करंसी का भंडारण होना एक परेशानी का सबब ज़रूर बनेगा।

                   हालांकि यूपीए सरकार के शासनकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिंह पर भी इस बात का दबाव बनाया गया था कि एक हज़ार व पांच सौ की नोट का प्रचलन बंद कर दिया जाए क्योंकि ऐसा कर काले धन की जमाखोरी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। ज़ाहिर है डा० मनमोहन सिंह एक विश्व के जाने-माने अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने जल्दबाज़ी में इस प्रकार का कोई कदम उठाने के बजाए पहले इसके दूरगामी परिणामों की समीक्षा की तथा संभवत: वे इसी नतीजे पर पहुंचे होंगे कि ऐसा करना काला धन जमा करने जैसी विकट समस्या का संपूर्ण निदान अथवा समाधान नहीं हो सकता। लिहाज़ा उस समय भी अफवाहें उडऩे के बावजूद इन बड़ी करंसी पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया। ज़ाहिर है मोदी सरकार ने भी इस विषय पर गंभीरतापूर्वक सोचा-समझा होगा उसके बाद ही यह निर्णय लिया गया होगा। जैसाकि खबरों में सुनाई दे रहा है कि सरकार शीघ्र ही दो हज़ार व पांच सौ रुपये के नोट की एक नई श्रृंखला शुरु करेगी तो आखिर इस बात की क्या गारंटी है कि काला धन जमा करने को अपना मुख्य व्यवसाय समझते आ रहे लोग या भ्रष्ट व जमाखोर तबका भविष्य में बाज़ार में आने वाली इन दो हज़ार व पांच सौ की नोट की जमाखोरी नहीं करेगा या इनका काले धन के रूप में भंडारण नहीं करेगा?

                   ऐसा माना जा रहा है कि देश के कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इन्हीं बड़ी नोटों के माध्यम से काला धन पार्टी के चंदे के रूप में इधर से उधर होने की संभावना थी। अब उम्मीद की जा रही है कि इन चुनावों में काले धन के बेतहाशा आवागमन पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा। मोदी सरकार के इस कदम का प्रभाव निश्चित रूप से उस देश विरोधी नेटवर्क पर भी पड़ेगा जो भारत में इन्हीं दो बड़ी करंसी की जाली नोट देश में प्रसारित करने में जुटा था। हद तो यह हो गई थी कि इन नकली करंसी का प्रसार इतना अधिक हो गया था कि खबरों के अनुसार कहीं-कहीं एटीएम व बैंक से भी ग्राहकों को न$कली नोट मिलने लगे थे। ज़ाहिर है यह राष्ट्रविरोधी नेटवर्क अब अपनी बनाई नकली करंसी को आग लगाने के सिवा और कुछ नहीं कर सकेगा। इन बड़ी करंसी का इस्तेमाल आतंकवादी संगठनों द्वारा भी किए जाने की खबरें थीं। सरकार के इस कदम से आतंकी संगठनों व इनके आर्थिक मददगारों को भी बड़ा झटका लगेगा। देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला हवाला व्यापार भी इस फैसले से प्रभावित होगा। परंतु कुल मिलाकर देश का आम व गरीब आदमी सरकार के इस फैसले से प्रभावित होता दिखाई नहीं दे रहा है।

                     जिस समय प्रधानमंत्री द्वारा हज़ार व पांच सौ की नोट बंद किए जाने संबंधी उनके भाषण का सीधा प्रसारण टेलीविज़न के विभिन्न चैनल्स पर किया जा रहा था उसी समय कुछ रेहड़ी व रिक्शा चालकों तथा मज़दूर वर्ग के लोगों से इस विषय पर बात करने की कोशिश की गई तो उनके विचार जानकर भारत के आम लोगों की इस विषय पर होने वाली प्रतिक्रिया का सही अंदाज़ा हुआ। इनमें से कई लोगों ने यह खबर सुनने के बाद तपाक से यही जवाब दिया कि मेरे पास तो कभी एक हज़ार या पांच सौ की नोट भूले-भटके भी नहीं आई। लिहाज़ा यह नोट चले या न चले उससे हमारी सेहत पर आखिर क्या फर्क पड़ता है। जबकि कुछ लोगों ने इस खबर पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए यह कहा कि इन बड़ी नोटों की जमाखोरी अथवा इनका भंडारण आखिर करते कौन लोग हैं?  यह लोग रिश्वतखोर,जमाखोर,भ्रष्ट अधिकारी,भ्रष्ट राजनेता,  टैक्स चोरी करने वाले व्यवसायी,आयकर न घोषित करने वाले व्यापारी ही होते हैं और ऐसे लोगों के संबंध सत्ता से जुड़े होते हैं ज़ाहिर है जिन धनाढ्य लोगों के हाथ लंबे होते हैं तथा सत्ता में जिनके रुसूक़ बने होते हैं वहीं लोग नोटों का भंडारण भी करते हैं।। और तो और सही मायने में पिछले दरवाज़े से सत्ता का संचालन ही ऐसे ही दो नंबरी भ्रष्ट व जमाखोर लोगों के माध्यम से ही होता है। लिहाज़ा सरकार ने यदि कल तक इनको दोनों हाथों से देश का धन लूटने का अवसर दिया और एक दिन उन्हीं नोटों को प्रतिबंधित भी कर दिया तो इससे उन भ्रष्ट लोगों पर भी आखिर क्या फर्क पडऩे वाला है?

                   देश के आम आदमी का सरोकार तो इससे भी कहीं ज़्यादा बल्कि सर्वप्रथम देश में बढ़ती हुई मंहगाई से है। देश की आम जनता रोज़मर्रा के इस्तेमाल की वस्तुओं की कीमतों को लेकर ज़्यादा चिंतित रहती है। उसका सरोकार बड़ी करंसी के प्रतिबंध से कम और आटे-दाल की बढ़ती कीमतों से अधिक है। जो प्रधानमंत्री बड़ी करंसी को बंद करने की घोषणा के बाद पूरे देश की वाहवाही लूटने की कोशिश में लगे हुए हैं उन्हें इस बात को भी याद रखना चाहिए कि जिस प्रकार देश में पिछले दिनों गेहूं के आटे की कीमत अचानक 25 रुपये प्रतिकिलो तक बढ़ गई है ऐसा देश में पहले कभी नहीं हुआ। दिनभर मेहनत मज़दूरी करने के बाद दो -तीन सौ रुपये की दिहाड़ी कमाकर शाम को अपने परिवार के लिए आटा-दाल, तेल सब्ज़ी $खरीद कर घर ले जाने वाले व्यक्ति का पहला सरोकार इन खाद्य वस्तुओं की कीमतों से है। जिस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी उस समय मोदी जी पूरे देश में घूम-घूम कर मंहगाई पर नियंत्रण न पाने के लिए केंद्र सरकार को कोसते रहते थे तो दूसरी तरफ केंद्र की सरकार राज्यों को मंहगाई रोकने व जमाखोरी पर लगाम लगाने का जि़म्मेदार ठहराती रहती थी।

                   आज तो देश में भी भाजपा की बहुमत सरकार है और देश के विभिन्न राज्यों में भी भाजपा की ही सरकारें हैं। ऐसे में आटे जैसी सबसे ज़रूरी वस्तु का मूल्य अचानक इतना बढ़ जाने का क्या अर्थ है। क्या दाल तो क्या रिफाईंड,डालडा,साबुन,तेल,मसाले,सब्जि़यां लगभग सभी चीज़ों की कीमतें आसमान को छू रही हैं। पैट्रोल व डीज़ल भी एक बार फिर मंहगा हो गया है। ऐसी उम्मीद की जाने लगी है कि ईंधन में हुई इस मूल्य वृद्धि के चलते लोहे व सीमेंट आदि के मूल्य भी बढ़ सकते हैं। गोया देश का आम आदमी जिसने मोदी सरकार के सत्ता में आने पर मंहगाई कम होने की का$फी उम्मीदें लगा रखी थीं उन्हें मंहगाई से निजात के नाम पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। बजाए इसके मंहगाई और भी अधिक आसमान छूने लगी है। यूपीए सरकार के समय जिस गेहूं  के आटे की कीमत 14-15 रुपये प्रति किलो थी वही आटा आज 25 रुपये प्रति किलो की कीमत पार कर चुका है। ऐसे में एक हज़ार व पांच सौ की नोट प्रतिबंधित होने से आम आदमी के आटे व दाल की बढ़ती कीमतों से क्या सरोकार? बहरहाल,मंहगाई पर नियंत्रण न सही परंतु जमाखोरी कालाबाज़ारी व काले धन के संग्रह के विरुद्ध सरकार का बड़ी करंसी को प्रतिबंधित करने का फैसला कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाला वक्त ही बता सकेगा। एक हज़ार की नोट बंद कर दो हज़ार रुपये की नोट चलाने के फैसले का धरातल पर क्या असर पड़ेगा, किस प्रकार इन फैसलों से काला धन का संग्रह रोका जा सकेगा यह बातें भविष्य में पता चलेंगी। ज़ाहिर है यदि इस फैसले के परिणाम सकारात्मक हुए तो इसका श्रेय मोदी सरकार को दिया जाना चाहिए। और यदि इस फैसले के बावजूद परिणाम वही ढाक के तीन पात रहे तो इसे एक फुज़ूल का अभ्यास ही कहा जाएगा। वैसे ज़्यादा बेहतर व जनहितकारी उपाय तो यही होता कि प्रधानमंत्री इन बड़ी करंसी को बंद करने से पहले गेहूं के आटे की तथा आम लोगों की रसोई से जुड़ी ज़रूरी चीज़ों की कीमतों को नियंत्रित करते।