बनियों को ही अपराधी / भ्रष्ट क्यों कहता है?

सरयू राय ने भाजपा को गुलाम समझ बैठा

 अब वह भस्मासुर बनकर  भाजपा का ही कब्र खोदेगा

 बनियों को ही अपराधी / भ्रष्ट क्यों कहता है?

 अपनी जाति को अपराधी और भ्रष्ट क्यों नहीं कहता सरयू राय?

 

 आचार्य विष्णु हरि सरस्वती

 

रयू राय भाजपा को अपना गुलाम समझ बैठा? वह अहंकार पाल लिया की भाजपा उससे पूछकर ही  लोकसभा का टिकट बाटें?  सरयू राय बनियों को ही अपराधी और भ्रष्ट क्यों कहता है, कभी रधुवर दास तो कभी बन्ना गुप्ता और अब ढूलू महतो को अपराधी और भ्रष्ट कह रहा है, इनके खिलाफ जातिवादी अभियान चला रहा है, कहता है कि ढूलू महतो को धनबाद से टिकट देकर भाजपा ने महापाप किया है, हम इस महापाप को पराजित कर भाजपा का संहार करेंगे। क्या झारखंड में एक मात्र ढूलू महतो ही अपराधी हैं? क्या ढूलू महतो सही में बर्बर अपराधी हैं? सरयू राय की राजपूत जाति में एक से बढ कर एक अपराधी और माफिया हैं पर सरयू राय उन्हें अपराधी नहीं कहते हैं,उनके खिलाफ चुनावी ताल नहीं ठोकते है, आखिर क्यों? धनबाद में ही सूर्यदेव सिंह का परिवार अपराध की दुनिया में कुचर्चित रहा है, कोयलांचल में राजेन्द्र सिंह का परिवार दबंग रहा है, पलामू में कमलेश सिंह जैसे दर्जनों नेता दबंग रहे हैं, गिरिनाथ सिंह घर कब्जा के आरोपी रहें हैं, सामंती दुनिया में सरयू राय की जाति टाॅप पर रही है, निर्मल महतो के हत्या के आरोपी भी बिहारी दबंग थे पर इनके खिलाफ सरयू राय की वाणी चलती नहीं, सरयू राय इनके खिलाफ चुनावी ताल ठोकते नहीं? भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने ठीक ही कहा है कि ढूलू महतो अपराधी नहीं हैं और सरयू राय अपने आप को जज नहीं समझंे।

          सरयू राय की चिंता यह है कि झारखंड में उनकी जाति राजपूत को टिकट से वंचित क्यों किया गया और बनियों को प्राथमिकता क्यों दी गयी? झारखंड में बनियों को दो टिकट मिला है। राष्टीय स्तर पर बनियों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है। बिहार में एक, मध्य प्रदेश में एक, राजस्थान में एक,महाराष्ट में एक, हरियाणा में एक, दिल्ली में एक और उत्तर प्रदेश में दो टिकट देकर बनियों को निपटा दिया गया। इसके विपरीत राष्टीय स्तर पर भाजपा ने सर्वाधिक टिकट राजपूतों और ब्राम्हणों को दिया है। इनकी संख्या दर्जनों में हैं। फिर भी ये असंतुष्ट हैं।

         सरयू राय की असली पहचान क्या है, उसकी असली शक्ति क्या है, क्या वह अब भस्मासुर बन कर भाजपा का संहार करेंगे, सरयू राय की वर्तमान भस्मासुर राजनीति के कारण भाजपा का असली जनाधार अलग होकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की तरफ जा सकता है? निश्चित तौर पर सरयू राय भाजपा के लिए भस्मासुर ही हैं। भाजपा के नेताओं ने ही अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए उसे भस्मासुर बनाया। पहले रघुवर दास को निपटाने के लिए भाजपा नेताओं ने सरयू राय को आगे बढाया और भस्मासुर बनाया और अब सरयू राय धनबाद से चुनाव लडने की घोषणा कर भाजपा को ही निपटाने की घोषणा कर डाली। अब उसके निशाने ढूलू महतो है। जानना यह जरूरी है कि ढूलू महतो को भाजपा ने धनबाद से अपना प्रत्याशी बनाया है। ढूलू महतो को प्रत्याशी बनाये जाने को लेकर सरयू राय ने मोर्चा खोला है और कहा है कि ढूलू महतो अपराधी है, इसलिए वे धनबाद से चुनाव लडेंगे और भाजपा को हरायेंगे। सरयू राय के साथ भाजपा विरोधी शक्तियां साथ होंगी, उपनिवेशवादी और घुसपैठिये बिहारी उनके साथ होंगे। धनबाद का लोकसभा चुनाव बाहरी और स्थानीय का मुद्दा हावी रहेगा, संधर्ष में रहेगा, इसके साथ ही साथ सरयू राय की जाति राजपूत भी उनके साथ खडी रहेगी।

                    सरयू राय की राजनीति के चरित्र चित्रण आवश्यक है, उसकी विचारधारा की पहचान जरूरी है, उसकी राजनीतिक चरित्र और मानसिकता की पहचान जरूरी है, भाजपा की राजनीति में उसके मददगारों की भी पहचान जरूरी है, बिहार छोड कर झारखंड की राजनीति में उसकी सक्रियता की पहचान भी जरूरी है, रधुवर दास के पीछे पडने के उसके चरित्र का भी लेखा-जोखा तैयार करने की जरूरत है, झारखंड के लूटेरे तत्वों की शक्ति की भी पहचान की जरूरत है, झारखंड को बिहार के अपराधकर्मियों की शरणस्थली बनाने के राजनीतिक खेल पर भी द ृष्टि डालने की जरूरत है। भूमि माफिया, ठेका माफिया की बढती बाढ को भी देखने की जरूरत है।

                  निश्चित तौर पर सरयू राय की पहचान एकात्मक मानववाद की नहीं है, उसकी पहचान राष्ट की अवधारणा की नही है, भाजपा के सिद्धांतों और चरित्रों की नहीं है, उसकी पहचान झारखंड की देशज संस्कृति की भी नहीं है। फिर उसकी पहचान किसकी है? उसकी पहचान बिहार की लूटरी संस्कृति की है और उनकी मानसिकता में उपनिवेशिक घृणा का वास है। तथाकथित सेक्युलरवाद उसकी राजनीति की भाषा है। उसकी असली और सर्वश्रेष्ठ पहचान लालूवाद में निहित है। सरयू राय कभी लालू यादव के किचन कैबिनेट के सदस्य हुआ करते थे, लालू के समर्थकों में गुलजार थे, कूर्परी ठाकुर के भी साथ थे, कर्पूरी ठाकुर से अलग होकर ये लालू के मित्र बने थे, सरयू राय को कर्पूरी ठाकुर के अति पिछडावाद पसंद नहीं आया था और सरयू राय इसी कारण कर्पूरी ठाकुर से घृणा करते हुए अलग होकर लालू यादव के साथ आ गये। लेकिन लालू से भी जातिवाद को लेकर इनकी इच्छाएं पूरी नहीं हुईं। लालू मुख्यमंत्री बनने के साथ ही साथ सवर्णवाद के खिलाफ बिगुल फूंका था और भूरा बाल साफ करो का नारा दिया था। भूरा बाल साफ करो मतलब ब्राम्हण, राजपूत, कायस्थ और भूमिहार से सावधान रहो। इस प्रकार बिहार में इनकी राजनीति अंधेरे में डूब गयी थी और इनका ऐसा कोई जनाधार भी नहीं था। एक बार सरयू राय ने एक चुनाव के दौरान महुआडंाड में भाजपा के खिलाफ गुंडई चलायी थी, भाजपा की सभा में अडचन डाली थी, अपना राॅब दिखाया था लेकिन भाजपा के नेता श्रवण कुमार ने सरयू राय के हाथ से माइक छीनकर इंदर सिंह नामधारी की सभा करायी थी और सरयू राय को आईना दिखाया था।

                       सरयू राय को ऐसी परिस्थितियों में भाजपा की ओर इन्हें झुकने के लिए विवश किया, प्रेरित किया। भाजपा की राजनीति में भीष्म पितामह मानेजाने वाले कैलाशपति मिश्रा इनको पसंद नहीं करते थे और इनकी राजनीति को पहचानते थे और भाजपा के लिए नुकसान समझते थे। लेकिन गोविन्दाचार्य ने इन्हें प्रक्षय दिया। फिर भी कैलाशपति मिश्रा की नाराजगी जारी रही। फिर बीच का रास्ता निकाला गया, सुशील कुमार मेादी इनके मददगार बने, इन्हें बिहार नहीं बल्कि झारखंड की राजनीति में स्थापित किया गया। झारखंड की राजनीति में स्थापित होने के साथ ही साथ इन्होंने बिहार के सवर्णो को खूब खाद पानी दिया और झारखंड की चल-अचल संपत्तियों पर येन-केन-प्रकारेन कब्जा करने के लिए प्रेरित किया। ताकि इनकी राजनीति का समर्थन वर्ग मजबूत बन सके। रांची, जमशेदपुर और धनबाद तीन ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर बिहारियों का राजनीति, ठेका, जमीन के कारोबार, गुंडई आदि में जंगलराज चलता है। जहां पर इनकी जाति और सवर्ण लोगों के खिलाफ बोलने का अर्थ यह है कि जान से हाथ धोना या फिर संकट का आमंत्रण देना। यही कारण है कि सरयू राय ने अपनी राजनीति का केन्द्र जमशेदपुर को बनाया था। जमशेदपुर में पहले बन्ना गुप्ता और फिर रधुवर दास को इन्होने अपना शिकार बनाया।

               सरयू राय की रघुवर दास से असली घृणा के कारण क्या हैं। रधुवर दास निश्चित तौर पर झारखंड की देशज राजनीति के प्रतीक हैं। इनकी राजनीति में देशज शब्द की प्रधानता थी। अपनी सरकार के दौरान रघुवर दास ने बिहारियों की गुंडई और वर्चस्व को खाद और पानी देने से इनकार कर दिया था। झारखंड में गंुडई और अपराध के साथ ही साथ नक्सल पर नकेल कसा था। देशज विकास की अवधारणा को मजबूत किया था और विकास की अवधारणाओं में स्थानीय लोगों की आवश्यकता प्रबल हुई थी। स्थानीय लोगों की भूमि पर सरकारी संरक्षण अधिनियम का संरक्षणवाद कायम हुआ था। इसका सुखद परिणाम यह हुआ था कि स्थानीय लोगों की भूमि लूटेरी मानसिकता से बच गयी। इसके अलावा रघुवर दास ने ईसाई मिशनरियों की गुंडई और धर्मातंरण के खेल के खिलाफ भी कडे कदम उठाये थे, जिसके कारण ईसाई समुदाय साजिश कर आदिवासी उत्पीड़न का झूठा हथंकडा अपनाया था। सबसे बडी बात यह है कि रघुवर दास के कार्यकाल में जितना विकास हुआ उतना विकास कभी भी नहीं हुआ था, अगर रघुवर दास द्वारा कराये गये विकास कार्यो का आज भी सही से आकलन और पहचान हो तो फिर रघुवर दास विकास पुरूष के रूप में स्थापित होंगे। रघुवर दास ने मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों की भी सौगात दी थी जिसका संचालन अभी जेएमएम सरकार ठीक ढंग से नहीं कर रही है।

              यह झूठ है कि सरयू राय ने अपने बल पर रघुवर दास को जमशेदपुर में हराया था? सही तो यह है कि रधुवद दास खुद आंतरिक साजिश के शिकार हुए थे और भाजपा के अंदर जातिवाद के कीडों के शिकार हुए थे। भाजपा के सवर्ण जाति के नेताओं को यह स्वीकार नहीं हो रहा था कि एक तेली जाति का व्यक्ति मुख्यमंत्री बना हुआ है और उनके साथ तन कर खडा रहता है। रघुवर दास की प्रशंसा इसलिए भी होनी चाहिए कि उसने किसी के सामने झुकने या फिर किसी का हथकंडा बनने से इनकार कर दिया था, गुलाम बनना भी उन्हें स्वीकार नहीं था। राजनीतिक हमलों का जवाब भी रघुवर दास वीरता के साथ देते थे। पूरे बिहार के सवर्ण जाति के लोग जमशेदपुर में डेरा जमाया था, पैसा पानी की तरह बहाया था और अस्तित्व संरक्षण की बात फैलायी थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भाजपा के जाति वादी नेताओं ने भी सरयू राय को साथ दिया था। भाजपा संगठन के लोग भी सरयू राय के साथ खडे हो गये थे। रघुवर दास ने जिन लोगों को अपनी सरकार के मीडिया विभाग में बैठाया था, सलाहकार जैसे बडे पद दिये थे वे भी जाति और सवर्ण मानसिकता से ग्रसित होकर सरयू राय के साथ खडा हो गये थे। रघुवर सरकार के मीडिया हेड ने सरयू राय की बडी मदद की थी। ऐसी परिस्थिति में रधुवर दास चुनाव कैसे नहीं हारते। धनबाद में भी पर्दे के पीछे से सरयू के पक्ष में भाजपा के जातिवादी लोग ही खेल खेलेंगे और भाजपा का संहार करेंगे।

                     एक बडी बात यह है कि सरयू राय के लिए हर समय बनिया ही निशाने पर क्यों रहते हैं। सबसे पहले उन्होंने बन्ना गुप्ता को निशाना बनाय, बन्ना गुप्ता के चरित्र हनन की कोशिश की,बन्ना गुप्ता को जमींदोज करने की कोई कसर नहीं छोडी, लेकिन बन्ना गुप्ता ने अपनी जनशक्ति के बल पर सरयू राय का सामना किया और अडिग रहे। रधुवर दास के बाद अब ढुलू महतो के खिलाफ सरयू राय पडा हुआ है। ढुलू महतो तेली जाति से आते हैं। तीन बार से वे विधायक है, उनके पास जनाधार है। ढुलू महतों जहां से राजनीति करते हैं वहां पर कोयला और जमीन माफिया का राज होता है। बडे से बडे कोयला माफिया हुए जिनके जंगल राज के किस्से पूरे देश में सुनाई देते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर का एक कोयला माफिया निकटतम सहयोगी हुआ करते थे।

           झारखंड में आदिवासी के बाद बनिया ही सबसे ज्यादा आबादी रखने वाली जाति है। ग्रामीण और पहाडी क्षेत्रों में बनियों की उप जाति तेली, सूडी, जायसवाल और रौनियारों का भरमार है। ग्रामीण और पहाडी क्षेत्रों में ईसाई और कसाई का सामना कोई ब्राम्हण, राजपूत या भूमिहार जाति नहीं करती है बल्कि तेली, सूडी, जायसवाल और रौनियार ही करते हैं। बनिया भाजपा की जान और अस्तित्व हैं, इस जातिवाद के दौर में भी 99 प्रतिशत बनिया अपनी जाति के उम्मीदवार को भी खारिज कर भाजपा को वोट देते हैं। जनसंघ या फिर संघ का पालने-पोषण में बनियों की भूमिका और योगदान कौन भूला सकता है, सनातन की सुरक्षा और समृद्धि में बनियांें का बलिदान सर्वश्रेष्ठ और अनुकरणीय रहा है। हिन्दूवादी संगठनों की सक्रियता आज भी बनियों की कमाई और दान पर जारी रहती है। झारखंड के ग्रामीण और पहाडी क्षेत्रों में स्थित बनियों के बीच अगर संदेश गलत जाता है तो फिर इसका खामियाजा भाजपा को ही उठाना पडेगा, क्योंकि सरयू राय की मददगार भाजपा के ही जातिवादी नेता हैं।

           भाजपा को सरयू राय की चरणवंदना करने की जरूरत क्यों हैं, उसके सामने समर्पण करने की जरूरत क्यों हैं? सरयू राय की राजनीति से भाजपा सावधान नहीं हुई तो फिर वह भाजपा की कब्र खोद देगा, उसकी ब्लैमैलिंग की राजनीति बढती ही चली जायेगी। इसलिए भाजपा को मजबूति के साथ ढूलू महतो का साथ देना चाहिए। ढूलू महतो की जीत में ही भाजपा की भलाई है। क्या भाजपा सरयू राय को सबक सिखाने के लिए तैयार है? असली प्रश्न यही है।

 

संपर्क मोबाइल …   9315206123

ये लेखक के अपने निजी विचार हैं 

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