छात्र संघ चुनाव नतीजों का संदेश, जेन जेड मोदी के साथ

अजय कुमार 

     दिल्ली और कई राज्यों में हुए छात्र संघ चुनावों ने एक बार फिर देश की राजनीति के भविष्य की दिशा को लेकर बड़े संकेत दिए हैं। इस बार चुनावी नतीजों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का दबदबा साफ तौर पर देखने को मिला है, जबकि कांग्रेस से जुड़ी एनएसयूआई और वामपंथी दलों की छात्र इकाइयाँ बुरी तरह पिछड़ गईं। छात्र राजनीति को हमेशा से राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी माना जाता रहा है। यही वजह है कि इन नतीजों को केवल छात्र संघ की परिधि में सीमित कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसका असर आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी दिखाई देगा।छात्र राजनीति भारतीय लोकतंत्र का एक अहम आधार रही है। आज़ादी के बाद से ही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में होने वाले छात्र संघ चुनाव के नतीजे यह बताते रहे हैं कि समाज की नई पीढ़ी किस दिशा में सोच रही है। यही कारण है कि एबीवीपी की कामयाबी को भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़े उत्साहवर्धक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। हाल के वर्षों में जिस तरह से बीजेपी ने नई पीढ़ी में अपनी पकड़ मजबूत की है, यह नतीजे उसी अभियान के विस्तार की तरह माने जा रहे हैं।

     कहा जाता है कि विश्वविद्यालय का माहौल समाज का आईना होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में एबीवीपी की जीत इस बात की गवाही देती है कि युवाओं में राष्ट्रवादी सोच, सांस्कृतिक गौरव और भारतीय परंपरा के प्रति झुकाव तेजी से बढ़ा है। बीजेपी ने केंद्र की सत्ता में रहते हुए नीतियों और योजनाओं में युवाओं को लगातार प्राथमिकता दी है। स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने युवाओं में विश्वास जगाया है कि सरकार उनके भविष्य को लेकर गंभीर है। यही भरोसा छात्र संघ चुनावों में सीधे-सीधे दिख रहा है।दूसरी ओर कांग्रेस और वामपंथी छात्र संगठनों की हालत लगातार कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस नेतृत्व पर आरोप है कि वह नई पीढ़ी से संवाद स्थापित करने में नाकाम रही है। पार्टी जिस तरह से युवाओं की आकांक्षाओं और सपनों को समझने में चूक कर रही है, उसका परिणाम छात्र संघ चुनावों में साफ दिख रहा है। एनएसयूआई के पास वैचारिक स्पष्टता का अभाव है और संगठन की ज़मीनी पकड़ लगातार कमजोर हुई है। वामपंथी राजनीति की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि वह पुराने नारों और बोझिल विमर्श की जकड़ से बाहर नहीं निकल पा रही। बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा और आधुनिकता के बीच युवाओं को वामपंथी राजनीति में प्रेरणा कम, निराशा ज्यादा दिखाई देती है।

     इन चुनावों का बड़ा असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई पीढ़ी को अपने साथ जोड़ने की जिस मुहिम पर काम कर रहे हैं, उसमें ऐसे नतीजे उनके लिए शक्ति गुणन की तरह हैं। एबीवीपी की जीत यह संदेश देती है कि विश्वविद्यालयों में राष्ट्रवादी विचारधारा गहराई से जड़ें जमा रही है, और वह आने वाले वर्षों में राजनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए बैकअप शक्ति बन सकती है। मोदी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि मौजूदा दौर में युवा स्वयं को पार्टी की नीतियों से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा है। यह जुड़ाव केवल वोट बैंक की राजनीति तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज में उस सोच की गहराई को बढ़ाएगा जिसे बीजेपी लंबे समय से विकसित कर रही है।कांग्रेस और वामपंथी दलों की हार से यह साफ झलक उभरती है कि उनके लिए आने वाले चुनाव और कठिन होंगे। यदि नई पीढ़ी उनका साथ छोड़ रही है, तो यह केवल चुनावी पराजय नहीं बल्कि उनके वैचारिक आधार को भी खोखला बना देगा। कांग्रेस को जिस तरह से लगातार राज्यों और केंद्र में हार का सामना करना पड़ा है, उसके पीछे एक बड़ी वजह युवाओं का मोहभंग है। अब छात्र संघ चुनावों के ये नतीजे उस प्रवृत्ति को और स्पष्ट कर रहे हैं।

     राजनीति में यह माना जाता है कि जो युवा को साध लेता है, वह भविष्य को साध लेता है। बीजेपी ने संगठित तरीके से एबीवीपी को मैदान में उतारा है और लगातार विश्वविद्यालयों में उसकी पकड़ मजबूत करने का काम किया है। यही वजह है कि आज एबीवीपी छात्र राजनीति की सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है। दूसरी तरफ एनएसयूआई और वाम छात्र संगठन बिखरी हुई रणनीति और कमजोर संगठन क्षमता के शिकार हैं।इन चुनाव नतीजों से यह भी साबित होता है कि देश का राजनीतिक मानस परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहा है। एक समय था जब दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे केंद्र वामपंथी राजनीति के गढ़ माने जाते थे। लेकिन आज वही संस्थान बदलते समय का संकेत दे रहे हैं। अब राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक गौरव और आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दे छात्रों की प्राथमिकता बन चुके हैं। यह बदलाव मोदी युग की राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप है। आने वाले वर्षों में बीजेपी को इसका बहुत फायदा मिलेगा। जब ये छात्र पढ़ाई पूरी कर राजनीति, प्रशासन, मीडिया, टेक्नोलॉजी या किसी भी क्षेत्र में जाएंगे, तो उनकी सोच और झुकाव भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में काम करेगा। वही दूसरी तरफ कांग्रेस और वामपंथी दलों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि उनके पास नई पीढ़ी को आकर्षित करने का कोई कारगर तरीका नजर नहीं आ रहा।छात्र संघ चुनावों के नतीजे यह संदेश दे रहे हैं कि भारत की नई पीढ़ी मोदी और बीजेपी की राह पर बढ़ रही है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की शक्ति और व्यापक होगी, जबकि कांग्रेस और वामपंथी दल और किनारे लग जाएंगे।

                                                         (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

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