
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर एक और सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंने दावा किया कि उनके पास ऐसी बड़ी चीजें हैं, जिनके खुलासे से भारत का चुनाव आयोग कठघरे में खड़ा हो सकता है। यह बयान न केवल उनकी पिछली टिप्पणियों की निरंतरता है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और इसकी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाता है। राहुल गांधी ने संसद परिसर में मीडिया से रूबरू होते हुए दावा किया कि उनके पास मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर ठोस सबूत हैं, जो चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने संकेत दिया कि ये सबूत इतने विस्फोटक हैं कि इनके सार्वजनिक होने पर चुनाव आयोग की साख खतरे में पड़ सकती है। हालांकि, उन्होंने विशिष्ट विवरण या सबूतों को तत्काल सार्वजनिक नहीं किया, जिससे उनके बयान पर सवाल उठ रहे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया और महाराष्ट्र व कर्नाटक के हाल के चुनावों में मतदाता सूची को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है।
राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी ने कर्नाटक के एक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूची की गहन जांच की और पाया कि 45, 50, 60, और 65 वर्ष की आयु के हजारों नए मतदाता पंजीकृत किए गए हैं, जो संदिग्ध है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने इन गड़बड़ियों को नजरअंदाज किया और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल रहा। उनके इस बयान ने विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम किया है, खासकर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) जैसे सहयोगियों ने उनके दावों का समर्थन किया है।
बहरहाल, राहुल गांधी का यह पहला अवसर नहीं है जब उन्होंने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने मतदाता सूची में धांधली और फर्जी वोटिंग के आरोप लगाए थे। तब उन्होंने महाराष्ट्र में मतदाता संख्या में असामान्य वृद्धि का दावा किया, जिसमें पांच महीनों में 41 लाख नए मतदाता जोड़े गए, जबकि पिछले पांच वर्षों में केवल 31 लाख की वृद्धि हुई थी। उन्होंने इसे वोट चोरी का ब्लूप्रिंट करार दिया और आरोप लगाया था कि फर्जी मतदाताओं को जोड़कर और मतदान प्रतिशत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर धांधली की गई।इसके अलावा, राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से डिजिटल मतदाता सूची और मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करने की मांग की थी, जिसे आयोग ने गोपनीयता और सुरक्षा कारणों से खारिज कर दिया। उनके इन दावों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग ने निराधार और असंवैधानिक बताते हुए चुनाव आयोग को बदनाम करने की कोशिश करार दिया। बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने तो यह भी कहा कि राहुल गांधी को अपने पिता राजीव गांधी द्वारा पारित कानूनों की जानकारी नहीं है, जो मतदाता सूची पुनरीक्षण को नियंत्रित करते हैं।
चुनाव आयोग का राहुल गांधी को उत्तर
चुनाव आयोग ने ठोस सबूत के अभाव में हर बार राहुल गांधी के आरोपों को बार-बार खारिज किया है। आयोग ने कहा कि कर्नाटक लोकसभा चुनाव 2024 की मतदाता सूची को लेकर कांग्रेस ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 24 के तहत कोई अपील दायर नहीं की, जो एक वैध कानूनी उपाय था। इसके अलावा, 2024 के लोकसभा चुनाव में हारे हुए किसी भी कांग्रेस उम्मीदवार ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 80 के तहत चुनाव याचिका दायर नहीं की। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के साथ साझा की जाती है, और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं।
आयोग ने राहुल गांधी के बयानों को अनुचित और धमकी भरा बताया और कहा कि एक संवैधानिक संस्था को निशाना बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके बावजूद, आयोग ने राहुल गांधी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के आरोपों पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया, लेकिन इस पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी के बयानों ने भारतीय चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनके दावों ने विपक्षी दलों को एक मंच पर ला दिया है, जो चुनाव आयोग से अधिक पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। हालांकि, उनके सबूतों की कमी और विशिष्ट विवरण न देने की रणनीति ने उनके दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। अगर राहुल गांधी के पास वास्तव में 100 प्रतिशत पुख्ता सबूत हैं, जैसा कि उन्होंने दावा किया है, तो इन्हें सार्वजनिक करना या कानूनी प्रक्रिया के तहत प्रस्तुत करना उनके और उससे भी अधिक देश के लिए महत्वपूर्ण होगा। दूसरी ओर, चुनाव आयोग की ओर से बार-बार खारिज किए जाने और कानूनी उपायों का उपयोग न करने के लिए कांग्रेस की आलोचना ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है। यह संभव है कि राहुल गांधी का यह बयान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो, जिसका उद्देश्य विपक्षी मतदाताओं को एकजुट करना और सत्तारूढ़ दल पर दबाव बनाना हो। हालांकि, बिना ठोस सबूतों के इस तरह के गंभीर आरोप संवैधानिक संस्थाओं के प्रति जनता का भरोसा कमजोर कर सकते हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।
लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी के हालिया और पूर्व के बयानों ने भारत में चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। उनके दावे, हालांकि गंभीर हैं, अभी तक ठोस सबूतों के अभाव में विवादास्पद बने हुए हैं। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए अपनी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता का दावा किया है। इस स्थिति में, राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वे अपने दावों को कानूनी या सार्वजनिक मंच पर साबित करें, ताकि उनकी विश्वसनीयता बनी रहे। जनता का भरोसा कायम रहे। यह विवाद न केवल राजनीतिक बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख से जुड़ा है, और इसका समाधान दोनों पक्षों के लिए एक चुनौती बना रहेगा।