ओवैशी को भी जेल में डालो

   आचार्य विष्णु हरि

     क्या असदुउद्दीन ओवैशी कानून से उपर है? क्या उसे हेट स्पीच की कानूनी छूट मिली हुई है? हेट स्पीच की उसकी ये करतूत और दुकानदारी कब तक चलेगी? क्या ओवैशी की भडकाउ और विषैला भाषण सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान से परे है? सुप्रीम कोर्ट भी क्या ओवैशी के विषैले और विखंडनकारी भाषणों को शांतिप्रिय मानता है? क्या देश के लाखों बुद्धिजीवियों को ओवैशी के जहरीले भाषण परेशान नहीं करते हैं, अशांति के कारण नहीं लगते है, विखंडन के प्रर्याय नहीं लगते हैं? सरकारें भी ओवैशी के विखंडनकारी भाषणों पर संज्ञान क्यों नहीं लेती हैं, एफआईआर दर्ज कर उसे कानून का पाठ क्यों नहीं पढाती हैं? देश में अफवाह, अशांति और जहरीला वातावरण बनाने के लिए ओवैशी को खुला छोड़ देना क्या देश की एकता और अखंडता के लिए प्रतिकूल और हानिकारक नहीं है?

     विरोधाभाष देखिये, समानता के अधिकार का उल्लंघन और प्रहसन देखिये। ओवैशी को खुला छोड़ना, उसे दंडित नहीं करना और इसी प्रकार के अपराध में अन्यों को महीनों जेल में रखकर तडपाना और सड़ाना क्या समानता के अधिकार को लज्जित और शर्म से नहीं भर देता है ? क्या अदालतें, सरकारें, मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग भी अल्पसंख्यकवाद के किटाणुओं से ग्रसित और प्रभावित हैं? मुस्लिम से हिन्दू बने जीतेन्द्र नारायण त्यागी और अतिनरसिम्हानंद सरस्वती सहित अनेक हिन्दू संतों को तथाकथित भडकाउ भाषण देने के आरोप मे जेलों में भेजा गया और महीनों रखा गया। जीतेन्द्र नारायण त्यागी और अतिनरसिम्हानंद जैसे हिन्दू संत अगर हिन्दुत्व की सुरक्षा की बात करेंगे, विधर्मियों की हिंसा का विरोध करेंगे, विधर्मियों और देशद्रोहियों के खिलाफ खडे होने के लिए ललकारेगे तो हिन्दू संत दोषी करार दिये जायेंगे, इनके खिलाफ सुप्ररीम कोर्ट में दर्जनों वकील खडे हो जायेंगे, पत्रकार खडे हो जायेंगे, एनजीओ के लोग खडे हो जायेंगे पर ओवैशी को ऐसे दर्जनों अपराधों की सजा क्यों नहीं मिल रही है? अदालतें और सरकारें ओवैशी पर मेहरबान क्यों हैं, क्या मुस्लिम होना उसके लिए रक्षा कवच है?

      इस निमित असदुउद्दीन ओवैशी का अपराध क्या हैं, करतूत क्या है, शाब्दिक हिंसा और विषवमन क्या है? यह जानेंगे तो आपको भी आश्चर्य होगा। आश्चर्य क्यों होगा? इसलिए कि एक अनपढ और अज्ञानी नहीं बल्कि एक संसद के सदस्य के रूप में जिम्मेदार माने जाने वाले ओवैशी किस प्रकार से अपने कौम के युवकों को हिंसक बनाने, सांप्रदायिक बनाने और उन्हें एक धर्म के प्रति विषवमन करने के लिए प्रेरित करता है। वह भी कभी कभार नही बल्कि बार-बार ऐसा अपराध करता है। अभी-अभी उसने राममंदिर के खिलाफ विषवमन किया है, शाब्दिक हिंसा फैलायी है, वह भी अप्रत्यक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्ष तौर पर, इतना नहीं बल्कि उसने इसे प्रचारित और प्रसारित भी किया है। उसने सीधे तौर पर मुस्लिम युवकों को राममंदिर के खिलाफ उकसाया है, शक्ति प्रदर्शन यानी हिंसा के लिए ललकारा है। उसने कहा कि जहां पांच सौ साल से कुरान ए करीम का जिक्र किया उस मस्जिद को हमने खो दिया, हमसे लूट लिया गया, हमारे मजहबी अधिकारों का हनन कर दिया गया, उसने मुस्लिम नौजवानों से कहा कि हमने मस्जिद गंवा दिया, वहां अब क्या किया जा रहा है, आप देख रहे हैं, हमारे घावों पर नमक छिडका जा रहा है, हमें पीडा पहुंचायी जा रही है, वहां किस प्रकार के काम हो रहे हैं, देश के तीन-चार अन्य मस्जिदों के प्रति साजिश चल रही है, इनको निशाना बनाने का अर्थ हमारे गर्व और ताकत को समाप्त करना है, हमारे हौसले को पस्त करना है, हमारी एकता को तोड़ना है, इन सभी पर संज्ञान लेना है, हमें ताकत का प्रदर्शन करना है, इसके अलावा अन्य हिंसक बातें भी की है।

     सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी राममंदिर पर विवाद खड़ा करना और हिंसक वातावरण बनाने के लिए सक्रिय होना और अराजकता को फैलाना अस्वीकार है, अपराध का प्रतीक है, अशांति का प्रतीक है, देश की एकता और अखंडता के विरूद्ध भी है। सु्रप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि यह फैसला अंतिम है, राममंदिर से जुड़े हुए किसी भी प्रश्न को न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही अन्य किसी कोर्ट में सुनवाई हो सकती है बल्कि कोई याचिका सुनवाई की योग्य भी नहीं मानी जायेगी। इस तरह की लक्ष्मण रेखा खंीचने के लिए सुप्रीम कोर्ट क्यों प्रेरित हुई थी? इसके पीछे कारण यह था कि देश में विधर्मी और अराजक तत्वों की अति सक्रियता और दुराग्रह तथा अफवाह की करतूत। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी पुर्नविचार याचिकाएं खूब दायर होती रहती हैं, उसमें विभिन्न प्रकार के प्रश्न घुसा दिये जाते हैं और अफवाह खडा कर दिया जाता है कि इस विन्दु पर गौर ही नही किया गया, अगर इस विन्दु पर गौर किया गया होता तो सुर्प्रीम कोर्ट का फैसला कुछ और ही होता? इस प्रकार सुपीम कोर्ट का समय जाया होता है। इसके अलावा यह प्रसंग आगे भी जारी रहता और फिर कभी भी अंतिम फैसला नहीं होता। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा खीची थी। इसके बावजूद कुछ याचिकाएं पहुंच गयी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी और अप्रत्यक्ष चेतावनी देकर खारीच कर दी थी। परमपरा और अनिवार्यता यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अंतिम मान लिया जाता है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवाद खड़ा करना और इस पर टीका-टिप्पणी करना अवमानना का अपराध माना जाता है।

     राम मंदिर का भव्य निर्माण से भारत का गर्व और विशालता पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत को कभी सांप-सपेरे का देश समझने वाली दुनिया अब भारत को धार्मिक और विचार का भंडार और प्ररेक स्थान मान रही है। दुनिया भर के लोग अयोध्या को एक मोक्ष-मुक्ति की जगह के तौर पर देख रहे हैं, प्रतीक के तौर पर देख रहे हैं। मंदिर स्थापना के दिन लाखों लोग पहुंच रहे हैं। राममंदिर अब सिर्फ न धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया है बल्कि अर्थव्यवस्था का प्रतीक भी बन गया है। अभी से ही पर्यटको की भीड लग रही है। एक उम्मीद है कि दुनिया से लाखों लोग प्रतिवर्ष अयोध्या दर्शन के लिए आयेंगे। आज की दुनिया में अर्थव्यवस्था का एक बहुत बडा आधार पर्यटन है, पर्यटन की कमाई से अर्थव्यवस्था गुलजार होती है। अर्थव्यवस्था मजबूत होगी तो उसका लाभ क्या सिर्फ हिन्दुओं को ही होगा? लाभ हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई यानी सभी को है। इस सच्चाई को ओवैशी जैसे लोग समझ कर भी हिंसा फैलाने के लिए सक्रिय रहते हैं।

     जिस तरह से बाबरी मस्जिद को लेकर ओवैशी प्रश्न खडा कर रहे हैं, अफवाह फैला रहे हैं, शाब्दिक हिंसा फैला रहे हैं, मुस्लिम युवकों को हिंसा करने के लिए उकसा रहे हैं उसका प्रतिकूल असर पडेगा। क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया भी हो सकती है। सोशल मीडिया में इस पर प्रतिक्रियाएं भी खूब हो रही है, ओवैशी को सबक सिखाने की बात हो रही है, कहा यह जा रहा है कि ओवैशी कानून और सुप्रीम कोर्ट से उपर है क्या? उस पर नकेल नहीं डाला गया तो उसकी प्रतिक्रिया भी भयानक होगी। इसी तरह की प्रतिक्रियाएं भी विर्षली हो सकती है। प्रश्न यह भी खडा किया जा रहा है कि मंदिर के बगल में ही मस्जिद क्यों और किस लिए खडी की गयी है, विश्वनाथ मंदिर और भगवान कृष्ण की जन्म भूमि को लेकर पहले से ही प्रसंग गर्म है। निषाद राज के किले में मस्जिद खडी कर दी गयी। इसके कारण पूरी निषाद जाति खिलाफ मेें खडी है। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री संजय निषाद ने साफ तौर पर कहा है कि निषाद राज के किले से मस्जिद हटायी जानी चाहिए, नही ंतो इसके दुष्प्ररिणाम भयानक होगे। ऐसे अनेक प्रसंग है। फिर ओवैशी जैसे लोग हिन्दू-मुस्लिमों में खाई ही पैदा कर रहे हैं और गृह युद्ध की स्थिति पैदा कर रहे हैं। 

     सुप्रीम कोर्ट और सरकारों को ओवैशी के भडकाउ, शाब्दिक हिंसा से प्रेरित भाषणों पर रोक लगाने की जरूरत है। कानून सबके लिए एक समान है। इसलिए ओवैशी को भी कानून का पालन करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। आज न कल ओवैशी के ऐसे भाषणों पर संज्ञान की जरूरत पडने वाली ही है। नही ंतो देश में अशांति फैलेगी, दंगे होंगे, सांप्रदायिक हिंसा होगी।