भीख मांगकर देश चला रहे पाकिस्तानी भारत से नफरत नहीं उससे बराबरी करें

     1947 में पाकिस्तान की बुनियाद हिन्दुओं से नफरत के कारण पड़ी थी। आज करीब 77 वर्षो के बाद भी पाकिस्तान हिन्दुओं के प्रति ऐसा ही रवैया लेकर आगे बढ़ रहा है। पाकिस्तान में जितने भी प्रधानमंत्री या सेना प्रमुख हुए वह भारत के खिलाफ हमेशा जहर उगलते और आतंकवादियों को संरक्षण देते रर्हे। आज भी यह सिलसिला जारी है। इसी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए पाक की फौजी हुकूमत एक बार फिर पुराना राग अलाप रही है। इस्लामाबाद में हाल ही में हुए प्रवासी पाकिस्तानियों के सम्मेलन में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कश्मीर के मुद्दे पर उकसाने वाले बयान दिए, जिनसे न केवल क्षेत्रीय शांति को नुकसान हुआ है, बल्कि यह भी साफ हो गया कि पाकिस्तान की सत्ता संरचना अब भी नफरत और विघटन की राजनीति को अपनी ताकत मानती है। मौजूदा जनरल मुनीर का हाल ही में दिया गया बयान, जिसमें उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान की 'गले की नस' बताया,ने एक बार फिर साबित कर दिया कि पाकिस्तान की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। यही सब पिछले कई दशकों से पाकिस्तान की फौजी हुकूमत द्वारा लगातार दोहराया जाता रहा है। पाकिस्तान के जनरल यह हमेशा कहते रहे हैं कि कश्मीर पाकिस्तान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसे कभी भी पाकिस्तान से अलग नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन क्या इस विचारधारा ने पाकिस्तान को किसी प्रकार का लाभ पहुंचाया है? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जर्जर हो चुकी है, आतंकवाद की पोषक छवि बन चुकी है और वैश्विक मंच पर वह अलग-थलग पड़ा हुआ है।

     पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इन्हीं हरकतों के कारण वह आर्थिक रूप से कमजोर होता जा रहा है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2025 के शुरुआती महीनों में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार महज 3.1 अरब डॉलर था, जो मुश्किल से कुछ हफ्तों का आयात खर्च चला सकता है। महंगाई दर 30 प्रतिशत के पार जा चुकी है, बेरोजगारी करीब नौ प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और जनता राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से त्रस्त है। ऐसे में पाकिस्तान की फौजी हुकूमत का इस प्रकार का उकसावे भरा बयान यह दर्शाता है कि पाकिस्तान के पास अब कोई दूसरा उपाय नहीं बचा है, सिवाय इसके कि वह अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पुराने और साम्प्रदायिक मुद्दों को उछाले।

      बलूचिस्तान में अलगाववाद की लपटें तेज होती जा रही हैं, और वहां के लोग पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ खुलेआम विद्रोह कर रहे हैं। बलूच विद्रोहियों ने हाल ही में पाकिस्तानी सेना के कई ठिकानों पर हमले किए हैं, जिससे पाकिस्तान के भीतर की अस्थिरता को और भी बढ़ावा मिला है। जनरल मुनीर का यह कहना कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का अभिमान है और कोई इसे नहीं छीन सकता, इस बात का स्पष्ट संकेत है कि उन्हें बलूचिस्तान की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता है। पाकिस्तान के भीतर के लोग यह सवाल कर रहे हैं कि आखिर कब तक कश्मीर के नाम पर उन्हें गुमराह किया जाएगा, जब उनके घरों में रोटियां पकने की स्थिति नहीं है? यह सवाल पाकिस्तान की युवा पीढ़ी में और सोशल मीडिया पर गहराई से उठ रहा है, जहां सेना की आलोचना अब आम बात हो गई है। कई लोग खुलकर कह रहे हैं कि भारत के साथ फिर से मिल जाना ही बेहतर होता, जो एक संकेत है कि पाकिस्तान में अब लोग अपनी असल समस्याओं के बारे में गंभीर हो रहे हैं।

     जनरल मुनीर ने अपने भाषण में विदेशों में बसे पाकिस्तानियों से अपील की कि वे अपने बच्चों को यह सिखाएं कि पाकिस्तान क्यों बना और हिंदू और मुसलमान कभी एक जैसे नहीं हो सकते। उनका यह बयान पाकिस्तान की संस्कृति और पहचान को हिंदुओं से श्रेष्ठ बताने वाला था, जबकि आज की वैश्विक दुनिया में यह सोच पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुकी है। टू नेशन थ्योरी, जिसकी नींव पर पाकिस्तान बना था, वह 1971 में ही धराशायी हो गई थी, जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह विभाजन यह साबित करता है कि धर्म के आधार पर बनी राष्ट्र की अवधारणा टिकाऊ नहीं हो सकती, और पाकिस्तान की असफलता इस सिद्धांत का प्रमाण बन चुकी है।

      आज बलूच, सिंधी और पख्तून समुदाय भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं, और यही पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जनरल मुनीर को यह डर सता रहा है कि अगर उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ नफरत का एजेंडा नहीं चलाया, तो पाकिस्तान की नई पीढ़ी उनसे सवाल पूछेगी। इसलिए वह कमजोर और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को एक बार फिर दुश्मन के तौर पर पेश कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान में बचे-खुचे हिंदू समुदाय की स्थिति बेहद दयनीय है। 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 23 प्रतिशत थी, जो आज घटकर महज 3 प्रतिशत रह गई है। या तो वे पलायन कर गए, मारे गए, या फिर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिए गए। फिर भी, जनरल मुनीर को इनसे डर क्यों लगता है? क्योंकि वह जानते हैं कि यदि नफरत का यह माहौल समाप्त हो गया, तो पाकिस्तान के सत्ता ढांचे की बुनियाद हिल जाएगी।

     पाकिस्तान की मशहूर सीरीज जिंदगी गुलज़ार है में भी यह दिखाया गया था कि पाकिस्तान में हिंदुओं को किस प्रकार हाशिए पर रखा जाता है, और यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत खराब है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अल्पसंख्यक समुदाय पहले से ही इतना शोषित है, तो उनके खिलाफ नफरत फैलाने की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है? अंतरराष्ट्रीय पत्रकार और न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखक ताहा सिद्दीकी ने एक्स पर लिखा था कि जनरल असीम मुनीर बच्चों के दिमाग में जहरीली सोच भरना चाहते हैं ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उन्होंने कहा कि मुनीर दो राष्ट्र सिद्धांत का प्रचार कर रहे हैं, जो 1971 में ही असफल हो चुका था। यह बयान यह दर्शाता है कि जनरल मुनीर पाकिस्तान के भीतर की अस्थिरता और विघटन को लेकर बेहद चिंतित हैं।

      परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने कारगिल युद्ध छेड़कर भारत से सीधा टकराव किया था, उन्होंने भी कश्मीर को हथियाने के लिए हर संभव प्रयास किया था। उन्होंने आतंकवाद को राज्य नीति का हिस्सा बनाया और भारत में कई आतंकवादी हमले कराए थे। अब जनरल मुनीर भी वही भाषा बोल रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान फिर से वही आत्मघाती रास्ता अपनाना चाहता है? पाकिस्तान अब कमजोर है, लेकिन उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां अभी भी आतंकवाद को हथियार बनाकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश करती रहेंगी। जम्मू-कश्मीर में हालिया समय में आतंकवादी गतिविधियों में थोड़ी कमी आई है, लेकिन यह मानना भूल होगी कि खतरा पूरी तरह से टल गया है।  भारत को पाकिस्तान की असलियत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करते रहना चाहिए। साथ ही, पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर को भी भारत में पुनः शामिल करने की दिशा में कूटनीतिक प्रयास तेज किए जाने चाहिए। भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि वह शांति चाहता है, लेकिन अपनी सीमाओं की रक्षा भी जानता है। जहां तक पाकिस्तान की बात है,वह 77 साल तक भारत से दुश्मनी का नतीजा देख चुका है,अच्छा होगा कि पाकिस्तान,भारत से लड़ने झगड़ने की बजाये उसके विकास कार्याे से बराबरी करे।

                                                                 (लेखक उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं )

 

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