यमन में फंसी निमिषा प्रिया फांसी नहीं, हमदर्दी की हकदार

     केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे की रहने वाली निमिषा प्रिया की कहानी उन सपनों से शुरू होती है, जो गरीबी और मजबूरी के बीच पलते हैं। 19 साल की उम्र में, 2008 में, निमिषा ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने का सपना देखा। उनकी मां, प्रेमा कुमारी, कोच्चि में घरेलू सहायिका थीं, और परिवार की माली हालत इतनी कमजोर थी कि निमिषा की पढ़ाई का खर्च उठाना भी मुश्किल था। नर्सिंग कोर्स पूरा करने के बाद, निमिषा को यमन में नर्सों के लिए अच्छे अवसरों की जानकारी मिली। यमन उस समय गृहयुद्ध की चपेट में नहीं था, और वहां नौकरी की संभावनाएं थीं। सुनहरे भविष्य की उम्मीद लिए, निमिषा ने यमन की राजधानी सना का रुख किया।

     सना के एक सरकारी अस्पताल में निमिषा को नर्स की नौकरी मिल गई। मेहनत और लगन से उन्होंने अपने काम में जगह बनाई। 2011 में, वे भारत लौटीं और टॉमी थॉमस, एक ऑटो ड्राइवर, से शादी की। शादी के बाद, निमिषा और टॉमी यमन लौट गए। निमिषा ने नर्सिंग जारी रखी, जबकि टॉमी को एक इलेक्ट्रिशियन के असिस्टेंट की नौकरी मिली। 2012 में, उनकी एक बेटी हुई। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2014 में यमन में गृहयुद्ध शुरू हो गया। आर्थिक तंगी और वीजा प्रतिबंधों के कारण टॉमी अपनी बेटी के साथ भारत लौट आए, लेकिन निमिषा यमन में रह गईं ताकि परिवार को आर्थिक सहारा दे सकें।

     यमन में रहते हुए, निमिषा ने अपना क्लिनिक खोलने का सपना देखा। यमनी कानून के अनुसार, विदेशी नागरिक को क्लिनिक खोलने के लिए स्थानीय साझेदार की जरूरत थी। यहीं उनकी जिंदगी में तलाल अब्दो महदी की एंट्री हुई। तलाल एक यमनी नागरिक था, जो निमिषा के अस्पताल में अक्सर आता था। उसने निमिषा की मदद करने का वादा किया। निमिषा ने उसे 6 लाख यमनी रियाल दिए ताकि क्लिनिक के लिए परमिट और जगह का इंतजाम हो सके। शुरू में सब ठीक रहा। क्लिनिक चल निकला, और निमिषा को अच्छी कमाई होने लगी। लेकिन जल्द ही तलाल का रवैया बदल गया।

     2015 में यमन में गृहयुद्ध की स्थिति बिगड़ने के साथ तलाल ने निमिषा को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसने क्लिनिक के शेयरहोल्डर के रूप में अपना नाम जोड़ लिया और आय का बड़ा हिस्सा हड़पने की कोशिश की। निमिषा का आरोप था कि तलाल ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए खुद को उनका पति बताना शुरू किया। उसने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया, उन्हें धमकाया, और शारीरिक व मानसिक शोषण किया। निमिषा ने बताया कि तलाल नशे में उन्हें मारता-पीटता था, क्लिनिक के कर्मचारियों के सामने अपमानित करता था, और रात में अपने दोस्तों को घर लाकर उनसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता था। निमिषा ने कई बार यमन की सड़कों पर रात बिताई, क्योंकि वहां महिलाओं का रात में अकेले बाहर रहना असामान्य था।

     2016 में, निमिषा ने हिम्मत जुटाकर सना पुलिस में तलाल की शिकायत की। लेकिन पुलिस ने उल्टा उन्हें ही छह दिन के लिए जेल में डाल दिया। जेल से छूटने के बाद, एक जेल वार्डन ने निमिषा को सलाह दी कि वे तलाल को बेहोशी का इंजेक्शन देकर अपना पासपोर्ट वापस ले सकती हैं। जुलाई 2017 में, निमिषा ने ऐसा ही किया। उनकी मंशा तलाल को मारने की नहीं थी; वे बस अपना पासपोर्ट वापस चाहती थीं ताकि यमन छोड़कर भारत लौट सकें। लेकिन गलती से दवा की खुराक ज्यादा हो गई, और तलाल की मौत हो गई।

     तनाव में, निमिषा ने एक स्थानीय महिला, हनान, की मदद मांगी। हनान ने सुझाव दिया कि शव के टुकड़े करके पानी की टंकी में फेंक दिया जाए। अगस्त 2017 में, पुलिस ने निमिषा और हनान को गिरफ्तार कर लिया। यमनी अदालत ने 2018 में निमिषा को हत्या का दोषी ठहराया और 2020 में मौत की सजा सुनाई। हनान को उम्रकैद की सजा मिली। 2023 में, हूती विद्रोहियों की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने सजा को बरकरार रखा। यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी ने 2024 में सजा को मंजूरी दी, हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि हूती विद्रोहियों ने यह फैसला लिया।

     निमिषा की सजा के बाद, उनके परिवार और ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ ने उन्हें बचाने की हरसंभव कोशिश की। यमन में शरिया कानून के तहत ‘ब्लड मनी’ (दियात) का प्रावधान है, जिसमें मृतक के परिवार को मुआवजा देकर सजा माफ कराई जा सकती है। तलाल के परिवार ने 5 करोड़ यमनी रियाल (लगभग 1.52 करोड़ रुपये) की मांग की, लेकिन बातचीत सफल नहीं हुई। भारत सरकार ने भी यमनी प्रशासन से संपर्क साधा, लेकिन हूती विद्रोहियों के साथ औपचारिक राजनयिक संबंधों की कमी और यमन में गृहयुद्ध ने राह मुश्किल कर दी।

     निमिषा की मां, प्रेमा कुमारी, पिछले एक साल से यमन में अपनी बेटी को बचाने की कोशिश कर रही हैं। भारत के सुप्रीम कोर्ट में 14 जुलाई 2025 को एक याचिका पर सुनवाई होनी है, जिसमें केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई है। लेकिन 16 जुलाई 2025 को निमिषा को फांसी दी जानी है। यमन में फांसी का तरीका गोली मारना है, जिसमें दोषी को कंबल में लपेटकर पीठ पर गोलियां चलाई जाती हैं।

     निमिषा की कहानी केवल एक हत्या की नहीं, बल्कि एक ऐसी महिला की है, जो अपने सपनों को पूरा करने निकली, लेकिन धोखे, शोषण, और परिस्थितियों के जाल में फंस गई। उनके परिवार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और भारत सरकार अब भी उनकी जान बचाने की आखिरी कोशिश में जुटे हैं।

                                                         (लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं) 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

*