मुस्लिम समाज ने की वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना

     सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज वक्फ अधिनियम से जुड़े मामले में पारित किये गये अंतरिम आदेश पर मुस्लिम समाज के विभिन्न नेताओं, धर्मगुरूओं और विद्वानों की प्रतिक्रियाएँ सामने आयी हैं। यह आदेश पूरे देश में व्यापक चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि वक्फ सम्पत्ति का सम्बन्ध सीधे धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों से है। अदालत में लम्बे समय से यह विवाद विचाराधीन था और आज दिये गये इस अन्तरिम निर्णय को एक ओर कुछ लोग संतोषजनक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अनेक धर्मगुरु उसे चिंताजनक मान रहे हैं।  मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, जो राजधानी लखनऊ के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं और विद्वानों में गिने जाते हैं, ने अदालत के निर्णय पर अपनी स्पष्ट प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि आज का आदेश मुस्लिम समाज की धार्मिक और शैक्षिक संस्थाओं के भविष्य से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनका कहना था कि वक्फ सम्पत्ति हमेशा से समाज की बेहतरी, निर्धनों की सहायता और मज़हबी गतिविधियों के लिये सुरक्षित की जाती रही है। यदि इस सम्पत्ति से छेड़छाड़ या इसके प्रबन्धन पर कोई आघात होता है तो सीधा असर समाज की बुनियादी ढाँचे पर पड़ेगा।  मौलाना ने यह भी कहा कि सर्वाेच्च अदालत ने अभी केवल अन्तरिम आदेश पारित किया है और आगे सुनवाई जारी रहेगी। उन्होंने अपील की कि इस मुद्दे को किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से न देखा जाये। उनके अनुसार, यह मामला केवल मुस्लिम समाज का नहीं बल्कि पूरे देश के संवैधानिक ढाँचे और धार्मिक अधिकारों के संरक्षण से जुड़ा है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि अन्तिम निर्णय में अदालत समाज की ऐतिहासिक परम्परा, धार्मिक आज़ादी और न्याय की भावना को ध्यान में रखेगी। 

      देशभर के मुसलमानों की बात कि जाये तो  वाराणसी, दिल्ली, हैदराबाद और कई अन्य नगरों से भी मुस्लिम नेताओं की प्रतिक्रियाएँ लगातार आयीं। कई स्थानों पर धर्मगुरुओं ने बयान जारी कर कहा कि वक्फ की व्यवस्था केवल धर्म नहीं बल्कि समाज सेवा का भी माध्यम है। मुस्लिम शिक्षण संस्थानों, मदरसों और अस्पतालों की बड़ी संख्या वक्फ की आमदनी पर निर्भर करती है। ऐसे में यदि वक्फ पर शंका की दृष्टि डाली जाती है तो यह न केवल मज़हबी सरोकार का विषय है बल्कि समाज में चल रहे कल्याणकारी कार्य भी बाधित होंगे। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने भी बयान दिया कि अदालत जिस स्तर पर इस विषय का परीक्षण कर रही है, वह स्वागत योग्य है। लेकिन उन्होंने यह आशंका भी व्यक्त की कि कहीं यह मामला समाज के भीतर अविश्वास और गलतफहमी का कारण न बन जाये। उन्होंने कहा कि वक्फ की सम्पत्तियाँ हमेशा समाज की नयी पीढ़ी की शिक्षा और अनाथों, विधवाओं तथा ग़रीबों की सहायता के लिये उपयोग की जाती रही हैं। उन्हें संरक्षित करना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। वाराणसी और अलीगढ़ के कई मौलानाओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि इस आदेश के बाद समाज के लोग चिन्तित हैं। उनका कहना था कि वक्फ अधिनियम को लेकर यदि कोई प्रश्न उठे भी तो उसका समाधान केवल न्यायपूर्ण और पारदर्शी सुनवाई के माध्यम से ही सम्भव है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मुसलमान अपने धार्मिक न्यासों के प्रति हमेशा संवेदनशील रहे हैं और उन्हें बिना किसी दोष सिद्ध हुए कटघरे में खड़ा करना न्यायोचित नहीं होगा। 

      आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के प्रमुख धर्मगुरुओं ने मौलाना खालिद रशीद के विचारों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को धैर्य और संयम से काम लेना चाहिये। अदालत के अन्तिम निर्णय का सबको सम्मान करना होगा, लेकिन समाज के भीतर जागरूकता फैलाना आज सबसे बड़ी आवश्यकता है। यदि लोग स्वयं वक्फ सम्पत्ति के महत्त्व और उसके सदुपयोग से परिचित होंगे तो किसी भी प्रकार की भ्रान्ति अपने आप दूर हो सकती है।  अदालत के इस अन्तरिम आदेश ने एक नये सवाल को जन्म दिया है दृ वक्फ की सम्पत्ति की देखरेख और लेखाजोखा किस प्रकार पारदर्शी रूप से सुनिश्चित किया जाये। अनेक धर्मगुरुओं ने स्वीकार किया कि वक्फ की जमीनों और इमारतों पर अक्सर अवैध कब्ज़े की शिकायतें आती रहती हैं। ऐसे में अदालत का ध्यान इस ओर जाना स्वाभाविक है। परन्तु समाज के नेताओं ने यह भी स्पष्ट कहा कि इसका हल सम्पूर्ण वक्फ व्यवस्था को ही प्रश्न चिह्नित करना नहीं होना चाहिये। 

      मौलानाओं ने सुझाव दिया कि वक्फ बोर्ड को अपने भीतर सुधार करने होंगे। आधुनिक तकनीक से सम्पत्तियों का अभिलेख तैयार किया जाये, नियमित लेखापरीक्षण हो और समाज को जानकारी उपलब्ध करायी जाये। इससे एक ओर तो अदालत की चिन्ता भी दूर होगी और दूसरी ओर समाज का विश्वास भी और मज़बूत होगा।  ग्रामीण इलाकों और छोटे नगरों में भी मुस्लिम समाज के बीच आज का आदेश प्रमुख चर्चा का विषय बना। लोग यह जानने के इच्छुक हैं कि अन्ततः अदालत किस निष्कर्ष पर पहुँचेगी। बहुत से लोगों ने इस आशंका को व्यक्त किया कि कहीं यह आदेश मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर अंकुश का संकेत न दे। वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों ने बताया कि उनका पूरा ढाँचा वक्फ की सहायता पर टिका है और यदि इसमें कोई व्यवधान आता है तो समाज की नयी पीढ़ी पर सीधा असर पड़ेगा।

      अन्तरिम आदेश के बाद अब सबकी निगाहें आगामी सुनवाई पर टिकी हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि मामला गंभीर है और सभी पक्षों के तर्क सुने जायेंगे। मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरुओं का मानना है कि इस बीच समाज को चिंता में डूबने के बजाय संगठित होकर अपने दृष्टिकोण को शांतिपूर्वक और तार्किक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिये।  मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि हर समाज को संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का पूरा अधिकार है। वक्फ सम्पत्ति उसी स्वतंत्रता का अटूट हिस्सा है। यदि समाज एकजुट होकर उसके महत्व को रेखांकित करेगा, तो निश्चय ही अदालत भी उस पहलू को गंभीरता से लेगी। उन्होंने अंत में जनता से अपील की कि वे अफवाहों से दूर रहें और इस विषय में केवल आधिकारिक जानकारी पर ही भरोसा करें। 

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट के इस अन्तरिम आदेश ने मुस्लिम समाज के बीच गहरी चर्चा को जन्म दिया है। समाज के नेता और धर्मगुरु एक ओर अदालत की प्रक्रिया का सम्मान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी आशंकाएँ भी स्पष्ट रूप से व्यक्त कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि सुनवाई किस दिशा में जाती है और वक्फ अधिनियम का भविष्य किस रूप में आकार लेता है।   

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