डोकलाम पर भारत की कूटनीतिक जीत

डोकलाम विवाद सुलझ गया, वह भी बि‍ना किसी की संप्रभुता को चुनौती दिए बगैर । भारत सरकार की ओर से जो लगातार कूटनीतिक प्रत्‍न पिछले दिनों अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर किए गए हैं, जिसमें कि जापान से लेकर अमेरिका तक कई देशों का साथ उसे मिला किंतु चीन की हां में हां मिलाने को कोई खड़ा नहीं हुआ, सच पूछिए तो इन परिस्‍थ‍ितियों और हमारी सेना ने जिस पराक्रम का परिचय देते हुए लागातार डोकलाम पर अपनी मुस्‍तैदी दिखाई, उससे आज से दो माह पहले ही यह तय हो गया था कि चीन की मीडिया भले ही अपने देश में कितनी भी आग भारत के विरोध में उगले आखिरकार चीनी सेना को डोकलाम से पीछे हटना ही पड़ेगा।
 
असल में पहले चीन को लगा था कि वह आगे होकर डोकलाम पर कब्‍जा कर लेगा, भूटान कुछ करने की स्‍थ‍िति में नहीं और भारत फिर अंतरर्राष्‍ट्रीय मंचों पर चिल्‍लाता रहे क्‍या फर्क पड़नेवाला है, पर शायद चीन भूल गया कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं जिसे चीन पहले हम दोनों हैं भाई-भाई का स्‍वप्‍न दिखाए और अचानक से अपने पड़ौसी भाई भारत पर छल से आक्रमण करने में सफल हो जाए । इस बार भारत सर्तक था, वह चीनी-हिन्‍दी भाईभाई के किसी भुलावे में आनेवाला नहीं था, तभी तो हमारी सेना पिछले तीन महीने से डोकलाम में चीनी सेना के सामने डटी हुई थी । वस्‍तुत: डोकलाम मुद्दे को जिस तरह से अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर प्रभावी रूप से विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज या अन्‍य कें‍द्रीय मंत्रियों ने रखा, प्रधानमंत्री मोदी का साथ जैसा सभी को मिला और वे इस विषय पर बिल्‍कुल दृढ़ता के साथ खड़े रहे, उसके बाद तो यह तय ही हो गया था कि आगे इस विषय में जो भी निर्णय लिया जाएगा, अंत में वह भारत के पक्ष में ही जाएगा।
 
हालांकि पहले विवाद का हल निकलना इस वजह से भी मुश्किल लग रहा है, क्योंकि चीन पाकिस्तान के साथ श्रीलंका व बांग्लादेश, नेपाल में अपनी जड़ मजबूत करता जा रहा है। जवाब देने के लिए ही भारत भूटान के साथ है। चीन के शत्रु दलाई लामा को भी शरण देने के मामले में हम मुखर हैं। ऐसी स्थिति में विवाद का हल कैसे होता है यह समझ नहीं आ रहा था। चीन किसी भी सूरत में पहले पीछे हटने को तैयार नहीं था और हमारा भी पीछे हटने का कोई सबाल ही पैदा नहीं होता था। किंतु जैसे ही विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, रविश कुमार ने इस फैसले की जानकारी सार्वजनिक की कि भारत और चीन दोनों ही अपनी-अपनी सेना डोकलाम से हटाने को तैयार हो गए हैं। समुचे विश्‍व में यही संदेश गया कि भारत की वर्तमान शक्‍ति-सामर्थ्‍य के सामने चीन को झुकना पड़ा है।
 
भारत यदि इस तरह की दृढ़ता नहीं दिखाता तो यह निश्‍चित था कि चीन डोकलाम तक सड़क निर्माण कर सीधे हमारी सीमा ने नजदीक पहुंच जाता और हमें चुनौती देने लगता । यदि यह सड़क बन जाती तो चीन सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब तक पहुँच जाता । इतना ही नहीं वह यहां के ट्राई जंक्शन से होते हुए हमारे भौगोलिक क्षेत्र चिकन नेक यानी सिलिगुड़ी कॉरिडोर के भी बहुत पास आ जाता जो आगे भारत के लिए किसी खतरे से कम न होता। लेकिन जिस तरह से चीन ने अपनी सेना पीछे हटाई उससेदुनिया आज इसे भारत की बड़ी जीत मान रही है।
ऐसा मानने का बड़ा कारण यह है कि भारत इस मसले को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्ष में था, जबकि चीन भारत को लगातार युद्ध के लिए धमका रहा था। इस सब के बीच भारत का सकारात्‍मक पक्ष यह भी रहा कि लाख चीन द्वारा भड़काने के बाद भी वह उसकी बातों में नहीं आया । इस मुद्दे को लेकर पिछले कई दिनों से हो रही बातचीत में भारत ने चीन को अपनी चिंताओं से बार-बार वाफिक कराया जिसके बाद सेनाएं हटाने का दोनों देशों की ओर से फैसला हुआ है।
 
चीन की कूटनीतिक हार का पता इस बात से भी चलता है कि उसने डोकलाम मामले के बाद अपना सैन्य प्रमुख बदल दिया है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 63 वर्षीय जनरल ली जुचेंग को नया सेनाध्यक्ष बनाया है। वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के नए ज्वाइंट स्टाफ डिपार्टमेंट के प्रमुख होंगे। हालांकि चीन के रक्षा मंत्रालय ने ली की नियुक्ति की प्रत्यक्ष रूप से घोषणा नहीं की है, किंतु खबर यही है। इसके अलावा चीन का यह स्वीकारना कि डोकलाम को लेकर उसका भूटान के साथ विवाद है। यह बताता है कि जिस क्षेत्र को चीन अपना बता रहा है, वह पहले से ही विवादास्‍पद क्षेत्र है।
 
इस सब के बीच भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की यहां सबसे ज्‍यादा सराहना बनती है जिन्‍होंने संसद में बहस के दौरान साफ दो टूक शब्‍दों में कह दिया था कि भारत की सेना तभी वापस आएगी जब चीन की भी पूर्व स्थिति में लौटेगी। इसके बाद ही डोकलाम की स्थिति पर दोनों देश वार्ता करेंगे। आज भारत सरकार ने चीन को बता दिया है कि डोकलाम में सड़क निर्माण करना वहां की स्थिति में बदलाव का संदेश देगा। यह क्षेत्र भारत, भूटान और चीन के मध्य का इलाका है। इसलिए वह किसी भी चीनी निर्माण को प्रश्रय नहीं देगा बल्कि आगे भी यदि ऐसा करने का प्रयास चीन की ओर से हुआ तो उसका भी वह पुरजोर विरोध करेगा।
 
इसी के साथ कुछ विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में इसी सितम्‍बर माह में ब्रिक्स देशों की बैठक आयोजित होने जा रही है। ब्रिक्स में चीन और भारत ही दो बड़े देश हैं ऐसे में यदि भारत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्‍मेलन में भाग लेने चीन नहीं पहुंचेंगे तो इससे चीन की ही विश्‍वभर में बदनामी होती, इसलिए चीन ने पीछे हटने का फैसला लिया। फिर भी इस पर इतना ही कहना उचित होगा कि जो भी हो, डोकलाम में चीन अपनी पूर्व निर्धारित रणनीति से पीछे हटा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीछे हटने के उसके कारण क्‍या हैं, किंतु उसका पीछे हटना ही यह बताता है कि भारत अपना पक्ष सैनिकों के माध्‍यम से सीमा पर और कूटनीति के द्वारा समुचे विश्‍वभर में रखने में सफल रहा है।