प्राकृतिक सौन्दर्य का धनी पर्वतीय अंचल बांसवाड़ा नैसर्गिक उपहारों से भरा वह अनूठा क्षेत्र है जहाँ पावन सलिलाओं का संगीत गूँजता है, पर्वतों से सांस्कृतिक वैभव की स्वर लहरियाँ गूँजती और प्रतिध्वनित होती हैं तथा आक्षितिज पसरी हरियाली हर किसी को अवर्णनीय सुकून के साथ ताजगी का अहसास कराती है।
अरावली उपत्यकाओं की गोद में बसे तथा माही की रसधार से आप्लावित इस धरा पर सैकड़ों स्थल ऎसे हैं जो प्राकृतिक पर्यटन के धाम कहे जा सकते हैं। इनमें बहुत सारे पर्यटन व दर्शनीय स्थलों के बारे में सभी लोग जानते हैं, लेकिन प्राकृतिक सौन्दर्य, रमणीय दर्शन व मनोहारी बिम्बों का दिग्दर्शन कराने वाले कई स्थल आज भी ऎसे हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगाें को ही जानकारी है।
होता है आनंद लहरियों का अहसास
इन्हीं में एक अनुपम दर्शनीय स्थल है- त्रिवेणीश्वर महादेव। यह माही, कागदी और घण्टाली नदियों की जलधाराओं के सदानीरा पवित्र संगम क्षेत्र में अवस्थित है। कुछ आगे जाकर इसमें नॉल नदी भी मिल जाती है। अपार हरियाली का मंजर छितराया हुआ है और वन में विराजे भगवान भोलेनाथ अगाध श्रद्धा के केन्द्र हैं।
नैसर्गिक रमणीयता से भरे इस स्थल पर असीम आत्मतोष व दिली आनन्द का वो झरना बहता है जिसे वही जान सकता है जो यहाँ आ चुका हो। एक बार यहाँ मात्र कुछ क्षण के लिए भी आ जाने वाले इंसान की इच्छा बार-बार आने की बनी रहती है, यह आकर्षण ही इस स्थल की प्रमुख ख़ासियत है।
तीन शिवलिंग वाला अनूठा मन्दिर
तीनों नदियों की बल खाती संगम जलधाराएँ यहाँ इस कदम घुमाव लेती हैं कि बीच में सुन्दर टापू सा दृश्य बन गया है वहीं नदी के तटों की घनी हरियाली भी देखते ही बनती है। यहीं एक किनारे पर त्रिवेणीश्वर महादेव का मंदिर है जिसमें तीन शिवलिंग स्थापित हैं। दो शिवलिंग गर्भगृह के भीतर प्रतिष्ठित हैं जबकि एक शिवलिंग बाहर बरामदे में स्थापित है। यहीं पर काले पाषाण का नंदी है।
आमोद-प्रमोद का रियासती धाम
त्रिवेणीश्वर महादेव काफी प्राचीन स्थल है जिसका जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। रियासतकाल में यह क्षेत्र महारावल के आमोद-प्रमोद स्थलों में खास अहमियत रखता था जहाँ बांसवाड़ा रियासत के तत्कालीन महारावल पृथ्वीसिंह ने कई बार केंप लगाये। रियासतकाल में यहाँ के जंगलों में नदी किनारे ओड़ी (विहार शिविर) की परम्परा अर्से तक कायम रही। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य और आबोहवा प्राचीनकाल से राजा-महाराजाओं व दरबारियों को ताजगी देती रही है। यही कारण है कि प्रकृति का यह उन्मुक्त आँगन आम और ख़ास सभी के लिए दिली सुकून का दरिया उमड़ाता रहा है।
जंगल में मंगल लुटाता है त्रिवेणी धाम
त्रिवेणीश्वर महादेव के इस धाम के सौन्दर्य से बांसवाड़ा शहरवासी भी अनजान हैं जबकि यह बांसवाड़ा से मात्र 8 किमी दूर सेवना गांव में है। बांसवाड़ा- उदयपुर मुख्य मार्ग पर यह बांसवाड़ा से मात्र तीन किलोमीटर दूर से ही दिखाई देता है। इस मंदिर के पास से हाईवे गुजर रहा है। शहरवासियों के लिए शहर के पास ही ‘जंगल में मंगल’ का जयगान करने वाला यह खास धाम बन सकता है। इसकी पर्यटन महत्ता बहुत बढ़ गई है। आने वाले दिनों में यह बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगा, इसकी व्यापक संभावनाएं हैं।
लोक श्रद्धा का धाम
त्रिवेणीश्वर महादेव के प्रति श्रद्धालुओं में विशेष आस्था है। धर्मावलम्बी जल संगम में पवित्र स्नान के बाद में संगम जल से भगवान का अभिषेक करते हैं।
श्रावण मास में दर्शनार्थियों का दौर बना रहता है। पूरे माह अखण्ड दीपक जलता है तथा धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। यहां शिवभक्त देवीलाल(सेवना निवासी) सन् 1951 से मंशा महादेव की कथा सुनाते रहे हैं। इसके साथ ही श्रावण के अनुष्ठानों के अंतर्गत अखण्ड दीपक का यह उनका चौदहवां वर्ष है। किसी समय गुरु गोरखनाथ की परम्परा के नाथ सम्प्रदायी संतों का यहां डेरा रहा है। यहीं पर संतोषनाथ महाराज बताते हैं कि उनके गुरु मोहनलाल (रूंजिया) ने भी यहाँ तपस्या की थी।
त्रिवेणीश्वर महादेव आने वाले भक्तों का रोम-रोम पुलकित हो उठता है वहीं भगवान भोलेनाथ भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं। ख़ासकर संतान की कामना से श्रृद्धालु यहाँ ज्यादा आते हैं जो कामना पूर्ति होने पर प्रसाद चढ़ाते हैं तथा शिवलिंग पर श्रीफल की श्रृंखला सजाते हैं जिसे स्थानीय भाषा में ‘नारियल की पार बाँधना’ कहा जाता है।
बांसवाड़ा के प्रकृतिप्रेमी और पर्यावरणविद् श्री भागवत पण्ड्या ‘कुन्दन’ के अनुसार इस क्षेत्र का धार्मिक पर्यटन के हिसाब से बेहतर विकास किया जाए तो यह शहरवासियों के लिए सुगम नवीन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हो सकता है।