चीन के युद्धोन्माद पर संज्ञान जरूरी

                                                                                                 राष्ट्र-चिंतन   

        विष्णुगुप्त

चीन का युद्धोन्माद यदा-कदा दुनिया के सामने आता ही रहता हैै, कभी अपनी अराजक सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के तौर पर चीन दुनिया को डराता है तो कभी युद्ध की धमकी देकर दुनिया को भयभीत है। पडोसी देश जैसे वियतनाम, ताईवान, भूटान, भारत तो चीन की अराजक हिसक सामरिक शक्ति के सामने डरे हुए रहते हैं, भयभीत रहते हैं और अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए चिंतित भी रहते है। चीन कब पड़ोसी देशों की सीमाओं का अतिक्रमण कर कब्जा जमा बैठे और अपनी सेना की तैनाती कर दे, यह कहा नहीं जा सकता है। वैश्विक दुनिया में महाशक्तियों का भविष्य और हित एक-दूसरे के साथ मंकडजाल की तरह गुथे होते हैं। इसलिए महाशक्तियो की क्रिया-प्रतिक्रिया, महाशक्तियों की हिंसा-प्रतिहिंसा का प्रभाव भी वैश्विक होता है, वैसे देश और वैसी आबादी भी प्रभावित होती है जो महाशक्ति के केन्द्र में नहीं होते हैं और न ही किसी गुट विशेष के होते हैं। यही कारण है कि दुनिया युद्धोन्माद या फिर सभी प्रकार की हिंसा-प्रतिहिंसा से चिंतित होती है और ऐसी सोच-प्रक्रिया को दुनिया की शांति के लिए खतरा माना जाता है। पर यह भी सही है चीन, अमेरिका, रूस जैसी शक्तियां अपने हितों और स्वार्थो को लेकर युद्धोन्माद पर उतर आती हैं और निर्दोष आबादी को भी शिकार भी बना लेती हैं। दुनिया के अंदर में ऐसे कई उदाहरण सामने है जब महाशक्तियां अपने स्वार्थ और वैश्विक दादागिरी सुनिश्चित करने के लिए युद्ध लडी हैं, कमजोर देशों को कुचली है, कमजोर देशों के आर्थिक-प्राकृतिक संसाधनों को हडपने का कार्य की हैं।

         निश्चित तौर पर चीन एक महाशक्ति है, चीन के महाशक्ति के कई आयाम हैं। महाशक्ति सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं हैं,बल्कि सामरिक तौर पर भी चीन एक महाशक्ति है, उसकी सेना की विशालता और क्षमता भी विशेष है, उसकी कूटनीति भी दुनिया भर में मारक क्षमता रखती है। चीन की कूटनीति यह देखती नहीं कि उनके निशाने पर आने या फिर उनके खतरनाक कदमों से कोई महाशक्ति नाराज होता है या फिर खुश होता है, वह कूटनीतिक प्रतिक्रिया का भी परवाह नहीं करता है। इसलिए वह दुनिया की कई वैश्विक संस्थाओं के प्रमुखों को भी जेलों में डाल देता है। कुछ दिन पूर्व ही इंटरपोल के एक प्रमुख के लापता होने की खबर दुनिया भर में फैली हुई थी, उस लापता इंटरपोल के प्रमुख की कोई खबर नहीं मिल रही थी। बाद में पता चला कि इंटरपोल का वह प्रमुख चीन के कब्जे में है। चीन ने दुनिया को यह बताने की जरूरत भी नहीं सभझी थी कि उसने इंटरपोल के एक प्रमुख को क्यों और कैसे अपने कब्जे मे रखा हुआ है। दुनिया के नियामकें भी चीन को कुछ नहीं बिगाड सकती हैं? आखिर क्यों? इसलिए कि चीन के पास सुरक्षा परिषद के बीटो का अधिकार है। अभी-अभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने नागरिकों को चीन जाने से मना किया है। अमेरिका और चीन के बीच में टेªड वार कितना गंभीर और खतरनाक रहा है, यह भी जगजाहिर है।

           चीन का युद्धान्माद क्या है? चीन का युद्धोन्माद से दुनिया की शांति को कितना खतरा है? चीन का युद्धोन्माद क्या पडोसियों के लिए खतरे की घंटी हैं? क्या पडोसियों के सामने भी चीन के खिलाफ अपनी सेना मजबूत करने की बाध्यता होगी? ताइवान के सामने अस्तित्व संकट है क्या? वियतनाम, फिलीपींस और कबोडिया जैसे आसियान देशों के सामने भी युद्ध की कोई चुनौती खडी होती है क्या? चीन के युद्धोन्माद से भारत को भी डरना चाहिए क्या? अगर पडोसी देश भी अपनी सेना को आक्रामक ढंग से मजबूत करने लगेगे और नये-नये हथियारों का सृजन और खरीद करने लगेगे तो फिर दुनिया के अंदर खतरनाक हथियारो की होड़ नहीं बढेगी क्या ? हथियारों की होड से दो प्रकार के खतरे होते हैं। एक तो हथियारों की होड से शांति को खतरा होता है, हिंसा-प्रतिहिंसा की आशंका उत्पन्न होती है और दूसरे में हथियारों के सृजन और खरीद से अर्थव्यवस्था चौपट होती है। जिन पैसों का उपयोग गरीबी उन्मूलन और जरूरी सुविधाओं के विकास पर खर्च होना होता है उन पैसों से हथियारों का उन्नयन और क्रय होता है।

            चीन के युद्धोन्माद पर अब एक चर्चा करते हैं। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने अपनी सेना को स्पष्ट रूप से आदेश दिया है कि युद्ध के लिए तैयारी करनी चाहिए। शी जिनपिंग ने अपनी आर्मी पीपुल्स लिबरेशन से कहा है कि दुनिया में कई ऐसे प्रश्न है जिस पर विवाद बढ रहा है, टकराव बढ रहा है, हितों का संकट खडा है, ऐसे में चीन को युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। पीपुल्स लिबरेशन  आर्मी अपने हथियारों का उन्नयन करे, सैनिकों का प्रशिक्षण नये सिरे से करे और दुनिया को यह अहसास कराये कि वह सर्वश्रेष्ठ सामरिक शक्ति है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि चीन अपने मारक और खतरनाक हथियारों का प्रदर्शन कर दुनिया को डराना भी चाहता है, दुनिया को भयभीत करना चाहता है। चीन अपने स्थापना के 70 वीं वर्षगांठ पर बैजिंग के थियानमेन चौक पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सैन्य परेड करेगी। इस सैनय परेड में दुनिया को चकित करने वाले हथियारों का प्रदर्शन किया जायेगा। थियानमेन चौक को ही सैन्य परेड के लिए क्यो चुना गया। थियानमेन चौक दुनिया भर में चर्चित है और चीन की कठोर, दमनकारी और हिंसक सैन्य शक्ति के लिए भी कुख्यात है। 20 शताब्दी में चीन ने लोकतंत्र की मांग करने वाले करीब 20 हजार से ज्यादा छात्रों की हत्या टैकों और मिसाइलों से की थी। लोकतंत्र की मांग करने वाले चीनी छा़त्रों का वह नरसंहार दुनिया के लिए आज भी दिल दहला देने वाली घटना है। सबसे बडी बात यह है कि पीपुल्स रिबरेशन आर्मी पर अपने देश के ही 10 करोड़ नागरिकों को मारने का आरोप है जिन्होंने माओत्से तुंग के सामने सिर झुकाने से इनकार कर दिया था। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की स्थापना कम्युनिस्ट तानाशाह माओत्से तुंग ने की थी, माओत्से तुंग ने कहा था कि सत्ता बन्दूक की गोली से निकलती है।

            युद्धोन्माद का एक गणित भी है,एक कूटनीति भी है, खासकर पडोसी देशों के खिलाफ एक गिद्ध दृष्टि भी है। कभी चीन ही एशिया में महाशक्ति हुआ करता था, कभी चीन की ही सामरिक शक्ति की तूती बोलती थी। कभी भारत तो कभी वियतनाम को चीन ने अपनी सामरिक शक्ति से कुचला था और भारत व वियतनाम के हितों पर डाका डाला था। पर 21 वी सदी का एशिया कई मायनों में अलग है। शक्ति संतुलन के नये आयाम बने हुए हैं। चीन की शक्ति की चुनौती मिली है। दक्षिण कोरिया, भारत और जापान जैसे देश नये शक्ति के केन्द्र के रूप में सामने आये हैं। जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के सबक से काफी कुछ सीखा और बदले की भावना के सिद्धांत को छोडकर अदभुत आर्थिक तरक्की की है। जापान और चीन के बीच कोई आज का झगडा नहीं है, यह झगडा द्वितीय विश्व युद्ध के काल से चला आ रहा है। दक्षिण चीन सागर में चीन और आसियान देशों के बीच हितों का टकराव है। पूरे चीन दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना अधिकार बताता है जबकि दक्षिण चीन सागर के कई टापुओं पर दक्षिण कोरिया, जापान, पिलीपींस, कबोंडिया और वियतनाम का दावा है। दक्षिण चीन सागर में चीन अपनी सेना का अराजक और हिंसक प्रदर्शन करता रहा है। अमेरिका बार-बार दक्षिण चीन सागर में चीन की सैनिक गतिविधियों पर प्रश्न चिन्ह खडा करता रहा है और चीनी सैनिक गतिविधियों को एशिया और आसियान देशों के खिलाफ बोलता रहा है। इधर ताइवान को चीन अपने साथ मिलाना चाहता है। चीन का कहना है कि ताइवान का स्वतंत्र अस्तित्व उसे स्वीकार नहीं है, ताइवान को अपने साथ मिलाने के लिए वह युद्ध का भी सहारा ले सकता है। ताइवान का स्वतंत्र अस्तित्व बचाना जरूरी है।

            खासकर भारत के सामने चीनी युद्धोन्माद की भयंकर चुनौतियां खडी है। भारत वियतनाम में कई तेल कुंओं का उत्खनन कार्य सहित अन्य विकास योजनाओं में भी भागीदार है। वियतनाम में भारत की भागीदारी को लेकर चीन बार-बार आखें तरेरता है, भारत को डराता-धमकाता है। डोकलाम विवाद जगजाहिर है। डोकलाम में चीन को जैसे को तैसे के रूप में जवाब मिला था। फिर भी भारत को सीमा पर अपनी सैन्य शक्ति मजबूत करनी ही होगी। हमारा असली दुश्मन चीन ही है, चीन की गिद्ध दृष्टि से हमारी संप्रभुत्ता को खतरा है। चीन के युद्धोन्माद से जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलीपींस, कबोंडिया जैसे देशों को भी सावधान रहना चाहिए। खासकर अमेरिका को भी चीन के युद्धोन्माद पर नजर डालनी होगी। अफ्रीका महादेश में तानाशाही और अंधेरगर्दी पसारने में चीन की बडी खतरनाक भूमिका रही है। चीन के युद्धोन्माद का जमींदोज करने का सही तरीका व्यापार संतुलन सुनिश्चित करना।  चीन के साथ पडोसी देशों का व्यापार संतुलन सुनिश्चित होगा, तब चीन की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। ऐसी स्थिति में चीन का युद्धोन्माद खुद ही जमींदोज हो जायेगा।

 

 

 

 

विष्णुगुप्त

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