चीन में अब ईसाइयोंं पर निशाना

दुनिया अभी तक यही सुनती आई थी कि चीन के मुसलमानों को सताया जा रहा है। चीन के भारत से लगे प्रांत सिंक्यांग (शिनच्यांग) में लगभग 10 लाख उइगर मुसलमानों को प्रशिक्षण शिविरों में बंद किया हुआ है। अब से लगभग 7-8 साल पहले मैं इस प्रांत में 3-4 दिन रह चुका हूं। वहां के उइगर मुसलमानों के नाम चीनी भाषा में होते हैं। वे कुरान की आयतें नहीं बोल पाते और उन्हें मस्जिदों में भीड़ लगाकर नमाज़ नहीं पढ़ने दी जाती। रमजान के दिनों में उन्हें इफ्तार की पार्टियां नहीं करने दी जातीं। मेरा दुभाषिया भी एक उइगर नौजवान था। इसीलिए आम लोगों से मैं खुलकर बात कर लेता था। जो उइगर पेइचिंग और शांघाई में मेवे और खिलौने वगैरह की दुकानें करते हैं, उनसे भी मेरा अच्छा परिचय हो गया था। चीन की सुरक्षा एजंसियां इन लोगों पर कड़ी निगरानी रखती थीं। इन लोगों पर यह शक बना रहता था कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादियों के साथ इनके घने संबंध हैं लेकिन अब पता चला है कि चीन के ईसाइयों की दुर्दशा वहां के मुसलमानों से भी ज्यादा है। चीन में मुसलमान तो मुश्किल से डेढ़-दो करोड़ हैं लेकिन ईसाई वहां लगभग 7 करोड़ हैं। मुसलमान तो ज्यादातर उत्तरी प्रांत शिनच्यांग में सीमित हैं लेकिन चीनी ईसाई दर्जन भर प्रांतों में फैले हुए हैं। उनके कई संप्रदाय हैं। उनके सैकड़ों गिरजाघर शहरों और गांवों में बने हुए हैं। चीन में ईसाइयत फैलाने का श्रेय वहां भारत से गए विदेशी पादरियों को सबसे ज्यादा है।

पिछले हजार साल में चीन के कई राजाओं और सरकारों ने इन चीनी ईसाइयों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए लेकिन विदेशी पैसे और प्रभाव के कारण उनकी संख्या बढ़ती गई। चीन के मंचू और कोरियाई निवासियों में ईसाइयत जरा ज्यादा ही फैली। ईसाइयों की तुलना में बौद्धों पर कम अत्याचार हुए। मैंने चीन में बौद्धों के जैसे भव्य तीर्थ-स्थान देखे हैं, वैसे भारत में भी नहीं हैं। आजकल चीन के ईसाइयों से कहा जा रहा है कि वे अपने गिरजों में से ईसा और क्राॅस की मूर्तियां हटाएं और उनकी जगह माओ त्से तुंग और शी चिन फिंग की मूर्तियां लगाएं। पुलिस ने कई मूर्तियों और चर्चों को भी ढहा दिया है। जैसे सिक्यांग में कुरान देखने को भी नहीं मिलती, अब बाइबिल भी दुर्लभ हो गई है। चीनी भाषा में उसके अनुवाद भी नहीं छापे जा सकते हैं।

अपने आपको कम्युनिस्ट कहनेवाला चीन खुद तो पूंजीवादी और भोगवादी बन गया है लेकिन चीनी लोगों को उनकी धार्मिक आजादी से वंचित कर रहा है। इन सारे मजहबों को जो लोग पाखंड समझते हैं, वे भी इन पाखंडों की आजादी का समर्थन करते हैं, क्योंकि आजादी के बिना इंसान जानवर की श्रेणी में चला जाता है।